चल रहा नौ दिवसीय श्रीमद् भागवत महापुराण कथा ज्ञान यज्ञ: दूसरे दिन भक्तजनों की बड़ी तादाद पहुंची यज्ञ स्थल
मधेपुरा जिले के मुरलीगंज में "दिव्य ज्योति जाग्रति संस्थान" की ओर से चल रहे रहे नौ दिवसीय श्रीमद् भागवत महापुराण कथा ज्ञान यज्ञ के दूसरे दिनश्री आशुतोष महाराज जी की शिष्या साध्वी सुश्री कालिंदी भारती ने नशे से होने वाले दुष्प्रभाव की ख़ास चर्चा की.
सर्वप्रथम बताया कि राजा परीक्षित ने कलिकाल (कलयुग) को रहने के लिए चार स्थान प्रदान करते हैं - जहां मदिरा का पान हो, परस्त्री संग हो, जुआ खेला जाता हो एवं जहां हिंसा हो। इन चारों स्थानों पर कलयुग का निवास है। साध्वी जी ने कहा कि आज समाज का हर वर्ग नशे के नागपाश में जकड़ चुका है। आर्थिक मंदी, बेरोजगारी, निरंतर तनाव व दबाव तथा पल-पल बढ़ती प्रतिस्पर्धा ने आज युवा पीढ़ी को नशे को का पथिक बना दिया है। आजाद देश का वासी होते हुए भी वह नशे की गिरफ्त में आकर पराधीनता का जीवन व्यतीत कर रहा है। आज वही युवा अपने देश के भविष्य पर प्रश्न चिन्ह बनकर खड़ा हो गया है। नशों के व्यापार को संरक्षण देने वाले इस बात को समझ नहीं रहे हैं की चंद पैसों की खातिर वहां अपने ही देश को किस गर्त में धकेल रहा हैं। भारत के हर एक शहर में अफीम, स्मैक, चरस, गांजा, कोकीन इत्यादि भेजने वाले सौदागर सक्रिय है। बड़े शहरों में नशीला दवाइयों की मंडियों में करोड़ों रुपए का कारोबार होता है। नशे के इस ने दैत्य विकराल रूप धारण कर देश के युवा वर्ग को खोखला करता जा रहा है। देश के लगभग 73 मिलियन लोग नशे के आदी हो चुके हैं जिनमें से 24% की उम्र तो 18 साल से भी कम है। यह वह जुआ है शक्ति है जिसके आधार पर हम 2020 में विकसित राष्ट्र और 2045 तक विश्व की महाशक्ति बनने का स्वप्न देख रहे हैं, वे नशे की कटीली राहों पर भटक रही है। ।
हारे-थके मन से कोई युवा नहीं होता। यौवन तो वह है जो अपने महावेग से समस्याओं के पर्वत शिखरों को काट दे । साध्वी जी ने कहा कि समाज के प्रत्येक समस्या जड़ में नशा ही है इसका समाधान भी मन के स्तर पर ही होना चाहिए। जब तक मानव मन को नियंत्रित करने की पद्धति नहीं प्रदान की जाती तब तक समाज में भयानक कुरीतियां वह व्याधियां जन्म लेती रहती हैं। इस मन को काबू में करने हेतु ब्रह्म ज्ञान की नितांत आवश्यकता है। जिससे विवेक शक्ति जागृत करना परम आवश्यक है। व्यक्ति मन में उठती दुर्भावनाओं व वासनाओं पर नियंत्रण रख सकता है। नशा उपचार हेतु सरकारी, गैर सरकारी संगठनों द्वारा उपचार साधन या पद्धति लागू हो चुकी है लेकिन यह कितनी कारगर सिद्ध हो रही है यह किसी से भी नहीं छिपा है। भारत का ड्रग रिकॉर्ड कहता है कि उपचार के बावजूद भी 80% नशाखोर फिर से नशा करने लगते हैं। उपचार प्रक्रिया से गुजरने के बाद उनका शरीर नशा मुक्त हो जाता है और नशे की लत दिमाग से नहीं निकल पाती। इन पद्धतियों के बारे में जितनी भी जानकारियां उपलब्ध हुई है, उनके विषय में व्यवस्थित वह उचित खोज अभी शेष है। समाज में फायदे नशे की समस्या पर रोक लगाने के लिए तथा जन-मानस का सही मार्गदर्शन करने के लिए संस्थान के संस्थापक व संचालक सर्व श्री आशुतोष महाराज जी ने "बोद्ध" नामक नशा उन्मूलन कार्यक्रम की स्थापना की, जिसके अंतर्गत विज्ञान की पद्धति के द्वारा हजारों की संख्या में लोग नशा मुक्त हो चुके हैं।
बालक ध्रुव के बाल काल के प्रसंगों की चर्चा
सुश्री कालिंदी भारती ने ध्रुव प्रसंग का व्याख्यान करते हुए साध्वी जी ने बताया कि ध्रुव की अभी बाल्यावस्था है, लेकिन वह प्रभु से मिलने की उत्कंठा लिए वन में जाकर तपस्या करना शुरु कर देता है। जहां पर उसकी भेंट नारद जी से होती है जो उसको ब्रह्म ज्ञान प्रदान कर घट (अपने ) भीतर ही ईश्वर के प्रत्यक्ष दर्शन करवा देते हैं। आज मानव भी प्रभु से मिलने के लिए तत्पर हैं लेकिन उसके पास प्रभु प्राप्ति का कोई साधन नहीं है। हमारे समस्त वेद-शास्त्रों व धार्मिक ग्रंथों में यही लिखा है कि ब्रह्म ज्ञान की प्राप्ति के लिए केवल गुरु की शरण मे जाना पड़ता है। गुरु ही शिष्य के अज्ञान तिमिर को दूर कर उसमें ज्ञान रूपी प्रकाश को उजागर कर देता है। । गुरु ही है जो जीव और परमात्मा के मध्य एक सेतु का कार्य करता है। परमात्मा जो अमृत का सागर है किंतु मानव उस अमृत पान से सदा वंचित रह जाता है। पिपासु मनुष्य तक मेघ बनकर जो अमृत की धारा पहुंचाता है वह सद्गुरु है। सद्गुरु से संबंध हुए बिना ज्ञान नहीं हो सकता। गुरु इस संसार सागर से पार उतारने वाले हैं मनुष्य उस ज्ञान को पाकर भवसागर से पार और कृत्य कृत्य हो जाता है।
साध्वी कालिंदी भारती जी ने कहा कि अगर आप भी उस परमात्मा को जानना चाहते हैं तो आपको भी ऐसा ही मार्गदर्शक चाहिए। जो सूर्य प्रकाशमय तत्व है और चंद्रमा की प्रकाशमय है, किंतु चंद्रमा का अपना कोई प्रकाश नहीं है। जब सूर्य सुबह प्रकाशित होता है तब उसी के ही प्रकाश से ही चंद्रमा तपता रहता है और रात को वही ताप शीतल होकर शीतलता प्रदान करता है। शीतलता प्रदान करने वाला ज्ञान को आगे फैलाता है। कबीर जी को प्रकाशित करने वाले सूर्य रूपी गुरु रामानंद जी थे, नरेंद्र को विवेकानंद बनाने वाले श्रेष्ठ गुरु स्वामी रामकृष्ण परमहंस जी थे, शिवाजी मराठा के अपरिमित बल के पीछे समर्थ गुरु रामदास जी की असीम शक्ति व प्रेरणा कार्यरत थी। अतः गुरु के बिना हम भी उस परमात्मा तक कदापि नहीं पहुंच सकते।
कथा व्यास सुश्री कालिंदी भारती के अलावे स्वामी श्री कुलविंदर जी, गुरुभाई श्री सुनील जी, गुरुभाई श्री अमृत जी, स्वामी श्री विनयानंद जी, साध्वी सुश्री सर्वसुखी भारती, सुश्री किरण भारती, पूर्णिमा भारती, ममतामयी भारती जी ने भजनों में अपने मधुर कंठ से आवाज दिया एवं सुश्री हरिप्रीता भारती जी ने वायलिन, सुश्री हरिअर्चणा भारती जी ने सेंथसाइजर से, सुश्री निवृत्ति भारती जी ने सितार, तथा नीलम भारती जी ने बाँसुरी आदि की सुमधुर धुनों से भजनों को और भी मधुरित कर दिया एवं स्वामी श्री कुलवीरानंद जी ने तबला गुरुभाई सचिन जी ने ढोलक एवं गुरुभाई दलजीत जी ने अक्टोपेड आदि से ताल दिया।
सर्वप्रथम बताया कि राजा परीक्षित ने कलिकाल (कलयुग) को रहने के लिए चार स्थान प्रदान करते हैं - जहां मदिरा का पान हो, परस्त्री संग हो, जुआ खेला जाता हो एवं जहां हिंसा हो। इन चारों स्थानों पर कलयुग का निवास है। साध्वी जी ने कहा कि आज समाज का हर वर्ग नशे के नागपाश में जकड़ चुका है। आर्थिक मंदी, बेरोजगारी, निरंतर तनाव व दबाव तथा पल-पल बढ़ती प्रतिस्पर्धा ने आज युवा पीढ़ी को नशे को का पथिक बना दिया है। आजाद देश का वासी होते हुए भी वह नशे की गिरफ्त में आकर पराधीनता का जीवन व्यतीत कर रहा है। आज वही युवा अपने देश के भविष्य पर प्रश्न चिन्ह बनकर खड़ा हो गया है। नशों के व्यापार को संरक्षण देने वाले इस बात को समझ नहीं रहे हैं की चंद पैसों की खातिर वहां अपने ही देश को किस गर्त में धकेल रहा हैं। भारत के हर एक शहर में अफीम, स्मैक, चरस, गांजा, कोकीन इत्यादि भेजने वाले सौदागर सक्रिय है। बड़े शहरों में नशीला दवाइयों की मंडियों में करोड़ों रुपए का कारोबार होता है। नशे के इस ने दैत्य विकराल रूप धारण कर देश के युवा वर्ग को खोखला करता जा रहा है। देश के लगभग 73 मिलियन लोग नशे के आदी हो चुके हैं जिनमें से 24% की उम्र तो 18 साल से भी कम है। यह वह जुआ है शक्ति है जिसके आधार पर हम 2020 में विकसित राष्ट्र और 2045 तक विश्व की महाशक्ति बनने का स्वप्न देख रहे हैं, वे नशे की कटीली राहों पर भटक रही है। ।
हारे-थके मन से कोई युवा नहीं होता। यौवन तो वह है जो अपने महावेग से समस्याओं के पर्वत शिखरों को काट दे । साध्वी जी ने कहा कि समाज के प्रत्येक समस्या जड़ में नशा ही है इसका समाधान भी मन के स्तर पर ही होना चाहिए। जब तक मानव मन को नियंत्रित करने की पद्धति नहीं प्रदान की जाती तब तक समाज में भयानक कुरीतियां वह व्याधियां जन्म लेती रहती हैं। इस मन को काबू में करने हेतु ब्रह्म ज्ञान की नितांत आवश्यकता है। जिससे विवेक शक्ति जागृत करना परम आवश्यक है। व्यक्ति मन में उठती दुर्भावनाओं व वासनाओं पर नियंत्रण रख सकता है। नशा उपचार हेतु सरकारी, गैर सरकारी संगठनों द्वारा उपचार साधन या पद्धति लागू हो चुकी है लेकिन यह कितनी कारगर सिद्ध हो रही है यह किसी से भी नहीं छिपा है। भारत का ड्रग रिकॉर्ड कहता है कि उपचार के बावजूद भी 80% नशाखोर फिर से नशा करने लगते हैं। उपचार प्रक्रिया से गुजरने के बाद उनका शरीर नशा मुक्त हो जाता है और नशे की लत दिमाग से नहीं निकल पाती। इन पद्धतियों के बारे में जितनी भी जानकारियां उपलब्ध हुई है, उनके विषय में व्यवस्थित वह उचित खोज अभी शेष है। समाज में फायदे नशे की समस्या पर रोक लगाने के लिए तथा जन-मानस का सही मार्गदर्शन करने के लिए संस्थान के संस्थापक व संचालक सर्व श्री आशुतोष महाराज जी ने "बोद्ध" नामक नशा उन्मूलन कार्यक्रम की स्थापना की, जिसके अंतर्गत विज्ञान की पद्धति के द्वारा हजारों की संख्या में लोग नशा मुक्त हो चुके हैं।
बालक ध्रुव के बाल काल के प्रसंगों की चर्चा
सुश्री कालिंदी भारती ने ध्रुव प्रसंग का व्याख्यान करते हुए साध्वी जी ने बताया कि ध्रुव की अभी बाल्यावस्था है, लेकिन वह प्रभु से मिलने की उत्कंठा लिए वन में जाकर तपस्या करना शुरु कर देता है। जहां पर उसकी भेंट नारद जी से होती है जो उसको ब्रह्म ज्ञान प्रदान कर घट (अपने ) भीतर ही ईश्वर के प्रत्यक्ष दर्शन करवा देते हैं। आज मानव भी प्रभु से मिलने के लिए तत्पर हैं लेकिन उसके पास प्रभु प्राप्ति का कोई साधन नहीं है। हमारे समस्त वेद-शास्त्रों व धार्मिक ग्रंथों में यही लिखा है कि ब्रह्म ज्ञान की प्राप्ति के लिए केवल गुरु की शरण मे जाना पड़ता है। गुरु ही शिष्य के अज्ञान तिमिर को दूर कर उसमें ज्ञान रूपी प्रकाश को उजागर कर देता है। । गुरु ही है जो जीव और परमात्मा के मध्य एक सेतु का कार्य करता है। परमात्मा जो अमृत का सागर है किंतु मानव उस अमृत पान से सदा वंचित रह जाता है। पिपासु मनुष्य तक मेघ बनकर जो अमृत की धारा पहुंचाता है वह सद्गुरु है। सद्गुरु से संबंध हुए बिना ज्ञान नहीं हो सकता। गुरु इस संसार सागर से पार उतारने वाले हैं मनुष्य उस ज्ञान को पाकर भवसागर से पार और कृत्य कृत्य हो जाता है।
साध्वी कालिंदी भारती जी ने कहा कि अगर आप भी उस परमात्मा को जानना चाहते हैं तो आपको भी ऐसा ही मार्गदर्शक चाहिए। जो सूर्य प्रकाशमय तत्व है और चंद्रमा की प्रकाशमय है, किंतु चंद्रमा का अपना कोई प्रकाश नहीं है। जब सूर्य सुबह प्रकाशित होता है तब उसी के ही प्रकाश से ही चंद्रमा तपता रहता है और रात को वही ताप शीतल होकर शीतलता प्रदान करता है। शीतलता प्रदान करने वाला ज्ञान को आगे फैलाता है। कबीर जी को प्रकाशित करने वाले सूर्य रूपी गुरु रामानंद जी थे, नरेंद्र को विवेकानंद बनाने वाले श्रेष्ठ गुरु स्वामी रामकृष्ण परमहंस जी थे, शिवाजी मराठा के अपरिमित बल के पीछे समर्थ गुरु रामदास जी की असीम शक्ति व प्रेरणा कार्यरत थी। अतः गुरु के बिना हम भी उस परमात्मा तक कदापि नहीं पहुंच सकते।
कथा व्यास सुश्री कालिंदी भारती के अलावे स्वामी श्री कुलविंदर जी, गुरुभाई श्री सुनील जी, गुरुभाई श्री अमृत जी, स्वामी श्री विनयानंद जी, साध्वी सुश्री सर्वसुखी भारती, सुश्री किरण भारती, पूर्णिमा भारती, ममतामयी भारती जी ने भजनों में अपने मधुर कंठ से आवाज दिया एवं सुश्री हरिप्रीता भारती जी ने वायलिन, सुश्री हरिअर्चणा भारती जी ने सेंथसाइजर से, सुश्री निवृत्ति भारती जी ने सितार, तथा नीलम भारती जी ने बाँसुरी आदि की सुमधुर धुनों से भजनों को और भी मधुरित कर दिया एवं स्वामी श्री कुलवीरानंद जी ने तबला गुरुभाई सचिन जी ने ढोलक एवं गुरुभाई दलजीत जी ने अक्टोपेड आदि से ताल दिया।
चल रहा नौ दिवसीय श्रीमद् भागवत महापुराण कथा ज्ञान यज्ञ: दूसरे दिन भक्तजनों की बड़ी तादाद पहुंची यज्ञ स्थल
Reviewed by मधेपुरा टाइम्स
on
December 16, 2018
Rating:
No comments: