बिहार में सरकार शिक्षा व्यवस्था में सुधार के लाख दावे करें, पर जमीनी हकीकत
दांव से कोसों दूर है. सरकारी स्कूल इन्फ्रास्ट्रक्चर से लेकर शिक्षकों की
गुणवत्ता के अभाव में दम तोड़ रहा है तो निजी स्कूल सरकार की इन कमजोरियों का लाभ
उठाकर पढ़ाई कम और अभिभावकों की जेब से रूपये निकालने में अधिक लगे रहते हैं.
मधेपुरा जिले में भी अधिकाँश सरकारी स्कूलों की हालत दयनीय है. ऐसा ही एक
स्कूल मधेपुरा जिले के मुरलीगंज प्रखंड क्षेत्र में राम सुन्दर उच्च विद्यालय तमोट
परसा का है. स्कूल भवन की जर्जरता जानलेवा बन चुका है पर सबसे हैरत की बात है कि इस
स्कूल में आने वाले छात्र-छात्रा वास्तव में पढ़ना चाहते हैं और जीवन में आगे बढ़ना
चाहते हैं.
पिछले दिनों जब मधेपुरा टाइम्स के सहयोगी हेमंत सरकार ने इस
स्कूल का दौरा किया तो यहाँ की बदहाली रूलाने वाली थी. वर्ष 1972 में बने इस स्कूल
का भवन पूरी तरह जर्जर है और कई कमरों के छत और दीवारें बुरी तरह टूटी हुई हैं. स्कूल
में शिक्षक तो आते हैं, पर घोर असुविधाओं में घिरे इस स्कूल में पढ़ाई का वातावरण
तैयार करने में उन्हें भी खासी मशक्कत करनी पड़ती है. इन क्षतिग्रस्त कमरों में ही
आने वाले छात्र-छात्राओं को बिठाकर किसी तरह पढ़ाने का प्रयास किया जाता है.
संभवत: पुराना स्कूल होने के कारण सरकार ने कुछ कम्प्यूटर सेट भी यहाँ उपलब्ध
करा दिए हैं, पर सुविधाओं की कमी के कारण लैब का काम संपन्न करना काफी मुश्किल
होता है. कुछ मिलकर बदहाली के आंसू रो रहे स्कूल में छात्र-छात्राओं का भविष्य भी
सिसकियाँ भरता नजर आता है.
इस बावत जब कई छात्राओं से बात की गई तो उनका कहना था कि सरकार नारा तो देती
है कि बेटी बचाओ, बेटी बढ़ाओ, पर हम पढ़ना भी चाहते हैं तो कैसे पढ़ें. हमें तो समझ
में ही नहीं आ रहा है कि कहाँ है सरकार?
(वि. सं.)
दम तोड़ रही पढ़ाई की उम्मीदें: कैसे हो पढ़ाई जब स्कूल की हालत हो इतनी दयनीय?
Reviewed by मधेपुरा टाइम्स
on
September 24, 2017
Rating: