


उन्होंने बताया कि यह स्पष्ट बात है कि वर्तमान शिक्षा प्रणाली अपना दायित्व पूर्ण नहीं कर पा रही है. छात्रों के चारित्रिक विकास के लिए पाठ्यक्रम में नैतिक शिक्षा को भी जोड़ा गया लेकिन फिर भी कोई परिवर्तन नजर नहीं आ रहे. प्रश्न यह उठता है की मूल्य आधारित शिक्षा के साथ वह कौन सी विद्या प्रदान की जाए कि छात्रों के व्यक्तित्व में आमूल परिवर्तन आ आए जो समाज के लिए एक महत्वपूर्ण भूमिका निभा पाए?
पाश्चात्य अनुकरण ने भारतीय शिक्षा पर किया है प्रहार
विद्यार्थियों के दिमाग को सिर्फ बाहरी जानकारियों का गोदाम न बनाया जाए बल्कि इसके साथ ही उनमें जीवन संबंधित मूल्यों को भी रोपित किया जाए ताकि उससे व्यवहारिक आदर्शें व नैतिक मूल्यों की फसल पैदा हो सके. बच्चों की प्रज्ञा में सनातन संस्कार डालने के लिए हमें उसी पद्धति को अपनाना होगा जो पद्धति वैदिक काल में प्रचलित थी जिसमें शिक्षा के साथ-साथ दीक्षा को भी महत्व दिया गया. ताकि शिक्षा प्राप्त करने के बाद बच्चा विध्वंसात्मक कार्य न करे बल्कि उसके कार्य सृजनात्मक दृष्टिकोण को लेकर हों. वर्तमान शिक्षा प्रणाली रोग के लिए औषधि के सेवन की बात तो करती है लेकिन वे यह नहीं जानती कि औषधि क्या है. उस औषधि को शिक्षा से नहीं अपितु दीक्षा के माध्यम से पता चलेगा. दीक्षा समन्वित शिक्षा प्रणाली ही वर्तमान काल में नैतिकता व चारित्रिक उत्थान की घोतक है. आधुनिक शिक्षालयों में दीक्षा प्रदान नहीं की जा सकती क्योंकि यह एक तत्ववेता महापुरुष का ही कार्य है. आत्मिक विकास न होने के कारण आधुनिक शिक्षा प्रणाली दीक्षा के बिना अपूर्ण है. इसलिए केवल कोरी शिक्षा नहीं अपितु दीक्षा की भी परम आवश्यकता है, जिससे मानव सदा विवेकशील कर्म ही करे.
आज ऐसी मूल्याधरित शिक्षा श्री आशुतोष महाराज जी के दिव्य मार्गदर्शन में ‘संपूर्ण विकास केन्द्र.मंथन द्वारा समाज में पहुँचाई जा रही है. विशेषकर जिसमें समाज के गरीब बच्चों को शिक्षित किया जा रहा है. जहाँ केवल उनका बौद्धिक विकास ही नहीं बल्कि आत्मिक उत्थान भी हो रहा है. आगे उन्होंने बताया कि किस प्रकार भक्त प्रह्लाद ने ईश्वर भक्ति के सम्मुख आज के प्रवचन में सुश्री कालंदी भारती जी भक्त पहलाद के चरित्र का चित्रण एवं भक्ति प्रस्तुति की गई.
हिरणयकश्यप द्वारा दिए जाने वाले नाना प्रकार की यातनाओं की परवाह नहीं की तथा कोई भी प्रलोभन एवं बाध उसे भक्ति.मार्ग से विचलित नहीं कर पाई. साध्वी जी ने इस प्रसंग में बताया कि मुश्किल से मुश्किल घड़ी में भी भक्त घबराता नहीं, धैर्य नहीं छोड़ता! क्योंकि भक्त चिन्ता नहीं, सदा चिन्तन करता है और जो ईश्वर का चिन्तन करता है वह स्वतः ही चिन्ता से मुक्त हो जाता है. भगवान श्रीकृष्ण कहते हैं जो भक्त मुझे अनन्य भाव से भजते हैं उसका योगक्षेम स्वयं मैं वहन करता हूँ. परंतु ईश्वर का चिन्तन तभी होगा जब हम ईश्वर को देखेंगे और पूर्णसत्गुरु के बिना ईश्वर का दर्शन संभव नहीं है, पूर्णसतगुरु ब्रह्मज्ञान के दीक्षा प्रदान कर ईश्वर को हमारे भीतर ही दिखाते हैं.
अंत में उन्होंने बतलाया कि जिस तरह हवा के अस्तित्व को देख पाना या साबित कर पाना संभव नहीं है उसी तरह ईश्वर के अस्तित्व को साबित कर पाना संभव नहीं है मात्र सच्चे अनुभूति से और सच्चे सेवा भाव से अपनी आत्मा में परमात्मा का स्वरूप देख सकते हैं.

मौसम की बूंदाबांदी और कड़ाके की ठंड के बावजूद भागवत कथा में भक्तजनों की भीड़
Reviewed by मधेपुरा टाइम्स
on
December 18, 2018
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