इसी कड़ी में सामाजिक सांस्कृतिक एवं साहित्यिक क्षेत्र में काम करने वाली संस्था सृजन दर्पण के युवा रंगकर्मी और निदेशक बिकास कुमार निर्देशित विलुप्त हो रही अपनी लोक-संस्कृति जट-जटिन ओर भईया मलहवा नृत्य-नाटिका की संदेश मूलक मंचन से लोगों को मंत्रमुग्ध कर दिया। शहर के दर्शकों के जहन में लोकनृत्य की जब भी बात होती है तो अपने पारंपरिक नृत्य शैलियों की याद आती है। सृजन दर्पण के उर्जावान कलाकारों ने नृत्य-नाटिका के माध्यम से लोकनृत्य को कलात्मक शैली में मंच पर प्रस्तुत किया।
ऐसे तो जट-जटिन मिथिला और कोशी क्षेत्र में सबसे लोकप्रिय लोकनृत्यों में से एक है। इसमें जटा-जटिन की आभूषण प्रेम और नोक-झोंक कर एक दूसरे से मांग करती है टिकवा जब हम मंगईलयो रे जट्टा टिकवा काहे नै लैली रे ...? अमूमन जट-जटिन कठिन परिस्थितियों में रह रहे स्त्री-पुरुष की कहानी कहती है तो भारतीय नारी हृदय की प्रेम को बताती है। कार्यक्रम में नृत्यांगना आंकाक्षा प्रिया जब कथक नृत्य की प्रस्तुति से मन मोह लिया। रंगकर्मियों ने कई लोकनृत्य की बेहतरीन प्रस्तुति दी जिसमें अपनी माटी की लोक-संस्कृति से जूड़े लोकनृत्य भईया मलहवा रे, नईया लगा दे नदिया के पार नृत्य नाटिका की जीवंत प्रस्तुति देखकर दर्शक वर्ग भोवविभोर हो गए.
सृजन दर्पण की कलाकारों के शानदार अभिनय को मौजूद लोगों ने ताली की गड़गड़ाहट से खूब सराहा । नृत्य-नाटिका के मुख्य किरदार में रंगकर्मी बिकास कुमार,आकांक्षा प्रिया, कृतिका रंजन,मौसम कुमारी और रेशम कुमारी आदि थे। जबकि सुरीली आवाज से युवा गायिका नेहा कुमारी और युवा गायक आलोक कुमार ने एक से बढ़कर एक ग़ज़ल से लोगों का दिल जीत लिया। वहीं प्रो. शंकर प्रसाद ने ग़ज़ल की प्रस्तुति से लोगों का मनोरंजन किये तो ओम आनंद ने तबला पर संगत किया।
मंचन को सफल बनाने में संस्था सदस्य विजय कुमार चौरसिया,सौरभ सुमन,राणा यादव,ने अहम भुमिका निभाये। मौके पर हिंदी विभागाध्यक्ष डॉ.उषा सिन्हा, डा. विनय कुमार चौधरी, डा. सिद्धेश्वर प्रसाद सिंह, डा.पूजा गुप्ता, डा. आमोल राय, प्रो. सचीद्र महतो, डा. आलोक कुमार, विभीषण कुमार, माधव कुमार, सुमेद आनंद, रूपेश कुमार, आशीष कुमार, दीपक कुमार, धीरज कुमार, शत्रुघ्न सिन्हा, सारण कुमार, राजकिशोर यादव, सुनील कुमार सहित दर्शकगण मौजूद थे।
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