बिहार में स्कूल से लेकर कॉलेज शिक्षा बर्बाद हुई है. कथित शिक्षाविदों ने जहाँ इसे इस कगार पर पहुंचाने में कोई कसर बाकी नहीं रखी है, वहीँ अधिकारियों ने भी विभाग को लूट खाया है. छात्रों को कदाचार की लत शिक्षकों ने ही लगाई है और अधिकारियों ने उसपर मुहर लगाईं है. सबसे ज्यादा यहाँ के कॉलेज शिक्षकों ने. दो-चार को छोड़कर शिक्षा के ये असली खलनायक इसमें कई लाभ और स्वार्थ देखते हैं.पहला कि ये इस काली करतूत से मालामाल हो जाते हैं. दूसरों के बच्चों के ज्ञान की अर्थी उठाकर ये अपने बच्चों को पैसे के बल पर बाहर पढ़ाने तथा डोनेशन पर उन्हें किसी संस्था में पढ़ाने में ये सक्षम हो जाते हैं. आर्थिक रूप से विपन्न छात्र भले ही अच्छा अंकपत्र पा लेते हैं, पर समय के रफ़्तार से मुकाबला ये नहीं कर पाते हैं. अभिभावक इस ‘शिक्षा के खलनायक’ के झांसे में आकर बच्चों को अच्छे अंक दिलाने के लिए ‘शॉर्टकट’ अपनाने में ज्यादा लाभ समझते हैं और यहीं धोखा खा जाते हैं. दूसरा कि कॉलेज के अधिकाँश प्रोफेसरों की जिन्दगी सरकार ने अय्यास सी बना दी है. कभी-कभार घंटी लेनी है, बाकी पटना-पूना-दिल्ली-कोटा घूमते रहना है. छात्रों को नक़ल से पास करने की लत इन्होने लगा दी है तो अब फ़िक्र किस बात की. क्लास लेने को वे भी जिद न करेंगे. इन साहबों के द्वारा कॉलेज में दिए घंटों और इनकी मासिक सैलरी का हिसाब-किताब कीजिए, ये कठोर मेहनत कर बने आईएएस-आईपीएस पर भारी हैं. जिन्होंने कभी कॉलेज में नहीं पढ़ाया वे सडकों पर नैतिकता और सिद्धांत की बात करते अघाते नहीं हैं और इनसे कम वेतन पाने वाले अन्य सरकारी अधिकारी अक्सर 24 घंटे की ड्यूटी करते मरते हैं.
स्कूली शिक्षा भी त्राहिमाम कर रही है. इसे ठीक करने में जिले के अधिकारियों की भी सांस उखर गई लगती है, वर्ना वे अपने बच्चों को को भी सरकारी विद्यालयों में पढ़ाने की हिम्मत करते.
मधेपुरा समेत पूरे बिहार में में प्राइमरी और हाई स्कूल के आंदोलनों पर गौर कीजिये. पोशाक राशि नहीं मिली, छात्रवृत्ति मिलने में देर हुई, मध्यान्ह भोजन में गड़बड़ी....इन्हीं कारणों से आदोलन हो रहे हैं. मास्टर साहब घपला कर रहे हैं. सरकार को सिर्फ स्कूल में आने वाले बच्चों की संख्या बढाने की चिंता है, शिक्षा का स्तर गिरा रहेगा, तब तो लोगों को उल्लू बनाकर राज्य पर राज करेंगे.
कॉलेजों में पढ़ाई नहीं होने या सत्र विलम्ब समेत अन्य मुद्दों पर यदि विरोध होता है तो उसे भी विश्वविद्यालय को लूटकर खा रहे लोगों के द्वारा राजनीति का शिकार बना लिया जाता है. जहाँ तक मंडल विश्वविद्यालय की बात है तो कुछ दिनों से सिर्फ एबीवीपी ही कई मुद्दों पर लड़ाई जारी रखे हुई है, बाकी छात्र संगठनों के खेमे में सन्नाटा है. शिक्षा के खलनायकों के चेहरे सामने लाकर उन्हें अपमानित करने की जरूरत है, वर्ना यूं ही कोसी और आसपास के छात्र खुद को मंडल विश्वविद्यालय का पढ़ा हुआ बताने से शर्म करते रहेंगे....
शिक्षा के खलनायक...
Reviewed by मधेपुरा टाइम्स
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September 02, 2015
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