भागलपुर के कुप्पाघाट से आए पूज्य स्वामी श्री निर्मला नंदन जी महाराज ने सत्संग प्रवचन देते हुए कहा कि संतों का जीवन मानवता के लिए समर्पित होता है. संत समाज को संवारने का काम करते हैं. संतो के कल्याणकारी ज्ञान से सामाजिक सद्भावना और आपसी भाईचारा बढ़ता है. महर्षि मेंही संतसेवी महाराज ऐसे ही महान संतों में से एक थे, जिन्होंने समाज को एक रोशनी देने का काम किया है. इन्होंने साम्प्रदायिक सद्भावना और राष्ट्रीय प्रेम का संदेश दिया. मानव सेवा से आत्म शुद्धि होती है. नर सेवा ही नारायण सेवा है. मानव मात्र को जाति संप्रदाय सौम्यता व भाव से ऊपर उठकर आत्म कल्याण के प्रयास को करना चाहिए. आत्मा शांति प्रभु भक्ति से ही संभव है. प्रभु भक्ति के लिए सतगुरु की शरण की आवश्यकता है. महर्षि मेंही संतसेवी परमहंस जी गुरु भक्ति के अद्वितीय मिसाल का काम किए. उन्होंने कहा कि महर्षि मेंही संतसेवी महाराज आज ही के दिन अपने गुरु महर्षि मेंही से दीक्षा लिए थे.
वहीं प्रवचन के क्रम में स्वामी विद्यानंद जी महाराज ने प्रवचन करते हुए कहा कि महर्षि संतसेवी परमहंस जी महाराज ने महर्षि मेंही महाराज को मस्तिष्क स्वरूप माना और संतसेवी महाराज के गुरु भक्ति से प्रसन्न होकर महाराज ने कहा कि जहां मैं रहूंगा वहां संतसेवी जी भी रहेंगे. स्वामी संतसेवी जी महाराज जब भी अपने गुरु की सेवा में उपस्थित होते थे तो संतसेवी जी महाराज की नजर उनके चरणों पर होती थी चेहरे पर नहीं. उनकी अद्भुत भक्ति से पता चलता था कि संतसेवी जी महाराज अपने मन मस्तिष्क में अपने गुरु को बसाए रखते थे. संत सद्गुरु महर्षि मेंही ने कहा कि "अति दिन हो के जिसने सत्संग सुमति ली अपने को सोई मेही गुरु चरण में कर ली" अर्थात जो अपने को विनम्र बनाकर रखते हैं वही सतगुरु के चरणों को पाते हैं.
वहीं महर्षि संतसेवी सत्संग मंदिर के द्वारा 200 बच्चों को कॉपी कलम व वस्त्र वितरण किए. मंच पर मौजूद संत भागलपुर से पूज्य स्वामी श्री निर्मला नंद जी महाराज, स्वामी संजीवानंद जी महाराज, स्वामी अभिषेकानंद जी महाराज एवं व्यवस्थापक श्री हंसराज चेतन, कैलाश बाबा आदि संत मौजूद थे.
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