

जब याद आती
है
वो
कुसहा त्रासदी की काली
रातें
तो फिर लोगों का जख्म
हरे
हो उठते हैं. त्रासदी के 6 वर्ष बाद भी
क्षेत्र
में
लोगों
की
समस्याएँ ख़त्म भी
नहीं
हो
पाई थी कि लोगों पर आ पड़ी फिर
एक
नई विपदा की घड़ी.
पहले तो
चक्रवातीय
तूफानों ने क्षेत्र
में
लोगों
को
तबाही
के
ढेर पर खड़ा कर फसल
सहित
कई घरों को बर्बाद कर लोगों
पर
कहर
का
बोझ
डाल
दिया.
लेकिन
जब
सरकारी
स्तर
पर लोगों के जख्मों पर
महरम लगाने
के
प्रयास शुरू किये गए तो कुदरत ने
बीच
में
ही
तीसरा
कहर भूकंप के रूप में लाकर खड़ा कर
दिया
है. तूफ़ान और भूकंप के दौरान मधेपुरा में
अलग-अलग
जगहों से कई लोगों
की
जानें
भी
इस धरती में समा गई. लोग कुदरत
की
मार
से परेशान हैं. भय
के
कारण
रात-रात भर सोना मुहाल हो चुका
है. ऊपर से इस मंगलवार
को फिर चौथे कहर
के
रूप में अचानक आई आंधी और बारिशों
ने
बची-खुची
परेशान जिन्दगी में फिर
से
पानी फेर दिया है.
जानकारी
के
अनुसार
खासकर
मुरलीगंज
प्रखंड
में
वर्ष
2008
में
भी प्रलयंकारी बाढ़ ने सबसे ज्यादा
इलाकों
को
प्रभावित कर दिया था. लोगों को अपनों से दूर कर
घर
से बेघर कर तबाही के टीले पर
खड़ा
कर दिया था. इन इलाकों
के लोगों को अब भी
जब
उस कुसहा त्रासदी की काली रात याद
आती
है
तो आखें नम सी जाती है. लोग-बाग़ उस
त्रासदी से उबरे भी नहीं थे कि कुदरत ने फिर से
जख्म
को
हरा कर अब दिन में ही लोगों
को
काली
रातों की याद दिला रहा है. भले ही राज्य सरकार
और केन्द्र की सरकार जले पर महरम लगाने के प्रयास में जुट चुकी है
पर
जिला प्रसाशन के लिए तूफ़ान, भूकंप और फिर आंधी व बारिस एक बड़ी चुनौती के रूप में आ
खड़ी हुई है जिससे जिला प्रसाशन की भी चिंता और बढ़ गयी है. प्रयास जो भी हों लेकिन
क्षेत्रीय जनता परेशान जरुर हैं. लोग अब तक
आवश्यक सुविधाओं से कोसों दूर हैं. अधिकारी की माने तो युद्ध स्तर पर क्षेत्र में
कार्य चल रहा है और जाहिर है मौका अच्छा है, इलाकों के
विभिन्न राजनितिक दलों के नेता इस प्रलय की घड़ी में भी अपनी-अपनी राजनीति
रोटी सेंकने में कहीं से कोई
कोताही नहीं बरत रहे हैं.
त्रासदी की काली रात, सूने चूल्हे, राहत की धीमी आंच पर राजनीति की रोटी सेंकते नेता
Reviewed by मधेपुरा टाइम्स
on
April 29, 2015
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April 29, 2015
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