विश्वविद्यालय और विभिन्न कॉलेजों से जुड़े सूत्र बताते हैं कि वेकेंसी निकलने के बाद कॉलेजों में अनुभव प्रमाण पत्र प्रसाद की तरह बांटा गया। कहीं राजनीति और सामाजिक विवशता में तो कहीं वि.वि. से जुड़े पूर्व के माननीयों के दवाब में तो कहीं नकद नारायण लेकर भी संबद्ध कॉलेजों ने अनुभव प्रमाण पत्र जारी किया है । कहा जा रहा है कि कभी राह चलते-चलते तो कहीं घर पर बैठ कर ही विश्वविद्यालय के कथित अधिकारी अनुभव प्रमाण पत्र जारी कर दिया गया है । ना अभ्यर्थियों से कुछ जानकारी ली गई और ना हीं कोई कागजात देखा गया बल्कि बस कॉलेज के लेटर पैड पर उनके कॉलेज में वर्षों से पढ़ाने का सर्टिफिकेट भी दे दिया गया। मजे कि बात तो ये है कि बीएनएमयू के तत्कालीन कुलसचिव ने भी कॉलेजों द्वारा जारी किसी अनुभव प्रमाण पत्र की जांच नहीं की इतना हीं नहीं जाँच करने की जहमत भी नहीं उठाई और ना हीं कोई कागजात मांगे या देखे। बस कॉलेज के ही लेटर हेड पर अपना हस्ताक्षर और मोहर लगा दिया और अभ्यर्थियों को बिना कॉलेज आए और पढ़ाए अनुभव प्रमाण पत्र मानो रेवड़ी व भगवान के प्रसाद की तरह ही मिल गया। अनुभव प्रमाण पत्र सबसे अधिक यहां के कुछ माननीय और विश्वविद्यालय से जुड़े शिक्षकों और कर्मचारियों के संतानों या करीबी रिश्तेदारों को दिया गया है। वि.वि. शिक्षकों और कर्मचारियों के बीच तो इस तरह के कई नामों की चर्चा भी होती रहती है कि जिनका अनुभव प्रमाण फर्जी है। उसमें बीएनएमयू के कुछ सेवानिवृत शिक्षकों के साथ हीं कुछ माननीयों की संतान और रिश्तेदारों का नाम तो हर किसी की जुबान पर है। बीएनएमयू और उससे जुड़े संबद्ध कॉलेजों की करतूत का बखान जितना भी किया जाए, कम ही होगा।
जानकार बताते हैं कि वैसे लोगों को भी अनुभव प्रमाण पत्र जारी किया गया जिन्हें शहर छोड़े वर्षों हो बीत गए । इन लोगों को कभी ना तो शहर में देखा गया और ना कभी कॉलेज में। अधिकांश अभ्यर्थी बिहार के बाहर रह रहे हैं । फिर भी उन्हें अनुभव प्रमाण पत्र दिया गया है। इसमें एक पूर्व कुलपति और एक नामजीन पूर्व शिक्षक की संतान का नाम सबकी जुबान पर है। इतना ही नहीं दूसरा रोजगार या नौकरी कर रहे कुछ लोगों को भी अनुभव प्रमाण पत्र जारी किया गया है।
वहीं इस मामले को लेकर अब छात्र नेता मनीष कुमार जांच कर ऐसे अभ्यर्थियों और अधिकारी पर कार्रवाई मांग कर रहे हैं. इतना ही नहीं सिंडीकेट सदस्य रंजन कुमार भी मानते हैं वर्ष 2020 के दौरान भारी पैमाने पर गड़बड़ी हुई. विश्वविद्यालय के कथित अधिकारी प्रसाद की तरह अभ्यर्थियों को अनुभव प्रमाणपत्र वितरण किया था. अब जाँच चल रही है फस्ट फेज मे कई लोग दोषी भी पाए गए हैं अगर इसकी सही जाँच हुई तो दर्जनों अवैध पाए जाएँगे।
वहीं इस मामले को लेकर विश्विद्दालय के कुलसचिव प्रो. विपिन कुमार भी खुद स्वीकार कर रहे है अनुभव प्रमाणपत्र वितरण मे खामियाँ रही है. बहरहाल आयोग के निर्देशन मे जाँच चल रही है. जाँच के बाद आयोग को संचिका भेजी जाएगी और जैसा निर्णय होगा उस आधार पर विश्वविद्यालय कार्य करेगी। उन्होंने बताया कि शिक्षा विभाग के पत्र के आलोक में विभिन्न विषयों में अनुशंसित अभ्यर्थियों और पूर्व में नियुक्त सहायक प्राध्यापकों के अनुभव प्रमाण पत्रों की जांच की जा रही है। अब देखना लाजमी होगा आखिर जाँच के बाद क्या कुछ कार्रवाई होती है।

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