रविवार विशेष- व्यंग- काश ! रोबोट ही नेता होता !

काश! रोबोट ही नेता होता !

मैं अपनी अधमरी खाट पार बैठा पुरानी पत्रिका के पन्ने उलट रहा था,जिसमे राजनैतिक दाँव-पेंच,उठा-पटक संघटन-विघटन और समीकरण से सम्बंधित कई चुनावी पीढ़ियों का विश्वसनीय लेखा-जोखा था.उसी समय मेरा लंगोटिया यार तुरंती लाल (खबरची) खैनी रगरते आ धमका.पद-चाप की  दिशा में मैंने नजरें दौड़ाई.वह मंद-मंद मुस्कुरा रहा था.अट्ठनी मुस्कान के साथ मैंने उससे पूछा,"खबरची,आज तुम कुछ अधिक चहक रहे हो! लॉटरी निकली है क्या?" उसने सफाई पेश की,"यार,लॉटरी तो समूची मानव जाति की निकली है.पता है? ब्रिटिश शोधकर्ताओं ने दावा किया है कि रोबो-वैज्ञानिक इंसान की जगह लेने में हंड्रेड परसेंट सक्षम हैं.जीवित हाड़-मांस के पुतलों के नाज-नखरे, रोग-शोक,नींद-भूख-काम से समझो निजात मिली!"
लोहे का यह बेजान यंत्र संभवत: बेईमानी,मक्कारी,रिश्वतखोरी,जाति-धर्म की राजनीति और भाई-भतीजावाद से छुटकारा दिला सकता है
         उत्सुक होकर मैंने पूछा,"ऐसी खबर तुम्हे मिली कहाँ से?" उसने खैनी फटकार कर अपने मुंह के हवाले किया और अपनी जेब से दस्तावेजी प्रमाण निकाला.शायद किसी अखबार की बासी कतरन थी.मेरे सामने पसार कर और अपनी छाती फुलाकर बोला,"मैं कभी हवाई बातें नही किया करता.ज़ुबानी ख़बरों से मुझे सख्त परहेज है."तब तक मेरा पड़ोसी सदासुख 'समाजसेवी' ने आशान्वित होकर अपनी प्रतिक्रिया प्रकट की,"रोबोट यदि राजनेताओं की जगह ले ले तो शायद राजनीति की सेहत सुधरने की आशा जगे.लोहे का यह बेजान यंत्र संभवत: बेईमानी,मक्कारी,रिश्वतखोरी,जाति-धर्म की राजनीति और भाई-भतीजावाद से छुटकारा दिला सकता है."मुझे चुप देखकर खबरची ने कोंचा,"तुम चुप क्यों हो जी? कुछ तो बोलो." एक लंबी सांस लेकर मैंने अपना मुंह खोला,"रोबोट की हमें जरूरत भी क्या है?बाबा गांधी के चरखे को दैत्याकार मशीनों ने कब का चबा डाला.अब यह लौह-पिशाच बेरोजगारों की फौज को पैरेड कराने आ गया है.अच्छा,यह बातों,रोबोट को हमने बनाया या रोबोट ने हमें?" खबरची ने झट जबाब परोसा,"रोबोट को हमने बनाया है." सर हिलाकर समाजसेवी ने भी सहमति जताई." यदि हमारी बिल्ली हमी को बेदखल करने पार तुल जाय तो हमारी स्थिति क्या होगी?यह एक विकट  समस्या है,भाई मेरे!स्वप्न देखो जरूर,पर चिल्ला कर पड़ोसी के दिल की धडकन मत बढ़ाओ.यदि अटल जी जैसे एक-आध दर्जन नेता दल के दल-दल में उग आयें तो फिर कोई शिकायत ही नही रहेगी." मैंने अपनी वाणी को विराम देकर बारी-बारी से उन दोनों पर अपनी निगाह डाली.
          अपने नथुने फुलाकर 'समाजसेवी' ने मुझे लताड़ा,"क्या अटल जी का क्लोन तैयार करवाओगे?मानवीय कमजोरियों ने बड़े-बड़े धाकड़ को बागड़ बना कर छोड़ दिया है.सद्दाम का मिशाल सामने है.अपने सगे दो जवान बेटों की बलि देकर वह बूढ़ा शेर मांड में नही बिल में अपनी जान की हिफाजत चूहे की भांति करते पकड़ाया." वह विचलित हो उठा.
        अब बारी 'खबरची' की थी.उसने भी मुझपर हमला बोल दिया,"अरे! अपने घोंसले में चील,गिद्ध और बाजों को पनाह देकर कबूतर कब तक खुद को सुरक्षित रख पायेगा?बूढ़ा जरदगव ने बिलाड को जगह दी थी,उसका क्या हश्र हुआ? याद करो अतीत को कितनी बेशर्मी दिखलाई देश को तथाकथित रहनुमाओं ने और प्यारे प्यारे प्रधानमंत्री ने धृतराष्ट्र की याद दिला दी देशवासियों को! सच,राजनीति का महासागर ढेर सारे व्हेल,शार्क और मगरमच्छों से भरा पड़ा है.एक से एक हिंसक और आक्रामक! नामुराद लोहे की नीयत,नीति और सिद्धांतों में तब्दीली आने से तो रही और न ही वह दल-बदल कर सरकार को असमय शहीद होने को बाध्य करेगा." वह भावुक हो चला.
       निरूत्तर होकर मैं उन दोनों को केवल देखता रहा.उनके तर्कों के आगे मैं नतमस्तक था.मेरी अंतरात्मा भी चीख उठी,"काश! रोबोट ही नेता होता!"
                                                                                             --पी०बिहारी 'बेधड़क'
रविवार विशेष- व्यंग- काश ! रोबोट ही नेता होता ! रविवार विशेष- व्यंग- काश ! रोबोट ही नेता होता ! Reviewed by Rakesh Singh on October 17, 2010 Rating: 5

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