कॉंग्रेस और बीजेपी सीख लें ‘आप’ से: एक समीक्षा

दिल्ली विधानसभा चुनाव में सत्ताधारी कांग्रेस की शर्मनाक हार को लेकर यहाँ के राजनीतिक हलकों में काफी चर्चा है. आमलोग मोदी की तुलना में राहुल के करिश्मा को कमतर आंक रहे हैं. लेकिन यहाँ चर्चा है कि यह हार राहुल की नहीं बल्कि कांग्रेस की है. क्योंकि कांग्रेस सिर्फ सत्ता को लक्ष्य कर चुनाव लड़ती है, आम जनता के सरोकारों को टाल जाती है. यही वजह है कि तकरीबन 20 सीटों पर कॉंग्रेस दूसरे नंबर पर भी नहीं रह सकी.
      राहुल को आगे कर कॉंग्रेस ने कोई गलत नहीं किया. गलती यही हुई कि पार्टी का लगाम आउटसोर्स नेताओं के हाथों में रख दिया गया. पार्टी में ऐसे नेताओं की भरमार है जिनका जमीनी सरोकार कतई नहीं रहा है. वे जमीनी हकीकत से भी भिज्ञ नहीं हैं. उनके हावभाव आम जनता से भिन्न हाई प्रोफाइल की रही है. जबकि आम आदमी पार्टी जन सरोकारों को लक्ष्य रखकर पहली बार चुनाव मैदान में उतरी और अपेक्षा से आगे बढ़कर बाजी मार ली. लोगों की मानें तो कांग्रेस और बीजेपी को आम आदमी पार्टी से सीख लेनी चाहिए.
      इस चुनाव नतीजे से जो अहम बात सामने निकलकर आई है वो यह है कि आम मतदाता ने परंपरागत पार्टियों और उनके नेताओं को नकार दिया है. यह चुनाव परिणाम और आम आदमी पार्टी की उभरती छवि भविष्य की राजनीतिक दशा और दिशा तय करेगी.
      राहुल गांधी से लोगों की बड़ी उम्मीद थी. कयास यह लगाया जा रहा था कि वे अपने पिता के पदचिन्हों पर चल रहे हैं. दागी नेताओं को बचाने वाले विधेयक को लेकर उनका विचार स्वागतयोग्य था. राहुल विधेयक को बकवास करार देकर कूड़ेदान में फेंकने की बात कही थी. उनका वह तेवर चुनाव तक बरकरार रहता तो कांग्रेस को आशातीत सफलता मिलती. किन्तु उनका यह जज्बा जल्द ही सोडा वाटर की तरह ढक्कन खुलते ही ठंढा पड़ गया और लोगों की उम्मीद भी जाती रही. चुनाव में राहुल एकाएक भावनात्मक मुद्दा भजाने लगे और अपने दादी और पिता के साथ हुई घटनाओं को दुहराने लगे. 21 वीं सदी के मतदाताओं की भावनाओं को नकार गए.
      भ्रष्टाचार से आज आम जनता आहत है. इसी के कोख से उत्पन्न बहुतेरे समस्याएं हैं. उग्रवाद और आतंकवाद को पोषण इसी से मिल रहा है. जमीनी स्तर पर इसका दुखद एहसास हर कोई कर रहा है. प्रदेश के नेता भी इसे नजर अंदाज कर चल रहे हैं. विकास के बिहारी मॉडल की दुहाई देते हैं. गरीब भूख और इलाज के लिए मर रहे हैं. सतही विकास का एहसास कर हमारे नेता खुश हैं. उनके भाषणों में भीड़ अपेक्षा लेकर आती है. इसका अंदाजा मतों के रूप में लगाना एक छलावा हो सकता है.


देव नारायण साहा
वरिष्ठ पत्रकार, टाइम्स ऑफ इंडिया.
मधेपुरा.
कॉंग्रेस और बीजेपी सीख लें ‘आप’ से: एक समीक्षा कॉंग्रेस और बीजेपी सीख लें ‘आप’ से: एक समीक्षा Reviewed by मधेपुरा टाइम्स on December 12, 2013 Rating: 5

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