देश के कई जिलों में 2002 से 2006 तक चली संपूर्ण ग्रामीण रोजगार योजना और राष्ट्रीय काम के बदले अनाज योजना को बंद कर दिया गया और इसके बदले मनरेगा जैसी योजना शुरू की गई।
लेकिन काम के बदले अनाज योजना और सम्पूर्ण ग्रामीण रोजगार योजना के लिए आवंटित खाद्यान्न का डीलरों ने उठाव तो कर लिया,लेकिन उसका वितरण कभी नहीं हुआ।दूसरे शब्दो में जिस डीलर के पास जितना अवशेष बचा,उसे दबा दिया गया।
वर्षो बाद सदानंद यादव ने इस मुद्दे को लेकर उच्च न्यायालय में रीट दायर कर ध्यान आकृष्ट कराया तो इसकी जांच कर मंतव्य देने के लिए जस्टिस उदय सिन्हा जांच आयोग गठित की गई है।
जांच आयोग ने जब सभी जिलों से इस बावत रिपोर्ट मांगे तो मधेपुरा जिले में प्रथम दृष्टया यह तथ्य सामने आया कि जिले में सत्रह डीलरो ने कुल 4243 क्विंटल खाद्यान्न दबा रखे हैं जिसकी कीमत 58 लाख से अधिक है।अवशेष खाद्यान्न की कीमत वसूली के लिए नीलामी और प्राथमिकी की कार्रवाई शुरू हुई तो मात्र 4 लाख 90 हजार 570 रू वसूल हुए।बकाया 53.22 लाख रू वसूल नहीं हो सके।
दूसरी ओर अब जस्टिस उदय सिंह जांच आयोग ने जिले के सभी डीलरो से शपथ पत्र के अतिरिक्त उक्त अवधि 2002 से 2006-7 तक का अंकेक्षण प्रतिवेदन भी जमा करने के निर्देश दिया है। इसके लिए डीलरो याने जन वितरण दुकानदारों को बार बार निर्देश दिया जा रहा है। इस मामले की बावत उप विकास आयुक्त बताते हैं कि अभी तक 68 डीलरो ने अंकेक्षण प्रतिवेदन दिए है जबकि 133 डीलर नहीं जमा करा पाए हैं। अगर वे शीघ्र अंकेक्षण नहीं कराएंगे तो आयोग तो कारवाई करेगी ही, जिला प्रशासन उससे पहले कारवाई करेगी।
विशेष: 133 डीलरो पर मंडरा रहा 15 वर्ष पुराना भूत
Reviewed by मधेपुरा टाइम्स
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June 09, 2017
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