कोशी शिखर सम्मेलन के अंतर्गत होने वाले मिथिला पेंटिंग वर्कशॉप की आज से शुरुआत हो गयी। इस दौरान दर्जनों की संख्या में छात्र-छात्राओं को प्रशिक्षण दिया गया।
मिथिला पेंटिंग की ट्रेनिंग दे रही अर्चना मिश्रा ने बताया कि मिथिला चित्रकारी आज किसी परिचय का मोहताज नहीं है.. ये भारत ही नहीं वरन विश्व भर में अपनी वर्णनात्मक चित्रशैली, ज्यामितिक-तान्त्रिक शब्दावली, सूक्ष्म कचनी व भरनी और चटख रंगों की वजह से अलग पहचान बना चुका है। इस कला को भारतीय लोक कलाओं का सिरमौर बोल सकते हैं।
मिथिला चित्रकारी पीढ़ी-दर-पीढ़ी चली आ रही लोक परंपराओं का अनूप उदाहरण हैं. इस चित्रकला में प्राय: पौराणिक प्रसंगों का चित्रण किया जाता है जैसे राम-सीता विवाह, शिव-पार्वती, राधा-कृष्ण, नौकाम योगिनियों से बनी हथिनी पर सवार कामदेव, अर्द्धनारीश्वर आदि।
महीन कचनी, बारीक भरनी, अलग-अलग रंगों का सटीक समन्वय, दोहरी लाइन और बारीक बार्डर इस चित्रकारी की विशेषता है। खाली जगहों को भरने के लिए कलाकार कयलदह, बर्रे और बांस, लटपटिया सुग्गा, मछली और मोर आदि बनाते हैं जो चित्र को सजीवात्मक बनाते हैं।
कोशी शिखर सम्मेलन के कुणाल कश्यप ने बताया कि इस वर्कशॉप का मुख्य उद्देश्य कोशी क्षेत्र में छात्रों, नवयुवकों व कलाप्रेमियों को अपनी मैथिल लोक संस्कृति से रूबरू करवाना है। हम कोशी जन जो शायद समय के बहाव में अपने मैथिल संस्कृति से दूर होते जा रहे हैं वहां इस तरह के आयोजन का होना अति आवश्यक ताकि यहाँ के नवतुरिया को अपनी लोक परंपराओं के मुख्यधारा से जोड़े रख सकें।
इस मौके पर शिवम वर्मा, शालिनी सिंह, यश दीपांकर, भास्कर भारती, रूपा, आकृति समेत दर्जनों छात्र-छात्राएं मौजूद थे।
(नि. सं.)
मिथिला पेंटिंग की ट्रेनिंग दे रही अर्चना मिश्रा ने बताया कि मिथिला चित्रकारी आज किसी परिचय का मोहताज नहीं है.. ये भारत ही नहीं वरन विश्व भर में अपनी वर्णनात्मक चित्रशैली, ज्यामितिक-तान्त्रिक शब्दावली, सूक्ष्म कचनी व भरनी और चटख रंगों की वजह से अलग पहचान बना चुका है। इस कला को भारतीय लोक कलाओं का सिरमौर बोल सकते हैं।
मिथिला चित्रकारी पीढ़ी-दर-पीढ़ी चली आ रही लोक परंपराओं का अनूप उदाहरण हैं. इस चित्रकला में प्राय: पौराणिक प्रसंगों का चित्रण किया जाता है जैसे राम-सीता विवाह, शिव-पार्वती, राधा-कृष्ण, नौकाम योगिनियों से बनी हथिनी पर सवार कामदेव, अर्द्धनारीश्वर आदि।
महीन कचनी, बारीक भरनी, अलग-अलग रंगों का सटीक समन्वय, दोहरी लाइन और बारीक बार्डर इस चित्रकारी की विशेषता है। खाली जगहों को भरने के लिए कलाकार कयलदह, बर्रे और बांस, लटपटिया सुग्गा, मछली और मोर आदि बनाते हैं जो चित्र को सजीवात्मक बनाते हैं।
कोशी शिखर सम्मेलन के कुणाल कश्यप ने बताया कि इस वर्कशॉप का मुख्य उद्देश्य कोशी क्षेत्र में छात्रों, नवयुवकों व कलाप्रेमियों को अपनी मैथिल लोक संस्कृति से रूबरू करवाना है। हम कोशी जन जो शायद समय के बहाव में अपने मैथिल संस्कृति से दूर होते जा रहे हैं वहां इस तरह के आयोजन का होना अति आवश्यक ताकि यहाँ के नवतुरिया को अपनी लोक परंपराओं के मुख्यधारा से जोड़े रख सकें।
इस मौके पर शिवम वर्मा, शालिनी सिंह, यश दीपांकर, भास्कर भारती, रूपा, आकृति समेत दर्जनों छात्र-छात्राएं मौजूद थे।
(नि. सं.)
कोशी शिखर सम्मेलन: मिथिला पेंटिंग वर्कशॉप में ट्रेनिंग दे रही अर्चना मिश्रा
Reviewed by मधेपुरा टाइम्स
on
January 27, 2020
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