‘मैं बिहार हूँ, इनदिनों काफी परेशान हूँ’: कौन है जिम्मेवार ?

तुम्‍हारी फाइलों में गाँव का मौसम गुलाबी है,

 मगर ये आँकड़े झूठे हैं ये दावा किताबी है.
-अदम गोंडवी
मैं बिहार हूँ काफी परेशान हूँ मेरे कार्यशैली पर जनता क्यों उठा रही है सवाल? आखिर कौन है जिम्मेवार? इन सवालों का कौन देगा जबाब?


बिहार में नहीं है शासन प्रशासन का लोगों में कोई खौफ. आपसी राजनीती के तहत कुर्सी के लालच में पिस रही है बिहार की आम जनता. सरकार को ना तो बाढ़ की चिंता है और ना ही इधर विकास कार्यों से कोई लेना देना लग रहा है. सिर्फ कभी लालू यादव तो कभी शरद यादव तो कभी कांग्रेस पार्टी के मुद्दों को लेकर उलझी है सूबे की सरकार. पिछले एक दशक से बिहार में शिक्षा व्यवस्था और सड़क समेत नहर-नाले भी खस्ता हाल है. 

जानकारी के अनुसार मधेपुरा जिले में 72 उत्क्रमित हाई स्कूलों में पिछले कई वर्षो से शिक्षक या बिना गुरु के ही भगवान् भरोसे चल रही है शिक्षा व्यवस्था. कभी नोटबंदी तो कभी जीएसटी मामले को लेकर परेशान हैं सूबे की जनता और सरकारी सिस्टम और क्रिया कलाप पर उठ रहा है एक बड़ा सवाल? इन सवालों के कटघरे में खड़ी है केन्द्र और राज्य की सरकार. किसानों की माली हालात पर बिहार के सदन में नहीं हो रही है कोई विशेष चर्चा और चारों तरफ व्यवसायी से लेकर किसान भी खासे परेशान हैं. सूबे में विकास की रफ़्तार में भारी कमी आ रही है और सिर्फ कागज़ पर ही सरकारी विकास की गाड़ियाँ दौड़ रही है. वहीँ सरकार के सिस्टम और कानून व्यवस्था को लेकर सूबे में सरकारी तंत्र का भी घुट रहा है दम. सरकारी कुर्सी पर बैठे मजबूर शासन प्रशासन के अधिकारी भी अपना समय काट रहे हैं. ये बात हम नहीं कह रहे हैं सूबे की कानून व्यवस्था और हालात खुद बयाँ कर रही है और त्रस्त स्थानीय मजबूर जनता दबी जुबान के अलावे कुछ भी बोलने की हिम्मत नहीं जुटा पा रही है. अगर ऐसी ही हालात रही तो आने वाले दिनों में आपसी रंजिश के कारण शांति और सौहार्द का वातावरण कायम करने में सरकार को भारी परेशानी की दौड़ से गुजरना पड़ सकता है.

आलम यह है कि बिहार में पहली सुशासन की सरकार वाली बात नहीं रह गयी है. सूबे में पूर्ण रूपेण शराब बंदी भी है लेकिन चारो तरफ रोज सरकार के पुलिस प्रशासन शराब बंदी कानून को धरातल पर उतारने की कवायद में जुटी है. फिर भी चोरी छुपे सिस्टम को धता बताते हुए शराब तस्कर मोटी चाँदी भी काट रहे हैं. पीने वाले जी भरकर शराब पी रहे हैं. वहीँ शराब तस्कर रोज जेल भी जा रहे हैं लेकिन जमानत भी उसी रफ़्तार में मिल जा रहा है जिस कारण एक बार जेल गए तस्कर फिर उसी रफ़्तार से अपनी गोरखधंधे को अंजाम देने में पीछे भी नहीं हट रहे हैं.

कुल मिलाकर कहा जा सकता है सरकारी सिस्टम के लिए एक बड़ी चुनौती है. ज्ञात हो कि हाल के दिनों में मधेपुरा के बिहारीगंज, साहुगढ़ और मुरलीगंज की घटना को लेकर आम अवाम समेत जिले के लाखों लोग प्रभावित हुए. खासकर मुरलीगंज की घटना को लेकर लगातार 09 दिनों तक बाजार की दुकानें पूरी तरह बंद रही जिस कारण करोड़ों की क्षति भी हुई है. मामले में कई निर्दोष समेत उनके परिजन तथा जिला प्रशासन भी परेशान रहे हैं. बता दें कि आने वाले समय में सरकार अगर इन तमाम मुद्दों को लेकर सचेत और सजग नहीं होती है तो शांति और सौहार्द का वातावरण कायम करना सरकार और सरकारी सिस्टम के लिए भारी चुनौती साबित होगा. सूबे में शासन और प्रशासन का खौफ होना भी लाजमी है तभी धारातल पर सामाजिक समरस्ता भी बना रहेगा. कुछ मुट्ठीभर असामाजिक तत्वों के कारण समाज की शांति व्यवस्था धीरे-धीरे समाप्त होती जा रही है और इस पर अंकुश लगाना भी सरकार और सरकारी तंत्रों के लिए एक बड़ा चुनौती साबित हो रहा है. 

बहरहाल अब देखना दिलचस्प होगा आखिर सूबे में कब तक सुधरेंगे हालात और कब होगी बिहार के पहले सुशासन वाली सरकार? सरकारी सिस्टम और कार्यशैली पर उठ रहा है एक बड़ा सवाल? इन सवालों के कटघरे में खड़ी है केन्द्र और राज्य की सरकार.
 
‘मैं बिहार हूँ, इनदिनों काफी परेशान हूँ’: कौन है जिम्मेवार ? ‘मैं बिहार हूँ, इनदिनों काफी परेशान हूँ’: कौन है जिम्मेवार ? Reviewed by मधेपुरा टाइम्स on September 14, 2017 Rating: 5
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