स्वाती शाकम्भरी: कोसी की उभरती कवियित्री कविताओं के माध्यम से करती हैं सामजिक और राजनैतिक व्यवस्था पर चोट
ये बात तय है कि कोसी की धरती अपने इतिहास काल से ही प्रतिभाओं से संपन्न रही है. ख़ास कर सहरसा के कई इलाकों में तो मानो साक्षात सरस्वती ही वास करती है. कहते हैं कि मंडन मिश्र की धरती पर तोते भी शास्त्रार्थ करने में सक्षम हुआ करते थे. इन इलाकों ने जहाँ हिन्दी भाषा और साहित्य को समृद्ध किया है वहीँ ‘मैथिली’ को भी कोसी की कई प्रतिभाओं ने जबरदस्त समृद्धि प्रदान की है.
कोसी की उभरती प्रतिभाओं में एक नाम युवा कवियित्री स्वाती शाकम्भरी का है, जिसकी अनदेखी करना कम से कम मैथिली के साहित्यकारों के लिए भारी भूल होगी. सहरसा के मानस नगर निवासी कवि प्रो० अरविन्द मिश्र ‘नीरज’ की पुत्री स्वाती का कविताओं में रूझान उस समय से जब वह नवीं की छात्रा थी. रूझान स्वाभाविक था क्योंकि कविताएँ लिखने की प्रतिभा स्वाति को पिता से ही विरासत में मिल रहा था. 11 दिसंबर 1994 को जन्मी स्वाती संस्कृत से स्नातक कर रही हैं. स्वाती शाकम्भरी की कवितायें मैथिली में हैं और श्रोताओं के दिल को छूने में सक्षम हैं. साहित्य अकादमी, मैथिली अकादमी समेत बहुत से अन्य समारोहों में अपनी प्रतिभा का लोहा मनवा चुकी इस युवा कवियित्री को जूनियर नेशनल सायंस फेयर, साहित्य अकादमी के द्वारा पुरस्कृत किया जा चुका है.
सहरसा के रेड क्रॉस भवन में फेसबुक पर सहरसा ग्रुप द्वारा आयोजित मिलन समारोह में स्वाती ने जब अपनी कविता ‘मुखौटा’ की प्रस्तुति की तो सभागार उस समय तालियों से गूँज उठा जब उसने कविता के माध्यम से नेताओं के लिए लिखे अभिनन्दन पत्र पर थपड़ी (तालियों) की तुलना थापड़ (थप्पड़) से कर दी. कविता पिता
को संबोधित कर लिखा गया था जिसके अंत में कहा गया कि पांच सालों में कुर्सी की परम्परा उसी तरह बनी रहती है जिसमें व्यक्ति (कर्म से) वही रहता है, सिर्फ मुखौटे बदल जाते हैं, इसलिए नेताओं के लिए नहीं, अभिनन्दन पत्र जनता के लिए लिखी जानी चाहिए. स्वाती की दूसरी कविता बेटियों की आजादी पर लगाया गया प्रश्नचिन्ह था. कविताओं की प्रस्तुति इतनी बेहतरीन थी कि हॉल में मौजूद अन्य साहित्यकारों के अलावे बिहार के नामी कवि शाहंशाह आलम और राजकिशोर राजन ने भी स्वाती की कविताओं की जमकर तारीफ की.
मधेपुरा टाइम्स के संपादक राकेश सिंह से बातचीत में स्वाती शाकम्भरी अपने जीवन के लक्ष्य के बारे में कहती है कि विद्वान बनने और शिक्षा के क्षेत्र में नए परिवर्तन करने के लिए प्रशासनिक सेवा में जाना चाहती हूँ.
स्वाती शाकम्भरी की दो कविताएं ‘मुखौटा’ और ‘हम स्वाधीन छी’ सुनने के लिए यहाँ क्लिक करें. (वि.सं.)
[Swati Shakambhari, Poetess, Saharsa]
कोसी की उभरती प्रतिभाओं में एक नाम युवा कवियित्री स्वाती शाकम्भरी का है, जिसकी अनदेखी करना कम से कम मैथिली के साहित्यकारों के लिए भारी भूल होगी. सहरसा के मानस नगर निवासी कवि प्रो० अरविन्द मिश्र ‘नीरज’ की पुत्री स्वाती का कविताओं में रूझान उस समय से जब वह नवीं की छात्रा थी. रूझान स्वाभाविक था क्योंकि कविताएँ लिखने की प्रतिभा स्वाति को पिता से ही विरासत में मिल रहा था. 11 दिसंबर 1994 को जन्मी स्वाती संस्कृत से स्नातक कर रही हैं. स्वाती शाकम्भरी की कवितायें मैथिली में हैं और श्रोताओं के दिल को छूने में सक्षम हैं. साहित्य अकादमी, मैथिली अकादमी समेत बहुत से अन्य समारोहों में अपनी प्रतिभा का लोहा मनवा चुकी इस युवा कवियित्री को जूनियर नेशनल सायंस फेयर, साहित्य अकादमी के द्वारा पुरस्कृत किया जा चुका है.
सहरसा के रेड क्रॉस भवन में फेसबुक पर सहरसा ग्रुप द्वारा आयोजित मिलन समारोह में स्वाती ने जब अपनी कविता ‘मुखौटा’ की प्रस्तुति की तो सभागार उस समय तालियों से गूँज उठा जब उसने कविता के माध्यम से नेताओं के लिए लिखे अभिनन्दन पत्र पर थपड़ी (तालियों) की तुलना थापड़ (थप्पड़) से कर दी. कविता पिता

मधेपुरा टाइम्स के संपादक राकेश सिंह से बातचीत में स्वाती शाकम्भरी अपने जीवन के लक्ष्य के बारे में कहती है कि विद्वान बनने और शिक्षा के क्षेत्र में नए परिवर्तन करने के लिए प्रशासनिक सेवा में जाना चाहती हूँ.
स्वाती शाकम्भरी की दो कविताएं ‘मुखौटा’ और ‘हम स्वाधीन छी’ सुनने के लिए यहाँ क्लिक करें. (वि.सं.)
[Swati Shakambhari, Poetess, Saharsa]
स्वाती शाकम्भरी: कोसी की उभरती कवियित्री कविताओं के माध्यम से करती हैं सामजिक और राजनैतिक व्यवस्था पर चोट
Reviewed by मधेपुरा टाइम्स
on
August 17, 2015
Rating:

स्वाती शाकम्भरी की कुछ कविताएँ 'मधेपुरा टाइम्स'प्रकाशित की जानी चाहिए !
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