|रंजीत राजपूत| 15 अप्रैल 2013|
बीते 23---24 फ़रवरी 2013 को एक एन.जी.ओ बलभद्र स्मृति सेवा संस्थान द्वारा सदर अस्पताल में लगाए गए नेत्र शिविर में सहरसा जिले के विभिन्न इलाके के सैंकड़ों लोगों ने मोतियाबिंद का ऑपरेशन कराया था जिसमें से हमारे पास उपलब्ध आंकड़ों के मुताबिक़ सौ से अधिक लोगों ने अपनी आँखों की रौशनी गंवा दी है। जाहिर तौर पर बेहतर तरीके से दुनिया देखने की चाहत में ये लोग अब सूरदास हो गए हैं। यानि मुफ्त में ऑपरेशन कराना इन्हें काफी मंहगा पड़ा है। आँखों की रौशनी गंवाने वालों में अधिक मात्रा में महिलायें शामिल हैं. दुनिया को डूबकर सिद्दत से देखने की चाहत ने इन्हें एक फरेबी शिविर में पहुंचा दिया जहां इन्होनें अपनी आँखें गंवा दी। बिना आँख के गैर और अपनों का अब इनके लिए कोई मायने नहीं। अब तो ये सूरदास बने बस औरों के मोहताज हैं।
बीते 23---24 फ़रवरी 2013 को एक एन.जी.ओ बलभद्र स्मृति सेवा संस्थान द्वारा सदर अस्पताल में लगाए गए नेत्र शिविर में सहरसा जिले के विभिन्न इलाके के सैंकड़ों लोगों ने मोतियाबिंद का ऑपरेशन कराया था जिसमें से हमारे पास उपलब्ध आंकड़ों के मुताबिक़ सौ से अधिक लोगों ने अपनी आँखों की रौशनी गंवा दी है। जाहिर तौर पर बेहतर तरीके से दुनिया देखने की चाहत में ये लोग अब सूरदास हो गए हैं। यानि मुफ्त में ऑपरेशन कराना इन्हें काफी मंहगा पड़ा है। आँखों की रौशनी गंवाने वालों में अधिक मात्रा में महिलायें शामिल हैं. दुनिया को डूबकर सिद्दत से देखने की चाहत ने इन्हें एक फरेबी शिविर में पहुंचा दिया जहां इन्होनें अपनी आँखें गंवा दी। बिना आँख के गैर और अपनों का अब इनके लिए कोई मायने नहीं। अब तो ये सूरदास बने बस औरों के मोहताज हैं।
डाक्टर की लापरवाही ने ली कई आँखें
Reviewed by मधेपुरा टाइम्स
on
April 15, 2013
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