पराक्रम दिवस के अवसर पर “एन इंडियन पिलग्रिम”- नेताजी का जीवन और उनकी प्रासंगिकता विषय पर वेबिनार का किया गया आयोजन
वेबिनार की अध्यक्षता करते हुए पीआईबी तथा आरओबी के अपर महानिदेशक एसके मालवीय ने कहा कि नेताजी सुभाष चंद्र बोस के योगदान को दो मुख्य रूपों में देखा जा सकता है- पहला, नेता जी द्वारा डोमिनियन स्टेट या अन्य किसी भी प्रकार के राजनीतिक समझौता की जगह पूर्ण स्वराज की मांग करना और दूसरा भारत के स्वतंत्रता संग्राम में तेजी लाने में उनका महत्वपूर्ण योगदान। उन्होंने कहा कि हम लोगों को देश के महान विभूतियों को किसी जाति, धर्म, संप्रदाय या क्षेत्रवाद में नहीं बांधना चाहिए।
अतिथि वक्ता के रूप में शामिल जाने-माने इतिहासकार रत्नेश्वर मिश्रा ने कहा कि नेताजी सुभाष चंद्र बोस भारतीय स्वतंत्रता के एक महान तीर्थयात्री थें, जिनका सपना था भारत की आजादी। उन्होंने कहा कि नेताजी पर गीता के संदेशों का बहुत गहरा प्रभाव था और यही वजह है कि वह भारतीय आध्यात्मिकता के भी द्योतक कहे जाते हैं। नेताजी मूल रूप से दो विश्वासों को आत्मसात किए हुए थे-आध्यात्मिकता और राष्ट्रवाद। उन्होंने कहा कि केवल यह कहना कि गांधीजी और नेताजी में मतांतर था, यह पूरी तरह सत्य नहीं है। नेताजी ने ही गांधी जी को राष्ट्रपिता कहा था। वहीं गांधी जी ने भी नेताजी को सबसे महान देशभक्त कहा था। उन्होंने कहा कि नेताजी हमेशा सोशलिज्म और फ़ासिज़्म में मेल कराना चाहते थे। उन्होंने कहा कि नेताजी ने बर्लिन में आजाद भारत केंद्र, आजाद भारत सेना और आजाद हिंद रेडियो की स्थापना की, जिसका दूरगामी प्रभाव भारत के स्वतंत्रता आंदोलन पर पड़ा।
अतिथि वक्ता के रूप में शामिल बिहार विधान परिषद्, पटना के परियोजना पदाधिकारी बी एल दास ने कहा कि नेताजी राष्ट्रवाद की भावना से ओतप्रोत थे। नेताजी का जीवन मुख्य रूप से तीन महान विभूतियों से प्रभावित था- पहला स्वामी विवेकानंद, दूसरा चितरंजन दास और तीसरा गुरु बेनीमाधव दास। नेताजी देशबंधु चितरंजन दास को अपना आदर्श गुरु मानकर ही भारत के स्वतंत्रता आंदोलन में शामिल हुए थे। नेताजी के राजनीतिक जीवन पर विस्तार से चर्चा करते हुए उन्होंने कहा कि नेता जी सुभाष चंद्र बोस के भाषणों को अगर हम पढ़ें तो उनके विचार आज भी पूरी तरह प्रासंगिक नजर आएंगे। उनके विचारों को हम लोगों को अंगीकार करने की आवश्यकता है।
अतिथि वक्ता के रूप में शामिल दिल्ली विश्वविद्यालय में राजनीतिक विज्ञान के प्रोफेसर एवं डेवलपिंग कंट्रीज़ रिसर्च सेंटर (डीडीआरसी), नई दिल्ली के निदेशक श्री सुनील कुमार चौधरी ने कहा कि नेताजी सुभाष चंद्र बोस के दर्शन, विचारधारा और रणनीति के आधार पर उन्हें 'इंडियन अलेक्जेंडर' कहा जाता है। उन्होंने कहा कि नेताजी स्वामी परमहंस के आध्यात्मिक विचारों और स्वामी विवेकानंद के राष्ट्रवाद के विचारों से बहुत ज्यादा प्रेरित थे। चितरंजन दास से प्रभावित होने के कारण ही वे भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के साथ जुड़े। उन्होंने कहा कि भगवत गीता नेताजी के प्रेरणा के स्रोत थे और उन्होंने इसे अपने विद्यार्थी जीवन में ही आत्मसात कर लिया था। नेताजी में भारतीय संस्कृति कूट-कूट कर भरी हुई थी। नेताजी राष्ट्रवादी समाजवाद के माध्यम से आजादी पाना चाहते थे। उन्होंने कहा कि नेताजी की रणनीति उनकी लामबंदी, संगठन कार्य एवं क्रियान्वयन में था।
वेबिनार में विषय प्रवेश संबोधन के दौरान दूरदर्शन (समाचार), पटना के सहायक निदेशक सलमान हैदर ने कहा कि नेताजी और गांधीजी की विचार धाराएं भले ही समान न रहे हों लेकिन दोनों का ही लक्ष्य भारत की आजादी था। उन्होंने कहा कि जहां एक ओर नेताजी युवाओं को आजादी के लिए प्रेरित करते थे, वही गांधीजी अहिंसा के मार्ग से भारत की आजादी चाहते थे।
वेबिनार में पीआईबी के निदेशक दिनेश कुमार तथा दूरदर्शन (समाचार), पटना एवं आरओबी के निदेशक विजय कुमार ने भी अपने विचार रखें।
वेबिनार का संचालन करते हुए पीआईबी, पटना के सहायक निदेशक संजय कुमार ने कहा कि “तुम मुझे खून दो मैं तुम्हे आजादी दूँगा" यह सिर्फ नारा नहीं है बल्कि एक आन्दोलन था लोगों को गोलबंद करने का मन्त्र था। इस नारे को अँग्रेजी हुकूमत के खिलाफ दिया था भारत के स्वतन्त्रता संग्राम के अग्रणी योद्धा आज़ाद हिन्द फौज के संस्थापक सुभाष चन्द्र बोस जी नेI उन्हें पूरा विश्व नेता जी के नाम से संबोधित करते हुये सम्मान देता है । इस महान सपुत्र की 125 वीं जयन्ती पर पूरा राष्ट्र उन्हें नमन कर रहा है और उनके व्यक्तित्त्व और कृतित्व को आत्मसात करने का संकल्प ले रहा है।
फील्ड आउटरीच ब्यूरो (एफओबी), सीतामढ़ी के क्षेत्रीय प्रचार अधिकारी जावेद अख्तर अंसारी ने धन्यवाद ज्ञापन किया। वेबिनार में बिहार स्थित सभी एफओबी के अधिकारियों एवं कर्मचारियों सहित अनेक श्रोताओं ने हिस्सा लिया। (वि.)
No comments: