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कुछ स्थानीय लोगों का कहना था कि चूंकि इस दिन किसी-न-किसी सामान की खरीददारी करने की प्रथा है जिसकी वजह से वे नाम-मात्र की खरीददारी कर रहे हैं. वैसे चुनाव का असर धनतेरस पर भी स्पष्ट रूप से पड़ा है. कई दुकानदारों और व्यापारियों ने कहा कि चुनाव आचार संहिता रहने के कारण ढंग से सामान मंगाया नहीं जा सका, जिसकी वजह से कम मांग रहने के कारण वे उसे भी पूरा करने में असमर्थ रहे हैं. वैसे चुनाव के बाद आज लोगों ने खुली हवा में सांस ली और कहा कि जाने दीजिये, जिसकी भी सरकार बनी, नेताओं और उनके समर्थकों की चीख-चिल्लाहट से छुटकारा तो मिला है.
जानें धनतेरस के बारे में: विकीपीडिया के अनुसार जिस प्रकार देवी लक्ष्मी सागर मंथन से उत्पन्न हुई थी उसी प्रकार भगवान धनवन्तरि भी अमृत कलश के साथ सागर मंथन से उत्पन्न हुए हैं। देवी लक्ष्मी हालांकि की धन देवी हैं परन्तु उनकी कृपा प्राप्त करने के लिए आपको स्वस्थ और लम्बी आयु भी चाहिए यही कारण है दीपावली दो दिन पहले से ही यानी धनतेरस से ही दीपामालाएं सजने लगती है. कार्तिक कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी तिथि के दिन ही धन्वन्तरि का जन्म हुआ था इसलिए इस तिथि को धनतेरस के नाम से जाना जाता है। धन्वन्तरी जब प्रकट हुए थे तो उनके हाथो में अमृत से भरा कलश था। भगवान धन्वन्तरी चूंकि कलश लेकर प्रकट हुए थे इसलिए ही इस अवसर पर बर्तन खरीदने की परम्परा है। कहीं कहीं लोकमान्यता के अनुसार यह भी कहा जाता है कि इस दिन धन (वस्तु) खरीदने से उसमें 13 गुणा वृद्धि होती है। इस अवसर पर धनिया के बीज खरीद कर भी लोग घर में रखते हैं। दीपावली के बाद इन बीजों को लोग अपने बाग-बगीचों में या खेतों में बोते हैं.
धनतेरस की बाजार में उमड़ी भीड़, गहने और बर्तनों की खरीद अधिक
Reviewed by मधेपुरा टाइम्स
on
November 09, 2015
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