गत फरवरी में साबरमती में छलांग लगाकर आत्महत्या करने वाली आयशा को आप नहीं भूले होंगे. ये दहेज़ के कारण प्रताड़ना झेल रही एक युवती की वो कहानी थी जिसने समूचे देश को हिलाकर रख दिया था. भारतीय समाज में बुरी तरह से व्याप्त दहेज़ प्रथा एक बार फिर चर्चा में आया तो मधेपुरा के कुछ युवाओं ने समाज को सन्देश देने के ख्याल से एक बेहतरीन शॉर्ट फिल्म बनाई है, 'Say no to Dowry'.
फिल्म की कहानी भी बेहद भावनात्मक है जो दिल को छू लेती है. कहानी एक रेस्तरां में लड़की जानवी की अपने मंगेतर से बातचीत पर आधारित है जहाँ जानवी अपने मंगेतर अविनाश का इन्तजार कर रही होती है. मंगेतर आता है और बताता है कि उसके घरवालों को होनेवाली बहू जानवी पूरी तरह से पसंद है और लगता है जैसे उन्हें एक बेटी मिल गई है. पर इसके बाद की बातचीत में जब जानवी ये बताती है कि वो अपनी सैलरी के कुछ हिस्से से अपनी बहन और माँ की जवाबदेही भी उठाये रखना चाहती है तो अविनाश कहता है कि ऐसा नहीं होता है, शादी के बाद लड़की के लिए उसका ससुराल ही सबकुछ होता है. इसके बाद जब लड़की उसके परिवार से अविनाश के घर वाले की तरफ से मांगे जा रहे दहेज़ के बारे में चर्चा करती है तो अविनाश फोन अपनी माँ को लगाकर पूछता है कि आपने मेरी कितनी कीमत लगाई है? इसबीच जानवी फोन अपने हाथ में ले लेती है और कहती है कि एक लड़की को पढ़ाने और पालने में माता-पिता को कितनी कठिनाई होती है और फिर उनका क्या, जिन्होंने अपनी बेटी को इस लायक बनाया है. क्या उनका अपनी बेटी की शादी के बाद उसपर कोई हक़ नहीं? वहाँ से निकलते हुए वह अविनाश के पास यह सवाल छोड़ जाती है कि जब वह एक वर्किंग वुमन है और उसका ये हाल है तो उनका क्या होता होगा, जो अपना घर गिरवी रखकर लड़के वाले को दहेज़ देते हैं?
बेहतर और समाज को सोचने पर मजबूर कर देने वाले संवाद कहने वाली फिल्म में जानवी की लीड रोल कर रही निधि कुमारी ने हमने इस शॉर्ट फिल्म के बारे में कई बातें की. निधि मधेपुरा के भेलवा गाँव की है और MBA की डिग्री हासिल की हुई है. वह एक्टिंग में अपना कैरिअर बनाना चाहती है. वह बताती है कि दहेज़ के कारण साबरमती में कूदकर जान दे देने वाली आयशा कि घटना ने उन्हें भी डिप्रेशन में डाल दिया था. इस शॉर्ट फिल्म का कॉन्सेप्ट उसका ही है ताकि इस मुद्दे के माध्यम से ऑडिएंस से अधिक से अधिक कनेक्ट हुआ जा सके. फिल्म में अपने अभिनय और असरदार संवाद के साथ वह न्याय करती नजर आती है.
फिल्म यूट्यूब चैनल ‘Jashn-E-Utsav’ पर अपलोड किया गया है. इस चैनल को मधेपुरा के ही कृष्णा मोहन ने तैयार किया है जो खुद इस फिल्म में मंगेतर अविनाश की भूमिका में हैं. पटकथा सौरभ ने लखी है जबकि निर्देशन विभांशु शेखर ने किया है जो चेन्नई में इंजीनियर हैं और लॉकडाउन में मधेपुरा में हैं. कैमरा और सिनेमेटोग्राफी रोशन कुमार की है जो एक बेहद अच्छे फोटोग्राफर भी हैं और एडिटिंग प्रशांत सिंह की है. एक बेहद सराहनीय बात यह भी है कि ये सारे मधेपुरा जिले के ही रहने वाले हैं.
यूट्यूब चैनल ‘Jashn-E-Utsav’ तैयार करने वाले कृष्णा मोहन जीव विज्ञान से स्नातक है और उनका लक्ष्य कवि, लेखक और गीतकार (हिंदी, उर्दू) बनाना है. जश्न-ए-उत्सव बनाने के उद्देश्य के बारे में उनका कहना है कि हमारे मधेपुरा के कवि, लेखक, गीतकार जो अपनी पहचान बनाने के लिए संघर्षरत हैं, उनके लिए प्लेटफार्म का निर्माण करना है जहाँ से उनकी विशेषता लोगों तक पहुँच सके. वे बताते हैं कि पहले तो लेखन के क्षेत्र के लोगों के लिए ही कुछ करने की इच्छा थी परन्तु अब हर क्षेत्र के लोगों की प्रतिभा को निखारने का कार्य करना चाहता हूँ.
जाहिर है, मधेपुरा में यदि ज्वलंत मुद्दे पर आधारित समाज को जागरूक करने वाली ऐसी शॉर्ट फ़िल्में बन रही हैं तो इसका स्वागत होना चाहिए.
'Say no to Dowry' इस लिंक पर उपलब्ध है, इसे जरूर देखें.
(Report: R.K.Singh)

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