इन द डिफेन्स ऑफ़ 'जंगल राज’

जंगल राज का अर्थ होता है कानून का कोई शासन नही होना. इस अर्थ में बिहार के इतिहास में सिर्फ एक काल जंगल राज था- श्रीकृष्ण बाबू का तथाकथित स्वर्ण काल (1947-1962). अनेक साक्ष्य बताते हैं कि इस काल में कानून का कोई शासन नहीं था, सीधे जमींदारों का राज चलता था.
           इतिहास में कोई ऐसा सामाजिक उथल-पुथल नही हुआ है जिसमें अतिरेक न हो. कतिपय अतिरेकों के बाबजूद ’90 का दशक ऐसे उथल-पुथल व सामाजिक परिवर्तनों का दौर था जिसकी मिसाल बिहार के पिछले सौ वर्षों के इतिहास में नही मिलती और दुनिया के इतिहास के पैमाने पर यह बहुत कम रक्तरंजित था. अनिवार्यतः गरीब व जन विरोधी चरित्रवाली सता-मशीनरी को पस्त व पंगु कर सता के मुखिया लालू यादव स्वातंत्र्योतर भारत के एक बड़े ‘रिबेल‘ के रूप में सामने आते हैं जिसका समकालीन इतिहास में कोई जोड़ नही है और जिसे विश्लेषित करने के लिए पूर्वाग्रहमुक्त नई इतिहास दृष्टि चाहिए.
          कई विचारक ('अतिक्रमण की अंतर्यात्रा’ -प्रसन्न कुमार चौधरी) यह मानते हैं कि भारत की ठोस परिस्थितियों में सीमित अराजकता या सीमित काल के लिए अराजकता बेहद जरुरी है क्योंकि इसी अवधि में बंचित व गरीब तबका अपनी आपेक्षिक स्वाधीनता का अधिकाधिक उपभोग करते हैं.
           आर्थिक सशक्तीकरण और सामाजिक सशक्तीकरण के बीच कोई चीन की दीवार नही होती. बहुत कम लोग जानते हैं कि नीतीश शासन के दौरान जिस ग्रोथ मिरेकल की स्वामीनाथन अंकलेश्वर अय्यर ने चर्चा की, उसकी शुरूआत दरअसल सन् 1994 में हुई थी. स्वामीनाथन ने ही कभी लिखा था 'लालू बीट्स नेहरू’. बिहार के जीडीपी पर किये गये एक अध्ययन से यह पता चलता है कि 2001 में राज्य के विभाजन के कारण पैदा हुई कुछ मंदी के बावजूद 1994-95 से ही बिहार के जीडीपी में उच्च वृद्धि दर दिखाई देती रही है. (‘अनरैविलिंग बिहार्स ग्रोथ मिराकल’, चिराश्री दास गुप्ता, ईपीडब्लू, दिसंबर-2010).
           कई अकादमिकों ने इस काल- ’जंगल राज’ को डेमोक्रेसी अगेंस्ट गर्वनेन्स के रूप में चित्रित किया है. यानी यह नई आंकाक्षाओं व उतेजनाओं से भरे जनतंत्र की जीत थी, और सड़े-गले गवर्नेन्स की हार थी। (‘टैवर्सिंग बिहार’, झा एंड पुष्पेन्द्र).
(Based on discourse during 'Subaltern Conclave' organized recently in Patna by ''BAGDOR'. लेखक के निजी विचार हैं.)
इन द डिफेन्स ऑफ़ 'जंगल राज’ इन द डिफेन्स ऑफ़ 'जंगल राज’ Reviewed by मधेपुरा टाइम्स on August 26, 2015 Rating: 5

3 comments:

  1. Characterizing this most vibrant chapter of Bihar political history, noted academician Walter Hauser (2004) wrote "Democracy thrived but governance collapsed'.

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  2. Rightly said it was democratically elected government which didn't cared for good governance and development of Bihar.

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  3. लालू यादव ने बहुत बार कहा है हमने लोगो को स्वर्ग तो नहीं लेकिन स्वर दिया .Democracy thrived does mean Democracy flourished and broaden.In this regime lower half of the pyramid got self esteem and aasertion in socio-political system.

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