देखी तोर सुरतिया,
कैसे बिताई पिया
सारी उमरिया.
सारी उमरिया.
काहे कैलअ प्यार पिया,
देलअ इ दरदिया,
कैसे सहब पिया
बाली मोर उमरिया”
देलअ इ दरदिया,
कैसे सहब पिया
बाली मोर उमरिया”
इस गायिका के गानों में लोगों को मिट्टी की खुशबू का
अहसास होता है. सुनने वाले झूम उठते हैं और मधेपुरा के लोग लोकगीत गायिका रेखा
यादव को मधेपुरा की शारदा सिन्हा कहते हैं.
पटना
रेडियो स्टेशन से शुरू की गई गायकी ने यदि बिहार को कलकत्ता में आयोजित चार
राज्यों की संगीत प्रतियोगिता में अवार्ड दिलाया तो वो मधेपुरा की रेखा यादव की
आवाज थी. आज रेखा के एलबम बाजार में लोकप्रिय हो रहे हैं और इनके गाये गीत लोगों
को झूमने पर मजबूर कर रहे हैं.
वर्ष
1976 में कुमारखंड की गढिया में एक सम्पन परिवार में जन्मी रेखा का जीवन संघर्षों
के दौर से गुजरा है, पर संघर्ष भरी जिंदगी में गायकी को निखार कर मधेपुरा जिले के
रानीपट्टीकी रेखा यादव आज संगीत में एक मुकाम हासिल कर चुकी है. बचपन माइके
कुमारखंड की गढिया में गुजरा, पर पिता स्व० देव नारायण यादव ने संगीत में बेटी की
रुचि जो पैदा की वो
बेलहा परिहारी के प्रथम गुरु स्व० सत्यनारायण यादव और फिर
परिमल बाबू (खजुरी) ने आगे बढ़ाया. पर वर्ष 1990 में पिता की मृत्यु, वर्ष 1993 में
शादी, वर्ष 2003 में सास का निधन और फिर लगातार ससुर के बीमार रहने की स्थिति में
रेखा ने परिवार को अधिक समय देना ही मुनासिब समझा, पर अंदर का संगीत विपरीत
परिस्थितियों में भी इन्हें झकझोरता रहा और संघर्ष के बीच ही रेखा का संगीत में
अपना महत्वपूर्ण स्थान बना लेना किसी चुनौती से कम नहीं है.

वर्ष
2006 से 2014 तक संगीत और कला में बहुत अधिक सक्रिय नहीं रह सकी पर इस वर्ष अचानक
इन्हें लगा कि मधेपुरा में कला-संस्कृति दुर्दशा की दौर से गुजर रहा है. रेखा
मधेपुरा में कला भवन की मांग करने वाली शुरूआती कलाकारों में से एक थी. कला भवन
बना भी पर इसके उदघाटन के अवसर पर यहाँ के अन्य कलाकारों को पारिवारिक संघर्ष से
जूझ रही रेखा की याद नहीं आई. मधेपुरा टाइम्स से खास बातचीत में रेखा अपना दर्द
बांटते हुए कहती है कि उसके
बाद वह कला भवन के बाहर की सीढियों पर बैठकर घंटों रोई
थी. और उसी के बाद से रेखा ने अपने रुके हुए संघर्ष को फिर से गति प्रदान किया और
आज मधेपुरा के ‘कला
संस्कृति परिवार’ की
संयोजक के रूप में स्थापित है.

दरअसल
रेखा की संगीत में इन दिनों निखार तब कुछ और ज्यादा आया जब उसे साथ देने मधेपुरा
के सिंहेश्वर निवासी एक और प्रतिभा शम्भू साधारण आगे आये. शम्भू लोकप्रिय कृष्णा
म्यूजिक के निर्देशक और संगीतकार हैं और उन्होंने जब रेखा को अपना स्टूडियो मुहैया
कराया तो फिर रेखा के गले की आवाज सुर-लहरी बिखेरनी लगी. ‘कांवरिया एक्सप्रेस, और ‘दुर्गापूजा’ कैसेट जब मार्केट में आये तो
लोगों ने खूब सराहा.
रेखा ने
मधेपुरा टाइम्स के कैमरे के सामने भी कई गाने गए. रेखा यादव के गाये लोकप्रिय गीत ‘गंगाजल से गगरिया भरा द बालमा,
हमरा बाबा के दूअरिया दिखा द बालमा’ सुनने के लिए यहाँ
क्लिक करें.
(ब्यूरो रिपोर्ट)
“कैसे सहब पिया बाली मोर उमरिया”: मधेपुरा की शारदा सिन्हा है रेखा यादव
Reviewed by मधेपुरा टाइम्स
on
November 09, 2014
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