आज के दौर मे हमारे समाज मे महिलाओं की स्थिति मे काफी सुधार हुआ है. भारतवर्ष की महिलाएं किसी भी क्षेत्र मे पुरुषों से पीछे नही हैं. हर जगह वो पुरुषों के कदम से कदम मिलाकर ही नही चल रही हैं, बल्कि कई क्षेत्रों मे तो बहुत आगे भी निकल चुकी हैं. हमारे देश में प्राचीन काल मे भी कई वीरांगनाओं ने जन्म लिया है और अपने महान कार्यों से आज वो महिलाओं ही नही बल्कि भारत के हर वर्ग के लोगो का आदर्श बनी हुई हैं.जिस तरह हर सिक्के के दो पहलू होते हैं वैसी ही दशा हमारे समाज की स्त्रियों की है. सिक्के का एक पहलू तो बहुत ही शिक्षित और जागरूक है जबकि दूसरे पहलू का वर्णन तो शब्दों मे करना कठिन है. जहाँ आज
हम मंगल पर पहुंच चुके हैं वहीं कई बेटियाँ आज तक विद्यालय भी नही पहुंच सकी हैं. और अगर कोई पहुँचती भी है तो तब तक ही जब किसी अच्छी जगह पर उसे काम न मिल जाये या तब तक जब तक की उसके हाथ ना पीले कर दिए जायें. और विद्यालय ना जाने का कारण तो और भी ज्यादा शर्मिंदगी भरा है.
कई लड़कियों से बातचीत के आधार पर मैंने ये निष्कर्ष निकाला है कि लड़कियों के मन मे असुरक्षा की भावना ने घर कर लिया है. छेड़छाड़ और बलात्कार की घटनाएं जो हमारे समाज मे होती रहती हैं उससे सिर्फ लड़की ही नही लड़कियों के माता पिता भी सहमे हुये हैं. अगर इस डर को उनके मन से निकाला नही गया तो ये हमारे समाज के लिए बहुत घातक साबित हो सकता है.
अगर इस देश को एक जीवित इंसान माना जाये तो इस इंसान का आधा भाग है स्त्री और आधा भाग पुरुष. अगर
देश रूपी इंसान का एक भाग यूँ हीं कमजोर, लाचार और अशिक्षित रहे तो क्या इंसान जीवित रहेगा? कभी नही...इसलिये जरूरत है कि सिर्फ एक दिन महिला दिवस मनाकर महिलाओं को तवज्जो देने की बजाए हर पल और हर दिन उनकी इज्जत की जाये और उन्हें इस दयनीय स्थिति और रूढ़िवादिता की जंजीर से बाहर निकाला जाये. तभी हमारा यह इंसान रूपी भारतवर्ष खुशहाल होगा और विश्व के मानचित्र पर एक समृद्ध और सर्वशक्तिशाली देश के रूप मे उभरेगा.
अब तक इतने अत्याचार किये,
अब और नही है सहना।
हम भी आधी आबादी है,
हमारा भी हक़ है जीना।।
तोड़ दो ये जंजीर हमे भी,
खुश रहने का हक़ है ।।
अपने वतन के लिए,
जीने का हक़ है,
मरने का हक़ है।।
अगर इस देश को एक जीवित इंसान माना जाये तो इस इंसान का आधा भाग है स्त्री और आधा भाग पुरुष. अगर
देश रूपी इंसान का एक भाग यूँ हीं कमजोर, लाचार और अशिक्षित रहे तो क्या इंसान जीवित रहेगा? कभी नही...इसलिये जरूरत है कि सिर्फ एक दिन महिला दिवस मनाकर महिलाओं को तवज्जो देने की बजाए हर पल और हर दिन उनकी इज्जत की जाये और उन्हें इस दयनीय स्थिति और रूढ़िवादिता की जंजीर से बाहर निकाला जाये. तभी हमारा यह इंसान रूपी भारतवर्ष खुशहाल होगा और विश्व के मानचित्र पर एक समृद्ध और सर्वशक्तिशाली देश के रूप मे उभरेगा.अब तक इतने अत्याचार किये,
अब और नही है सहना।
हम भी आधी आबादी है,
हमारा भी हक़ है जीना।।
तोड़ दो ये जंजीर हमे भी,
खुश रहने का हक़ है ।।
अपने वतन के लिए,
जीने का हक़ है,
मरने का हक़ है।।
एक दिन दिवस मनाने की बजाय हर रोज हो महिलाओं की इज्जत, तब है महिला दिवस की सार्थकता
Reviewed by मधेपुरा टाइम्स
on
March 08, 2016
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