देश तो भूल गया, पर मधेपुरा का हरदत पाल आज भी चरखा को रखे हैं जिन्दा: चरखा से कम्बल बनाकर करते हैं परिवार का गुजारा

कहते हैं, अपना हाथ जगन्नाथ. यदि अपने हाथों में कला हो और मिहनत की ताकत तो मनुष्य परिस्थितियों का कभी गुलाम नहीं हो सकता.
           मधेपुरा जिला के बिहारीगंज के कठौतिया निवासी हरदत पाल पिछले एक  दशक से भी अधिक समय से गांधी के उस चरखे को याद रखे हुए हैं जिसे देश ने भुला दिया. चरखे से हरदत पाल कंबल आदि बनाकर अपना व अपने परिवार का जीवन यापन करते हैं, पर गुजारे के लिए किसी के आगे हाथ नहीं फैलाते हैं. कहते कि जब लोगों ने गांधी के  सिद्धांत को भुला दिया है तो फिर मामूली चरखे की क्या बिसात. पर उनका सारा कारोबार चरखे पर ही आधारित है और वे खूब मजे में इससे अपने तथा पूरे परिवार के लिए दो वक्त की रोटी जुटा लेते हैं और खुश हैं कि गांधी के चरखे ने उन्हें बहुत कुछ दे दिया है. कहते हैं कि किसी प्रकार वे कच्चा माल मस्तीपुर,खगड़िया,आदि से 55 रूपये पसेरी की दर से लाते है और उसे चरखा पर धागा बनाकर उससे सामान तैयार करते हैं. बने सामान को वे अपने इलाके में बेचते हैं.
      पत्नी गीता देवी कहती है, पूंजी के अभाव में वे अपना कारोबार आगे नहीं बढ़ा पा रही है और सरकार तो सरकार है, उनसे आजतक उन्हें कोई सहायता प्राप्त नहीं हो पाया हैं. अगर कोई सरकारी सहायता मिल पाती तो वे अपने कारोबार को और आगे बढ़ा पाते. बता दें कि बिहारेगंज प्रखंड समेत जिले में कई एसे लघु उद्योग हैं, जो बिना किसी सहायता के अपना कारोबार करते हैं, पर उन्हें आजतक किसी प्रकार की सरकारी सहायता नहीं मिल पाई है. लघु उद्यमी कहते हैं कि विभाग के पास दौड़ते रहना उनके बूते की बात नहीं है.
(रिपोर्ट: रानी देवी)   
देश तो भूल गया, पर मधेपुरा का हरदत पाल आज भी चरखा को रखे हैं जिन्दा: चरखा से कम्बल बनाकर करते हैं परिवार का गुजारा देश तो भूल गया, पर मधेपुरा का हरदत पाल आज भी चरखा को रखे हैं जिन्दा: चरखा से कम्बल बनाकर करते हैं परिवार का गुजारा Reviewed by मधेपुरा टाइम्स on November 13, 2015 Rating: 5

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