नहीं है विभाग के पास ध्वनि प्रदूषण मापक यंत्र
डीटीओ विभाग के पास ध्वनि प्रदूषण मापक यंत्र तक नहीं है. जिससे कि वे किसी भी हॉर्न की जांच कर यह जानकारी ले सकें कि वह प्रेशर हॉर्न की श्रेणी में आता है या नहीं? बिना मापक यंत्र के ही अपने स्तर से जांच कर प्रेशर हॉर्न होने का अंदाजा लगाने के बाद जुर्माना वसूल कर गाड़ियों को छोड़ दिया जाता है.
कैसे हॉर्न आते हैं प्रेशर हॉर्न की श्रेणी में
अगर किसी हॉर्न की ध्वनि 70 डेसिबल से अधिक है, तो वह प्रेशर हॉर्न की श्रेणी में आ जाता है. इससे कम हुई तो उसे साधारण हॉर्न माना जाता है. वाहनों के शोरूम में नॉमर्ल हॉर्न ही दिये जाते हैं.
परेशान करने के लिए हैं प्रेशर हॉर्न
शहर के पानी टंकी चौक की निवासी काजल कुमारी कहती है कि कॉलेज से आते वक्त दो बार प्रेशर हॉर्न की वजह से एक्सीडेंट होते-होते रह गई. इस तरह के हॉर्न से दिमाग कुछ समय के लिए काम करना बंद कर देता है. हमें तो रोज परेशानी होती है. वहीं शहर के कॉलेज चौक के निवासी सोनी कुमारी ने कहा अपने फ्रेंड के साथ स्कूटी पर जा रही थी. लगातार प्रेशर हॉर्न बजने से काफी परेशानी हुई थी. मेरी फ्रेंड ने स्कूटी बंद कर दी. अक्सर अटेंशन पाने के लिए ऐसे हॉर्न का यूज करते हैं. शहर के पुरानी बाजार के निवासी प्रीति कुमारी ने कहा कि लोगों की आदत में शुमार हो गया है कि वह ट्रैफिक में भी खड़े होते हैं, तो हॉर्न बजा कर लोगों को परेशान करते हैं. प्रेशन हॉर्न की आवाज असहनीय होती है.
शहर के सुभाष चौक की निवासी रागिनी कुमारी ने कहा कि एक्सीडेंट तक हो जाते हैं. इससे शहर में ध्वनि प्रदूषण तो होता ही है साथ ही कई बार इससे ट्रैफिक भी जाम हो जाता है. साथ ही हमारे सुनने की कैपिसिटी भी प्रभावित होती है. शहर के मस्जिद चौक के निवासी हिमांशु कुमार ने कहा कि बेवजह हॉर्न बजाने से सड़क पर चलने के दौरान परेशानी होती है और इससे एक्सीडेंट की घटनाएं बढ़ती है. साथ ही दिल के मरीजों को इससे कई बार परेशानी होने लगती है.
(नि. सं.)

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