जनभागीदारी से ही तैयार हो बिहार क्लाइमेट एक्शन प्लान, नीति आयोग और आईआईटी के रिपोर्ट पर हुई चर्चा

मीडिया कलेक्टिव फ़ॉर क्लाइमेट इन बिहार के द्वारा जलवायु संकट के मुद्दे पर मीडिया डायलॉग का आयोजन किया गया. सीआरडी संस्था के सहयोग से आयोजित इस परिचर्चा में नीति आयोग की हालिया रिपोर्ट में बिहार की स्थिति और उसके समाधान पर विशेषज्ञों ने अपनी राय रखी. 

जेपी सेनानी और पर्यावरणविद अनिल प्रकाश ने कहा कि जलवायु संकट मानव जाति पर सबसे बड़ा खतरा है. उन्होंने कहा कि 1995 में संयुक्त राष्ट्र संघ के अधिवेशन में इस बात पर सहमति बनी थी कि सभी देश कार्बन उत्सर्जन में कमी लाने का प्रयास करेंगे लेकिन ऐसा हुआ नहीं. उन्होंने कहा कि बिहार सरकार जल, जीवन हरियाली का खूब प्रचार करती है लेकिन सच्चाई यह है कि किसी भी प्रयासों का असर नीति आयोग के रिपोर्ट में नहीं दिखा है. उन्होंने इस बात पर दुख जताया कि इतनी बड़ी आबादी को प्रभावित करने के बावजूद यह समस्या किसी भी राजनीतिक दल के एजेंडे में शामिल नहीं है. उन्होंने बिहार में आहर और पईन की खत्म होती संस्कृति पर भी चिंता जताई.

पर्यावरणविद और जल विशेषज्ञ रणजीव ने जलवायु परिवर्तन से खेती-किसानी को हो रहे संकट पर विस्तृत चर्चा की. उन्होंने कहा कि बिहार फिलहाल क्लाइमेट इमरजेंसी के दौर से गुजर रहा है. यह समस्या कोरोना संक्रमण से भी अधिक खतरनाक है. अभी हाल के दिनों में ही मानसून के हाल को देखें तो मालूम होगा कि पारिस्थितिकी में कितनी तेजी से बदलाव आया है. उन्होंने कहा कि हाल के दिनों में मक्के की फसल को बहुत ज्यादा नुकसान हुआ है. कभी भी होने वाली बेमौसम बरसात के कारण फसलों का भारी नुकसान होता है. इसी तरह कई और फसलों को भी बारिश की मार झेलनी पड़ी है. पारिस्थितिकी बदलावों को लेकर सरकार कितनी सजग है इसका पता इस बात से लगाया जा सकता है कि सरकार ने प्लास्टिक का उपयोग तो बैन कर दिया है लेकिन उत्पादन कई जगहों पर धड़ल्ले से जारी है. जबकि यह बहुत ही सरल है कि उपयोग पर प्रतिबंध से ज्यादा उत्पादन कम कर देने पर विचार करना चाहिए. 

पर्यावरण व सामाजिक न्याय कार्यकर्ता प्रिया पिल्लई ने कहा कि दुनिया में मानवाधिकार और पर्यावरण दो ऐसी चीजें है जिन पर हमेशा चर्चाएं होती रहती हैं लेकिन इन दोनों को एक साथ जोड़कर देखे जाने की आवश्यकता है. पर्यावरण भी मानवाधिकार से जुड़ा मसला है. आज जल, जंगल और जमीन को लोगों से छीनकर कॉर्पोरेट को देने की तैयारी हो रही है. सरकार इसके लिए नीतियों में भी बदलाव कर रही है. हमें इसके प्रति सजग होना होगा. उन्होंने इस बात पर बल दिया कि बिहार के क्लाइमेट एक्शन प्लान में लोगों को शामिल करने की जरूरत है क्योंकि उनके बगैर जो नीतियां बनेंगी वह विनाशकारी ही साबित होंगी. 

प्रोफेसर रूचि श्री ने नदियों के अधिकार पर विस्तृत चर्चा की. उन्होंने कहा कि हमें नदियों को एक जीवित प्राणी के रूप में देखना चाहिए न कि सिर्फ जल के एक स्रोत के रूप में. उन्होंने कहा कि नदियों के अपने अधिकार हैं. इसलिए उन्हें भी जीवित रहने दिया जाए. नदियों से कटने की वजह से ही आज कैंसर जैसे रोग और भूजल स्तर में गिरावट जैसी समस्याएं बढ़ी हैं. अगर हम नदियों को खोते जाएंगे तो कहीं न कहीं उससे जुड़ी कहानियों और संस्कृतियों को भी भूलते जाएंगे. नदियां राज्य की संपत्ति नहीं होती हैं, इस पर मानव जाति और प्रकृति का अधिकार है.

मेघ पाईन अभियान के संचालक एकलव्य प्रसाद ने कहा कि बिहार में हम सुखाड़ को सामान्य रूप से देखने लगते हैं, लेकिन इसका तभी कोई हल निकाला जा सकता है जब हम बारीकियों पर नजर दौड़ाएंगे. इन माइक्रोप्लानिंग में महिलाओं को भी जोड़ना होगा क्योंकि इस समस्या से वही सबसे अधिक प्रभावित हैं. मेघ पाईन अभियान के बारे में बताते हुए उन्होंने कहा कि 2005 से किए जा रहे काम में हमने बाढ़ के 8 अलग-अलग प्रकारों को देखा, परखा और समझा है. विडंबना यह है कि अब तक हमारी सरकारों के पास या जिला प्रशासन के पास ऐसा कोई डाटा या मैप नहीं आता जिससे कि यह मालूम हो सके कि किन जगहों पर गाद ज्यादा है. यहां पर काम करने की जरूरत है. बाढ़ प्रबंधन में इससे काफी आसानी होती है. उन्होंने कहा कि लोग बाढ़ को तो नहीं रोक सकते लेकिन हमारे पास कम से कम ऐसी कोई तकनीक या तरीके आने चाहिए कि इससे उबर कर जीवन को बेहतर तरीके से जीने की जद्दोजहद जारी रहे.

कार्यक्रम में बिहार के विभिन्न हिस्सों से पचास से अधिक प्रतिभागियों ने हिस्सा लिया. कार्यक्रम में विषय प्रवर्तन सीआरडी के अध्यक्ष पुष्यमित्र ने किया.

(नि. 

जनभागीदारी से ही तैयार हो बिहार क्लाइमेट एक्शन प्लान, नीति आयोग और आईआईटी के रिपोर्ट पर हुई चर्चा जनभागीदारी से ही तैयार हो बिहार क्लाइमेट एक्शन प्लान, नीति आयोग और आईआईटी के रिपोर्ट पर हुई चर्चा Reviewed by मधेपुरा टाइम्स on June 13, 2021 Rating: 5

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