साहित्य अकादेमी नई दिल्ली एवं रमेश झा महिला महाविधालय सहरसा के संयुक्त
तत्वावधान में द्विदिवसीय ‘आधुनिक
मैथिली साहित्यिक शिल्पी’ विषयक संगोष्ठी में मैथिली साहित्य
के नामचीन शख्सियतों की भागीदारी रही .
कार्यक्रम का शुभारम्भ विद्यापति की रचना ‘जय-जय
भैरवी असुर भयाओनि’ गीत से हुई. अतिथियों ने दीप प्रज्ज्वलित
कर संगोष्ठी का शुभारम्भ किया साहित्य अकादेमी के विशेष कार्याधिकारी डा.
देवेन्द्र कुमार देवेश ने स्वागत भाषण में अतिथियों का अभिनन्दन करते हुए अकादेमी
के साहित्यिक व रचनात्मक कार्यों को रेखांकित करते हुए कहा कि साहित्य अकादेमी 24
भारतीय भाषाओं के उन्नयन के लिए कार्य कर रही है. मौलिक व युवा लेखन को
प्रोत्साहित करना देश के गाँव तक पहुँचाना एवं गाँव के स्थानीय निकाय की सहायता से
कार्यक्रमों को निर्धारित करना लक्ष्य है. इंटरनेट पर भी हमारी सक्रियता रही है.
आयोजनों का लाइव प्रसारण भी हम करते हैं. श्री देवेश ने अकादेमी के अन्यान्य
कार्यक्रमों की भी जानकारी दी.
मैथिली भाषा परामर्श मंडल की संयोजिका डा. वीणा ठाकुर ने विषय प्रवर्तन करते
हुए इस संगोष्ठी के विषय की महत्ता को रेखांकित किया. उन्होंने कहा कि शिल्पी तत्वानावेशी व्
रचियता दोनों होते हैं, साहित्य में शिल्प एक रचना प्रक्रिया
है. मिथिला क्षेत्र प्रारम्भ से संस्कृति का केंद्र रहा है.
अपने बीज वक्तव्य में डा. रामनरेश सिंह ने सभागार में उपस्थित श्रोताओं को
उद्वेलित किया. उन्होंने ‘आधुनिक
मैथिली साहित्यिक शिल्पी’ शीर्षक को चार भागों में विभाजित
करते हुए अपने तर्क से श्रोताओं को अभिभूत किया.
इस प्रथम सत्र की अध्यक्षता करते हुए डा. महेंद्र ने कहा कि आधुनिक मैथिली
साहित्य में ऐसे-ऐसें प्रखर शिल्पी हुए जो साहित्य, कविता व नाटक आदि विधाओं के माध्यम से अपने
को शिल्पी के रूप में स्थापित किया है.
धन्यवाद ज्ञापन करते हुए रमेश झा महिला महाविधालय की प्रधानाचार्य
डा. रेणु सिंह आगत अतिथियों का आत्मिक आभार प्रगट किया. उन्होंने कहा कि मं विगत
10 वर्षों से ‘समकालीन भारतीय साहित्य’ की पाठिका रही हूँ उक्त पत्रिका के मैथिली विशेषांक ने मुझेमें मैथिली के
प्रति अनुराग उत्पन्न किया. उन्होंने उपस्थित श्रोताओं को साधुवाद किया.
संगोष्ठी के प्रथम दिन के द्वितीय सत्र में ‘आधुनिक मैथिली साहित्य में चमत्कार :
हरिमोहन झा’ पर वरिष्ठ पत्रकार व कथाकार विकास कुमार झा ने
हरिमोहन झा के विराट रचना संसार से श्रोताओं को अवगत कराया उनके व्यंग्य ने समाज
को कुरीतियों से किस प्रकार मुक्ति दिलाई, उनकी प्रसिद्ध
कृति ‘खट्टर कका क तरंग’ के अनुवाद
प्रसंग को रेखांकित किया. उन्होंने कहा हरिमोहन झा हमाए बीच अभी भी हैं. वे साहित्य के ब्रह्म्बाबा हैं.
सत्र को आगे बढाते हुए विद्वान पंचानन मिश्र ने आधुनिक मैथिली के शिल्पकार
महामहोपाध्याय’ की साहित्यिक व रचनात्मक यात्रा पर प्रकाश डाला.
डा. केष्कर ठाकुर ने ‘कविवर
सीताराम झाक काव्य संपदा’ से परिचय कराते हुए उनके रचनाक्रम
को रेखांकित किया.सत्र की अध्यक्षीय वक्तव्य में डा. माधुरी झा ने वक्ताओं का साधुवाद किया, उन्होंने कहा – हरिमोहन झा हवा का ऐसा झोका थे जो अस्त-व्यस्त व कुरीतियों से फैले मिथिला
समाज को अपनी लेखनी व व्यंग्य से मिथिला समाज को व्यवस्थित किया, उनकी पुस्तकें आज भी प्रत्येक घर में पढ़ी जाती है.
पुस्तक चर्चा के अंतर्गत ‘मिथिला के लोककथा संचय’ सम्पादक योगानंद
झा पर केन्द्रित नरेश मोहन झा ने अपने वक्तव्य में कहा कि कोई भी लोककथा श्रुति
आधारित होती है.. मोक्ष के संदर्भ में मंडान मिश्र और शंकराचार्य की अलग-अलग
मान्यता है. जब मोक्ष चाहिए तब सन्यासी बनाना होगा, लेकिन जब
सभी सन्यासी बन जाएंगे तो समाज कैसे चलेगा. ये बातें उन्होंने रामचैतान्य धीरज के
एक सवाल के जबाव में दिया.
आयोजन के दूसरें दिन तारानंद सादा की अध्यक्षता में श्री विश्वनाथ झा, अमलेंदु शेखर पाठक व
नरेंद्र नाथ झा का आलेख पाठ संपन्न हुआ. विश्वनाथ झा ने साहित्यकार मनमोहन झा के
विराट व्यक्तित्व से श्रोताओं का परिचय कराया उनके
साहित्यिक अवदान व कथा साहित्य को रेखांकित करते हुए कहा कि मनमोहन की कथा – युद्ध, देशभक्ति, बलिदान,
किसान सभी में प्रेम व अनुराग केंद्र में रहा है और इसी माध्यम से
वे पाठक के ह्रदय में प्रवेश करते हैं और हिलकोर मचा देते हैं.. चुपके से !
रोमांटिक संवेदनशीलता उनकी कथाओं में दिखाती है. डा. सुभद्र झा पर अमलेंदु शेखर पाठक ने अपने आलेख में कहा कि मैथिली भाषा
को स्थापित व समृद्ध करने में सुभद्र झा का महत्वपूर्ण योगदान रहा है. वे 14
भाषाओं के ज्ञाता थे वे मूलत: भाषा शास्त्री थे .
डा. नरेंद्र नाथ झा ने ‘मणिपद्म लोककथा के
मालाकार’ विषय पर आलेख पाठ करते हुए कहा कि यह मिथिला की
धरती का सौभाग्य है कि डा. व्रजकिशोर वर्मा ‘मणिपद्म’ यहाँ हुए, उन्होंने
देश की विभिन्न भाषाओं में रचनाकर्म किया, उनकी कृति ‘नैका बनजारा’ को साहित्य अकादेमी पुरस्कार मिला. वे
मिथिला के लोकगाथा के स्तम्भ थे उन्होंने- लोरिकायन विजय,
दुलारा दयाल, राजा सलहेष, राय रैनापाल
जैसे लोकनायकों पर लिखकर उन्हें अमरत्व प्रदान किया. उनका नाटक कंठहार महत्वपूर्ण
कृति रही तथा लोरिक विजय उपन्यास- मैथिली साहित्य में विशिष्ठ लेखन रहा.
अध्यक्षीय उदगार में तारानंद सादा ने अतिथियों का आभार व्यक्त करते हुए कहा कि
इस तरह के आयोजन से सामाजिक व सांस्कृतिक धरोहर को अक्षुण्ण बनाया जा सकता है, उन्होंने कहा कि साहित्य
की चार्चा समुद्र मंथन सदृश्य है इसे किसी किसी सीमा में बांधा नहीं जा सकता.
तृतीय सत्र की अध्यक्षता डा. केपी यादव ने की एवं समकालीन मैथिली साहित्य के
नामचीन अशोक, कृष्ण मोहन ठाकुर व नारायण जी ने अपने आलेख का पाठ किया ‘कथाक नव धारक उद्घाटक ‘ललित’ ‘
विषय पर अशोक ने कहा कि – कथाकार ललित ने समाज के सुधार की
दिशा में लेखन किया. ‘मैथिलीक मानसरोवरक हंस राजकमल’ विषय पर कृष्ण मोहन ठाकुर ने राजकमल के रचनाक्रम यथा काव्य एवं कथायात्रा
पर प्रकाश डाला, उनकी कृति ‘ललका पाग’
पर विशेष रूप से प्रकाश डाला, उन्होंने कहा कि
नारी उनकी कथाओं में प्रमुखता से आयी.
नारयण जी ने ‘मैथिली मरसमय उपज जीवकांत’ विषय पर कहा कि जीवकांत मैथिली साहित्य के एक बहुआयामी साहित्यकार थे
उन्होंने कविता, कहानी, उपन्यास व
आलोचना से मैथिली साहित्य को समृद्ध किया. डा. के.पी. यादव ने वक्ताओं का आभार
व्यक्त किया.
चतुर्थ व अंतिम सत्र की अध्यक्षता कुलानंद झा ने की, वक्ता अमरनाथ झा एवं
देवनारायण साह ने अपने आलेख का पाठ किया. देवनारायण साह ने अपने ‘युग सत्यक उद्घोषक यात्री’ शीर्षक आलेख में कहा कि
यात्री जी समाज के वैसे वर्गों के लिए संघर्ष किया जो अंतिम व्यक्ति में रहते हैं,
वे आकोषित थे जिसकी एक बानगी- भुस्साक
आगि जकां नहु –नहु / धधकैत छी मने-मने हमहू !
इस सत्र में भू. ना. मंडल विश्वविधालय के कुलपति अवध किशोर राय की
गरिमामय उपस्थिति ने समस्त आयोजन को यादगार बना दिया.
संपन्न हुआ ‘आधुनिक मैथिली साहित्यिक शिल्पी’ विषयक द्विदिवसीय सेमिनार
Reviewed by मधेपुरा टाइम्स
on
September 08, 2017
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