मधेपुरा जिला का एक ऐसा गांव जहाँ आज
भी लोगों को बेटियों के कुंवारी रहने का भय सताता रहता है. बड़ी मशक्कत के बाद यदि
बेटियां ब्याह भी दी जाती है तो इस गाँव के लोगों के कान शहनाई की आवाज सुनने के
लिए तरस जाती है.
मधेपुरा
जिला के उदाकिशनगंज अनुमंडल का फुलौत गांव के कई इलाके जहाँ कई दशकों से बेटियों के कुंवारी रह
जाने का डर यहाँ के लोगों को सताता रहता है. फुलौत के मोरसंडा मुसहरी बासा, करैल बासा वाया गनौल, सीरीपुर बासा, गोशाय गाँव आदि के लोग बताते हैं कि आवागमन के
साधन इस गाँव तक नहीं होने से यदि शादी के लिए लड़केवाले आते भी हैं तो वे यहाँ की हालत देखकर वापस हो लेते हैं. यही हाल यहाँ के बेटों की शादी में भी होता है. कोई
अपनी बेटी को इस विकास की दौर में पिछड़ गए गाँव में ब्याहना नहीं चाहता. इस गांव
आने-जाने का कोई साधन नहीं है, बस जान-जोखिम में डालकर टूटे-फूटे चचरी पुल के सहारे यातायात
को मजबूर हैं हजारों लोग. गाँव वाले बताते हैं कि कई बार चचरी पुल से गिरकर स्कूली
बच्चों की जान भी जा चुकी है.
इन गावों में आवागमन का साधन नहीं रहने से दूसरे इलाकों के लोग नहीं जोड़ना चाहते हैं यहाँ रिश्ते. स्थानीय जनप्रतिनिधि सहित जिला प्रशासन की उदासीनता ने इस गाँव को विकास से
कोसों दूर रखा
है. दशकों से कोशी नदी से घिरे टापू में तब्दील इस गांव में काफी मशक्कत के बाद यदा-कद ही शहनाई बज पाती है. लोगों को
आसपास के क्षेत्र या फिर अपने सम्बन्धियों के घर जाकर बेटियों की डोली उठवानी पड़ती
है. चार-पहिया वाहन इस गाँव में आना सपने के जैसा है तो फिर शादियों में धूम-धाम
कहाँ से संभव है.
जनप्रतिनिधि और
जिला प्रशासन की उदासीनता यहाँ के लोगों की समझ से भी बाहर है, जबकि इस दियारा
क्षेत्र के इलाके में लगातार 20 सालों से बिहार सरकार के मंत्री नरेंद्र नारायण यादव
चुनाव जीतते आ रहे हैं. लोग मंत्री और स्थानीय सांसद से काफी नाराज हैं.
सरकार चाहे लाख
विकास का ढोल पीट ले, लेकिन सूबे के कई गाँव अब भी आदम सभ्यता की याद दिलाते हैं.
अब देखना है कि कब होता है इस क्षेत्र का विकास और कब यहाँ गूँज उठती है शहनाई.
खबर से सम्बंधित इस वीडियो को जरूर देखें. यहाँ क्लिक करें.
मधेपुरा के इस गाँव में नहीं बज पाती शहनाई !
Reviewed by मधेपुरा टाइम्स
on
April 06, 2015
Rating:
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April 06, 2015
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