
चूंकि भूपेंद्र बाबू मधेपुरा के रहनेवाले थे इसलिए जिले में उनकी 112 वीं जयंती पर कई कार्यक्रम आयोजित हुए, लेकिन उनके नाम पर स्थापित भूपेंद्र नारायण मंडल विश्वविद्यालय में आयोजित कार्यक्रम हमें तो सिर्फ मजाक लगा.
सुबह जागते ही मै भूपेंद्र बाबू की जयंती पर आयोजित कार्यक्रम को कवरेज करने के लिए तैयार था. इच्छा भी थी और आलोक मामा का डर भी. सबसे पहले भूपेंद्र चौक पर 10 बजे कार्यक्रम आयोजित किया गया. यहाँ स्कूली बच्चों के द्वारा प्रभातफेरी भी निकाली गई. मंत्री प्रो. चंद्रशेखर जी भी पहुंचे थे. कार्यक्रम छोटा था पर अच्छा था. दूसरा कार्यक्रम भूपेंद्र विचार मंच की ओर से भूपेंद्र बाबू के पैतृक गाँव रानीपट्टी में आयोजित हुआ और यहाँ भी बिहार सरकार के मंत्री प्रो. चंद्रशेखर और पूर्व मंत्री नरेन्द्र नारायण यादव शामिल हुए. जिले के बुद्धिजीवी भी यहीं थे. कुर्सियां कुछ 100-200 रही होगी, बांकी लोग मंच के सामने पाल पर बैठे थे. समाजवाद की गैर बराबरी साफ दिख रही थी. शायद लोग भी अनुभव कर रहे थे इसीलिए पाल पर जगह होते हुए भी लोग बैठने से अच्छा खड़ा रहना समझ रहे थे. मैं भी किसी की कुर्सी छीनने से बेहतर पाल पर बैठना स्वीकार किया. इससे एक फायदा यह हुआ कि लोगों की कार्यक्रम पर प्रतिक्रिया भी तुरंत मिलते रही. घंटों कार्यक्रम चला लेकिन लोग जमे रहे. चाहे वो पाल पर हो या खड़े.
भले ही भूपेंद्र बाबु के पैतृक गाँव रानीपट्टी में लोग नीचे पाल पर बैठ कर भी भाषण सुन रहे थे, लेकिन उनके नाम पर स्थापित भूपेंद्र नारायण मंडल विश्वविद्यालय में उनकी जयंती और इस अवसर पर मनाया जाने वाला विश्वविद्यालय का शायद 24वां स्थापना दिवस कार्यक्रम तो मुझे मजाक ही लगा. पहले तो तोरण द्वार पर लगा फ्लेक्स ही कुछ अलग. फ्लेक्स के एक ओर भूपेंद्र बाबू का चित्र और एक बगल डॉ. (प्रो.) आर.के. यादव “रवि” का चित्र. मतलब और उद्देश्य आयोजक ही बता पाएँगे. डॉ. रवि कार्यक्रम के मुख्य अतिथि और

मंच पर बैठे कई गणमान्य रानीपट्टी से इसलिए जल्दी आ गए क्योंकि उन्हें लगा यहाँ का कार्यक्रम और अच्छा होगा. लेकिन उन्हें निराश होना पड़ा. मंच पर बैठे कई अधिकारी भी उद्घाटन के 15-20 मिनट बाद ही निकल लिए. क्या यह दुखद नहीं था ? भूपेन्द्र बाबू हमेशा समाज के वंचित लोगों की लड़ाई लड़े. लेकिन आज हालत यह रही कि उनकी जयंती के साथ विश्वविद्यालय के 24वें स्थापना दिवस के लिए दस लोग भी जुटाने में विश्वविद्यालय प्रशासन अक्षम रहा. जबकि सिर्फ शिक्षक, कर्मचारी और विश्वविद्यालय के छात्र उपस्थित हो जाते तो जयंती धूम-धाम से मन जाती.
अंत में हाल की एक घटना का जिक्र करना चाहता हूँ. 26 जनवरी को भूपेंद्र बाबू के ही पैतृक गाँव में एक घटना घटी थी. वहाँ के अतिरिक्त प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र में झंडारोहण के लिए हुए कुछ समय की देरी ने लोगों को इतना आक्रोशित किया कि उन्होंने झंडारोहण के लिए पहुंचे चिकित्सक और प्रखंड स्वास्थ्य प्रबंधक को बंधक बना लिया और उन्हें झंडारोहण करने से रोक दिया था. उस वक्त लोगों का सिर्फ यही कहना था कि वैसे तो कभी नहीं आते कम से कम झंडा फहराने तो समय पर आ जाते....
(ये लेखक के निजी विचार हैं.)
कहीं जयंती तो कहीं........!
Reviewed by मधेपुरा टाइम्स
on
February 02, 2016
Rating:

accha likha h........on spot journlism.....kash main stream media me aise hi likhne ki chhut hoti
ReplyDelete