माँ के दरबार से नहीं लौटता कोई खाली हाथ –सार्वजनिक दुर्गा मंदिर

दुर्गा मंदिर मुरलीगंज
136 वर्ष पुरानी आस्था का केंद्र

मुरलीगंज स्थित सार्वजनिक दुर्गा स्थान की स्थापना का अतीत काफी रोचक और धार्मिक आस्था से परिपूर्ण है। बुजुर्गों के अनुसार यहां 1888 से ही दुर्गा पूजा मनाई जाती है।

कुश्ती विवाद से हुई दुर्गा पूजा की शुरुआत

कहा जाता है कि मुरलीगंज के पहलवानों ने रहटा गांव में दुर्गा पूजा के अवसर पर आयोजित कुश्ती प्रतियोगिता में जीत हासिल की थी। हारने वाले पहलवानों ने अपमानजनक व्यवहार करते हुए मारपीट कर दी। इससे आक्रोशित होकर उस समय के मुरलीगंज के जनप्रतिनिधियों ने निर्णय लिया कि देवी दुर्गा की प्रतिमा रहटा से लाकर मुरलीगंज में ही स्थापित की जाएगी।

हजारों की भीड़ रहटा पहुंची और वहां से प्रतिमा उठाकर मुरलीगंज लाई गई। दशमी के दिन पूजा-अर्चना कर विसर्जन किया गया। तभी से यहां लगातार दुर्गा पूजा का आयोजन होता आ रहा है।

मन्नत पूरी होने पर बना टीन मंदिर

सार्वजनिक दुर्गा स्थान कोल्हायपट्टी डुमरिया

शुरुआती दिनों में प्रतिवर्ष फूस के घरों में मूर्तियां स्थापित कर पूजा होती थी। एक बार हैजा के प्रकोप से कई लोगों की मौत हुई। इसी दौरान अनार चंद भगत गंभीर रूप से बीमार पड़ गए। उनके पिता ने माता दुर्गा से मन्नत मांगी कि पुत्र स्वस्थ हो जाए तो वे फूस के घर की जगह टीन का मंदिर बनवाएंगे।

मन्नत पूरी हुई और टीन का घर बनवाया गया, जिसमें 1987 तक पूजा-अर्चना होती रही।

चंदा कर बना भव्य मंदिर

1987 के बाद शहर के गणमान्य लोगों, व्यवसायियों और बुद्धिजीवियों ने मंदिर के जीर्णोद्धार और पुनर्निर्माण का निर्णय लिया।

इस अभियान की अगुवाई केपी महाविद्यालय के इतिहास विभागाध्यक्ष प्रो. नगेंद्र प्रसाद यादव ने की। समिति का गठन हुआ जिसमें स्व. सुखदेव दास सचिव, स्व. राजेंद्र भगत अध्यक्ष, स्व. अनार चंद भगत कोषाध्यक्ष तथा अन्य सदस्य शामिल थे।

चंदा एकत्रित कर निर्माण कार्य की नींव तत्कालीन थानाध्यक्ष स्व. पशुपति सिंह ने रखी। मंदिर परिसर में रंगमंच, बहुद्देशीय कार्य के लिए दो मंजिला भवन और अन्य ढांचागत सुविधाएं समय-समय पर जोड़ी जाती रही हैं।

बलि प्रथा मंदिर परिसर में नहीं

मंदिर परिसर में बलि प्रथा नहीं है। यहां परंपरा के अनुसार केवल पान परीक्षा की जाती है। बलि का आयोजन पास ही स्थित स्टेट हाईवे-91 किनारे शीतला माता मंदिर परिसर में किया जाता है।

श्रद्धालुओं की अटूट आस्था

यह जनमान्यता है कि सार्वजनिक दुर्गा मंदिर से कोई भी श्रद्धालु खाली हाथ नहीं लौटता। मां दुर्गा हर भक्त की मनोकामना पूरी करती हैं। यही वजह है कि 136 वर्षों से यह मंदिर आस्था, विश्वास और भक्ति का केंद्र बना हुआ है।


दुर्गा स्थान रामपुर 

- दुर्गा मंदिर रामपुर -

वहीं रामपुर में बनने वाले भव्य दुर्गा मंदिर का कार्य भी आधा अधिक संपन्न हो चुका है. वहीं पूजा समिति अन्य वर्षों के भांति इस वर्ष भी उससे बेहतर दुर्गा पूजा के सफल आयोजन को लेकर तैयारी में जुट गयी है. मेला समिति के द्वारा आस पास के कूड़े - कचड़े एवं बगल के खेत खलियान को साफ एवं मंदिर में रंग पेंट का कार्य शुरू करवाया गया. मेला समिति के सदस्य एवं अन्य सभी ग्रामीण के सहयोग से निर्माण कार्य करवाया जा रहा है

-- कोल्हायपट्टी में भव्य रूप से मनायी जाती है पूजा --

मुरलीगंज प्रखंड के अंतर्गत स्टेट हाईवे 91 मुरलीगंज बिहारीगंज  के किनारे मुरलीगंज से पांच किमी की दूरी पर अवस्थित कोल्हायपट्टी दुर्गा स्थान पर में भी हर वर्ष की भांति इस वर्ष भी दुर्गा पूजा भव्य रूप से मनाई जा रही है. यहां के बुजुर्गों ने बताया कि दुर्गा पूजा यहां लगभग 40 के दशक से मनाई जा रही है. कोल्हायपट्टी पूजा समिति के ने बताया कि इस वर्ष की पूजा ग्रामीणों के सहयोग से लगभग सारी तैयारी पूरी दी जा चुकी है. अब बहुत जल्द मंदिर के नव निर्माण की ओर भी ध्यान दिया जायेगा. इस अवसर पर ग्रामीणों द्वारा नाट्य मंचन का भी आयोजन किया गया है. जिसमें सामाजिक नाटक प्रस्तुत किया जायेगा बाहर के कलाकारों को भी आमंत्रित कर सांस्कृतिक कार्यक्रम मैया के जागरण आयोजन पर  किया जा रहा है. 1 अक्टूबर को करिश्मा पांडे एवं राहुल सिंह का भक्ति जागरण कार्यक्रम है वही 2 तारीख को वही अनुप्रिया झा एवं अजीत माहिया का जागरण कार्यक्रम आयोजित किया जाएगा इस समिति में कार्यकारी रूप से कमल किशोर यादव, राकेश रोशन, अंकेश कुमार, शिवनंदन कुमार, श्रीकांत, अनिल रजक, सुबोध रजक, बम-बम, बबलू, बृजेश कुमार है.

✍️ डॉ. संजय कुमार, मुरलीगंज (मधेपुरा)

माँ के दरबार से नहीं लौटता कोई खाली हाथ –सार्वजनिक दुर्गा मंदिर माँ के दरबार से नहीं लौटता कोई खाली हाथ –सार्वजनिक दुर्गा मंदिर Reviewed by मधेपुरा टाइम्स on September 27, 2025 Rating: 5

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