“हौ लछमन, तोहर बेटा के फोन एईलअ रहे, फेर दु बजे दिन में करतअ, आईब जईहअ...”
कोसी के इस इलाके में एक झोंपड़ीनुमा किराना दूकान पर लगे लाउडस्पीकर से आवाज गूंजती है और लछमन को उसके आसपास के लोग बताते हैं कि दो बजे दिन में पंजाब से उसके बेटे सुनील का फोन आएगा, दुकान पर चले जाइएगा.
आज जहाँ कोसी के भी ज्यादातर इलाकों में अधिकाँश मजदूर तक के घर में कम से कम एक मोबाइल फोन मौजूद है वहां इस तरह की सुविधा के लिए लोगों का निर्भर होना अपने आप में कुछ और ही कहता है. ये दर्द है कोसी के दियारा क्षेत्र में बाढ़ के पानी के कटाव से विस्थापित होकर कोसी के ही बाँध पर बसे एक बड़ी आबादी का.
मिली जानकारी के अनुसार कोसी की कछार पर बसे सहरसा जिले के सलखुआ थाना के पिपरा बगेबा गाँव को जब कोसी की धार ने तबाह कर उसका नामोनिशान मिटा दिया तो गाँव के करीब 600 घरों के 3000 आबादी के पास बाँध पर आश्रय लेने के अलावे कोई रास्ता न बचा. झोंपड़ी चढ़ाकर किसी तरह जीवन की नैया खेपते इन लोगों को सरकारी सुविधा नदारद है. घर के जवान बेटों को बूढ़े माँ-बाप और छोटे भाई-बहनों को भूख से बचाने के लिए बाहर का रूख करना पड़ा और उनके द्वारा बड़ी मशक्कत से भेजे पैसे से ही इनकी जिन्दगी की गाड़ी धीमी रफ़्तार से चल रही है.
60 वर्ष के लक्ष्मी बढ़ई ने झोंपड़ी में नून-तेल की दुकान खोल रखी है और एक लाउडस्पीकर भी लगा रखा है. बैटरी चार्ज कराकर दूर से लाते हैं और मोबाइल सुविधा इन विस्थापितों को दे रहे हैं. 60 वर्ष के बूढ़े से घर-घर जाकर सूचना देना संभव नहीं हुआ तो ये तरकीब निकाल ली. इनका नंबर पंजाब-दिल्ली में मजदूरी करने वाले बेटों के पास है और वे अपने परिजनों से इनकी बदौलत बात कर पाते हैं. लाउडस्पीकर से निकली लक्ष्मी बढ़ई की आवाज उंचाई पर बसे घरों में गूँज जाती है. सुविधा के बदले में लक्ष्मी को जो मिला, रख लेते हैं.
इलाके में घूमकर वापस आने वाले कोसी के लोकप्रिय फोटोजर्नलिस्ट अजय कुमार द्वारा उपलब्ध कराई ये तस्वीर इतनी बड़ी आबादी की व्यथा-कथा कहने के लिए काफी है. वैसे ही कोसी नदी को बिहार का शोक नहीं कहा गया है.
(वि.सं.)
कोसी के इस इलाके में एक झोंपड़ीनुमा किराना दूकान पर लगे लाउडस्पीकर से आवाज गूंजती है और लछमन को उसके आसपास के लोग बताते हैं कि दो बजे दिन में पंजाब से उसके बेटे सुनील का फोन आएगा, दुकान पर चले जाइएगा.
आज जहाँ कोसी के भी ज्यादातर इलाकों में अधिकाँश मजदूर तक के घर में कम से कम एक मोबाइल फोन मौजूद है वहां इस तरह की सुविधा के लिए लोगों का निर्भर होना अपने आप में कुछ और ही कहता है. ये दर्द है कोसी के दियारा क्षेत्र में बाढ़ के पानी के कटाव से विस्थापित होकर कोसी के ही बाँध पर बसे एक बड़ी आबादी का.
मिली जानकारी के अनुसार कोसी की कछार पर बसे सहरसा जिले के सलखुआ थाना के पिपरा बगेबा गाँव को जब कोसी की धार ने तबाह कर उसका नामोनिशान मिटा दिया तो गाँव के करीब 600 घरों के 3000 आबादी के पास बाँध पर आश्रय लेने के अलावे कोई रास्ता न बचा. झोंपड़ी चढ़ाकर किसी तरह जीवन की नैया खेपते इन लोगों को सरकारी सुविधा नदारद है. घर के जवान बेटों को बूढ़े माँ-बाप और छोटे भाई-बहनों को भूख से बचाने के लिए बाहर का रूख करना पड़ा और उनके द्वारा बड़ी मशक्कत से भेजे पैसे से ही इनकी जिन्दगी की गाड़ी धीमी रफ़्तार से चल रही है.
60 वर्ष के लक्ष्मी बढ़ई ने झोंपड़ी में नून-तेल की दुकान खोल रखी है और एक लाउडस्पीकर भी लगा रखा है. बैटरी चार्ज कराकर दूर से लाते हैं और मोबाइल सुविधा इन विस्थापितों को दे रहे हैं. 60 वर्ष के बूढ़े से घर-घर जाकर सूचना देना संभव नहीं हुआ तो ये तरकीब निकाल ली. इनका नंबर पंजाब-दिल्ली में मजदूरी करने वाले बेटों के पास है और वे अपने परिजनों से इनकी बदौलत बात कर पाते हैं. लाउडस्पीकर से निकली लक्ष्मी बढ़ई की आवाज उंचाई पर बसे घरों में गूँज जाती है. सुविधा के बदले में लक्ष्मी को जो मिला, रख लेते हैं.
इलाके में घूमकर वापस आने वाले कोसी के लोकप्रिय फोटोजर्नलिस्ट अजय कुमार द्वारा उपलब्ध कराई ये तस्वीर इतनी बड़ी आबादी की व्यथा-कथा कहने के लिए काफी है. वैसे ही कोसी नदी को बिहार का शोक नहीं कहा गया है.
(वि.सं.)
'जहाँ लाउडस्पीकर से फोन आने की सूचना दी जाती है': कोसी में एक इलाका ऐसा भी
Reviewed by मधेपुरा टाइम्स
on
May 07, 2016
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