मुस्लिम समाज मे पर्दा प्रथा: जिंदगी जीने के लिए है चारदीवारी में बंद हो कर काटने के लिए नहीं...

पर्दा पर्था आज के समाज के सामने एक भयानक अभिशाप  बन कर सामने आया है, चाहे वह किसी भी समाज में क्यों ना हो. मुस्लिम समाज में ये प्रथा भले ही लोगों के लिए सदियों से अहम हिस्सा बना हुआ हो, पर इसकी वजह से ना जाने कितनों को मनचाहा जीवन जीने की आजादी नहीं दी जाती है. आज मुस्लिम समाज में खास तौर पर महिलाएं इस रिवाज का एक अहम हिस्सा है पर इसकी वजह से वे बदलते समाज से बहुत पीछे रह जाती हैं. उसके पास ना तो किसी चीज की सही जानकरी होती है ना ही अपना कोई वजूद. पर्दा प्रथा के कारण वो हमेशा अपने अभिभावक की गुलाम होती है. चाहे उसपर कितना भी जुल्म हो उसे सहना पड़ता है क्योंकि वो तो पर्दा प्रथा के बंधन से जकड़ी रहती है. ऐसे हालात में उसे खुद नही पता होता है कि वो क्या करे और कैसे उसपर हो रहे जुल्म के खिलाफ़ आवाज उठाए.
               इस रीत से आज के समाज मे से कोई भी लाभ नही है बल्कि हानि ही हानि है. जरा सोचिए ! क्या जिंदगी को अपने तरीके से जीना गुनाह है ? अगर नहीं तो आज का समाज ऐसी रीत को क्यों निभा रही है ? क्यों किसी मासूम बच्ची को इस कमजोर सिस्टम की वजह से बचपन से ही चारदीवारी में बंद कर दिया जाता है ? क्या उनका इतना भी हक नहीं कि वो खुली हवा में सांस ले सके ? अगर किसी समाज को बदलना है तो पहले ऐसे नियमों को बदलना ही होगा.
शिक्षा पर पर्दा प्रथा का असर:  आज इस प्रथा का  सबसे ज्यादा असर शिक्षा परपड़ रहा है. किसी भी समाज में महिलाएं परिवार का अहम हिस्सा होती हैं. अगर किसी परिवार में महिला अशिक्षत हो तो पूरे परिवार को बेहतर बनाना काफी मुश्किल है. लेकिन जिस समाज में महिलाएं घर से बाहर ही नहीँ निकलती वो अच्छी शिक्षा कैसे हासिल कर पाएगी ? एक बेहतर समाज के लिए महिला और पुरुष दोनों का शिक्षित होना जरूरी है क्योंकि शिक्षित लोग गलत और सही कामों मे फर्क आसानी से समझ पाते हैं. जबकि अशिक्षितों को सही और गलत का फर्क जल्दी समझ में नहीं आता और इसीलिये वे आए दिन गलत कामों को अंजाम देते हैं और समाज के लिए मुश्किलें पैदा करते हैं.
      और अंत में इस प्रथा का एक और सबसे बड़ा नुकसान यह है कि लोगों का मानसिक विकास सही ढ़ंग से नही हो पाता यहाँ तक कि महिलाएं कभी-कभी अपना मानसिक संतुलन भी हमेशा के लिए खो देती हैं. बंद होनी चाहिए ऐसी प्रथा जो व्यक्ति बिना अपराध के कैद सी जिंदगी दे.
मुस्लिम समाज मे पर्दा प्रथा: जिंदगी जीने के लिए है चारदीवारी में बंद हो कर काटने के लिए नहीं... मुस्लिम समाज मे पर्दा प्रथा: जिंदगी जीने के लिए है चारदीवारी में बंद हो कर काटने के लिए नहीं... Reviewed by मधेपुरा टाइम्स on July 14, 2014 Rating: 5

4 comments:

  1. ये हमारे समाज के लिये बहुत ही अच्छी बात है| हर किसी को अपने जिन्दगी को अपनी तरह जीने का पूरा हक़ हैं | तो हम कौन होते हैं इनके हक़ को मारने वाले | आज की नारी किसी से कम नहीं हैं, आज वो हर काम में पुरुषों से कहीं भी पीछे नहीं है| तो फिर ऐसी बंदिश, ऐसी प्रथा किस काम की जो एक प्राणी को जीते-जी मरने को मजबूर किया जाय| इस और हम सब को एक ऐतिहासिक कदम उठाना चाहिये|

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  2. Islamic custom , 7th century ke Arabia ke liye thik tha...lekin abhi 21st century mein bhi ye custom lada ja raha hai..Muslim personal law , muslim mahila ka shoshan karti hai..ummid karta hun ki nayi BJP sarkar mein itni takat ho ko woh ise badal sake

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  3. Islamic custom , 7th century ke Arabia ke liye thik tha...lekin abhi 21st century mein bhi ye custom lada ja raha hai..Muslim personal law , muslim mahila ka shoshan karti hai..ummid karta hun ki nayi BJP sarkar mein itni takat ho ko woh ise badal sake

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  4. Islamic custom , 7th century ke Arabia ke liye thik tha...lekin abhi 21st century mein bhi ye custom lada ja raha hai..Muslim personal law , muslim mahila ka shoshan karti hai..ummid karta hun ki nayi BJP sarkar mein itni takat ho ko woh ise badal sake

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