रविवार विशेष-कविता-सरकारी अस्पताल

सरकारी अस्पताल 
सख्त बीमार एक दीन  फकीर,
बेचैन रहा सरकारी अस्पताल में .
स्वास्थ्य कर्मियों ने अनदेखी की,
छोड़ दिया उसे उसी हाल में.
      मरीज कुछ ज्यादा समझदार था,
      समझ गया माजरा एक नजर में.
      हकीकत बयां कर चल दिया वह 
      डालकर हाथ अपनी कमर में .
देखा दूर से सोचा था मन में,
यह जन्नत है या फिर दरगाह है.
आकर अंदर अब पता चला
यह अदद सरकारी कब्रगाह है.
पी० बिहारी 'बेधड़क'

रविवार विशेष-कविता-सरकारी अस्पताल रविवार विशेष-कविता-सरकारी अस्पताल Reviewed by Rakesh Singh on October 10, 2010 Rating: 5

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