
भारत गाँवों का देश है, मगर गाँव भी विकास के नाम पर तेजी से शहरीकरण का शिकार
हो रहा हैं. वो दिन दूर नहीं जब गाँव पूर्णतः विलुप्त हो जाएगी. विकासवाद के इस
दौर मे जहाँ भीड़ पाश्चात्य संस्कृति को अपना आदर्श मानते हुए आगे बढ़ रही हैं वहीँ एक शख्स ऐसा भी है जो किसान बनने के लिए अपना लाखों का पैकेज छोड़ एक प्रयास कर रहा
है गाँव मे गाँव को जीवित रखने की.
गिरीन्द्रनाथ झा आज परिचय के मुंहताज नहीं हैं. इन्होने स्थापना की “चनका रेजीडेंसी” की. शुरुआत के कुछ दिनों के अन्दर ही हिंदुस्तान के जाने माने चेहरे 1. इयान वुलफ़ोर्ड - ला ट्रोब यूनिवर्सिटी , मेलबर्न,
आस्ट्रेलिया 2. डेविड क्रुडसमा - अमेरिका 3. लिंडसे फ़्रांसिस- अमेरिका 4. एलिसन - जर्मनी 5. रवीश कुमार 6. राजदीप सरदेसाई 7. सत्यानंद निरुपम- राजकमल प्रकाशन 8 मणिन्द्र नाथ
ठाकुर - जेएनयू 9. राजशेखर 10. सुशील
झा समेत 250 से अधिक हस्तियों ने चनका आ कर अपनी मौजूदगी
दर्ज करवाई है.
फनीश्वरनाथ रेनू को अपने जीवन का आदर्श मानते हुए उनके लिखे शब्द को वो जीना
चाहते हैं और समाज मे किसान और उसके महत्व को जिन्दा रखना चाहते हैं. साथ ही सम्पूर्ण
बिहार के गाँव-गाँव मे इस प्रकार का योजना चलाना चाहते हैं ताकि महानगरों/विदेशों
मे रहने वाले लोग अपने गाँव को भी विलेज टूरिज्म के तहत भ्रमण लिस्ट के डेस्टिनेशन
में शामिल करें.
कई लोग अक्सर कहते हैं रुपया खुदा तो नहीं, मगर खुदा कसम खुदा से कम भी नहीं. महंगाई और रोजमर्रा की जरूरतों के कारण “चनका रेजीडेंसी” का विकास धीमा हो गया हैं. जितने रूपये जमा थे

चनका रेसीडेंसी की उपलब्धियों पर लिखे इन्हें भी जरूर पढ़ें:
एक रिपोर्ट : https://milaap.org/stories/chankaresidency?utm_medium=page&utm_source=facebook
एक विडियो: https://www.youtube.com/watch?v=X5GyIGmxmF8
चनका राजदीप
सरदेसाई के नजर से : https://www.facebook.com/IndiaToday/videos/10154173219697119/
(वि. सं.)
‘चनका’: गाँव मे गाँव को जिन्दा रखने की इस अनोखी प्रयोगशाला को है मदद की दरकार
Reviewed by मधेपुरा टाइम्स
on
September 20, 2017
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