अतीत के झरोखों में मृतक दिलेर दारोगा

बुधवार की रात टीवी पर समाचार चैनलों को खंगालते उस वक्त थोड़ी देर के लिए ठहर गया जब वैशाली जिले के जुड़ावनपुर थाना के थानाध्यक्ष की हत्या का समाचार सुना. समाचार से निराशा मिली तो थोड़ी उत्सुकता भी बढ़ी क्योंकि थानाध्यक्ष मधेपुरा जिला निवासी ही था. सहसा अपने स्कूल के दिनों के मित्र अनिल कुमार यादव की याद आ गई लेकिन दिल ने इस बुरे ख्याल को सिरे से खारीज कर दिया. संभवत: इसके कारण यह थे कि ये हत्या दो पक्षों के विवाद में बीचबचाव के दौरान हुई थी और थानाध्यक्ष को बड़ी आसानी से शिकार बनाया गया था. मैं जिस मित्र अनिल को जानता था वह एक जिंदादिल सीधा इंसान के साथ-साथ काफी बहादुर और दिलेर भी था. गुरूवार की सुबह जब वास्तविकता से अवगत हुआ तब भी दिल मानाने को तैयार नहीं था कि अनिल अब हमारे बीच नहीं है.
     हमारी अनिल के साथ स्कूली पढ़ाई बी.एल. हाई स्कूल मुरलीगंज (मधेपुरा) में हुई दशवीं कक्षा तक हम साथ पढ़े और हॉस्टल में भी साथ-साथ रहे. 1985 में मैट्रिक परीक्षा पास करने बाद इत्तेफाक से आगे की पढ़ाई के लिए हमलोग पटना गए जहां अक्सर मुलाक़ात होते रहती थी. स्कूल के जमाने से ही अनिल की तमन्ना पुलिस अधिकारी बनने की थी. वह स्कूल की एनसीसी टीम का प्रतिनिधित्व करता था जिसका सदस्य मैं भी था. अनिल का एनसीसी के प्रति गजब का समर्पण भाव था. कॉलेज की पढाई के दौरान जब भी कैरियर की बात होती थी, तो पुलिस सेवा के प्रति अपने झुकाव को छुपा नहीं पाता था. संयोगवश वर्ष 1994 में उसका चयन सब-इन्स्पेक्टर के लिए हो गया. सब-इन्स्पेक्टर बनने के बाद अनिल से हमारी मुलाक़ात पटना जंक्शन पर हुई थी तो उसने कहा था कि यह मेरे सपने का पहला पड़ाव है, मंजिल अभी दूर है. सेवा के दौरान जब कभी बातचीत होती थी तो उसकी बातों में दिलेरी और दृढ़ इच्छाशक्ति तथा कर्त्तव्य के प्रति समर्पण भाव की झलक मिलती थी. हमेशा लीक से हटकर चलने वाला एक अलहदा मित्र इस प्रकार असमय साथ छोड़ जाएगा, विश्वास नहीं हो रहा है.
अतीत के झरोखों में मृतक दिलेर दारोगा अतीत के झरोखों में मृतक दिलेर दारोगा Reviewed by मधेपुरा टाइम्स on January 02, 2014 Rating: 5

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