स्कूली बच्चों ने लगाई,
गुरुजी से गुहार.
हड़पते क्यों हैं, गुरुवर ?
हमारा प्यारा पोषाहार.
दाँत पीसकर ज्ञानदाता ने
लगाई उन्हें फटकार .
करता रहूँ पोषण तुम्हारा,
खुद रहकर निराहार ?
भूख की आंच में झुलस रहा है,
हमारा अपना कुल परिवार.
भुगतान से अब आँखें चुराती,
है हमारी प्यारी सरकार.
--पी०बिहारी 'बेधड़क'
रविवार विशेष- कविता- प्यारा पोषाहार
Reviewed by Rakesh Singh
on
October 17, 2010
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