भारत में जातीय संरचना इतनी घृणास्पद है कि प्रत्येक जाति अपनी हीन भावना के बोध से नही उबर पाती है।
उसे अपने से छोटी जाति को देखकर उतना गुमान नही होता, जितना कि अपने से बड़ी जाति को देखकर घृणा होती है।
पिछड़ा वर्ग एक ऐसा कामगार वर्ग है जो न तो सवर्ण है और न ही
अस्पृश्य या आदीवासी. इसी बीच की स्थिति के
कारण न तो इसे सवर्ण होने का लाभ मिल सका है और न ही निम्न या दलित होने का फायदा मिला। इनमें प्रजापत,
कश्यप, पाल-गड़रिया, नाई, धोबी, बैरागी,
तरखान, लुहार, धीमान, जांगड़,
पांचाल, रामगढि़या, भट्ट, जोगी, सुनार, छिंबा, नाथ, कुचबंध, तेली, रायबारी, डकौत, शोरगिर,
नट आदि प्राय: भूमिहीन शामिल हैं। एक
गांव में
इनकी संख्या भले ही थोड़ी है, पर
हर गांव में इनके घर पाए जाते हैं| ये वो वर्ग हैं जिनके पास ना तो खेती
लायक ज़मीन है, ना है दलितों
के भाँति बाबा साहेब अंबेडकर जैसे कोई रहनुमा, और ना ही शिक्षा के सही साधन …. और या ना ही दूसरे वर्गों की भाँति संगठित हैं ……..
सही माने तो पिछड़ा वर्ग आज तक समाज में अपना
सही मुकाम हासिल नही कर पाया है। यहाँ तक सविधान निर्माता बाबा साहेब
अंबेडकर ने भी इस वर्ग के साथ भेद भाव किया| उन्होने पिछड़ों को अनुच्छेद 340 के भरोसे लावारिस छोड़ दिया| वो महामानव चाहते तो उसी वक्त पिछड़ों का भी कल्याण कर
सकते थे, (जैसे संविधान लागू करते वक्त
अनुच्छेद 335 के तहत दलितों
को आरक्षण दिला कर दिया|) किंतु
उन्होने ऐसा नही किया …. एसा
ना करने की पीछे कारण या परिष्टियाँ तो वो ही जानते थे …… | बाबा साहेब दलित वर्ग के तो पूरी रहनुमा बन
गये और पिछड़े
वर्ग को मंझदार में छोड़ दिया ………| बाबा साहेब साफ कहते थे कि मैं सिर्फ़ दलितों के हितो की रक्षा के बारे
में सोचता हूँ| जबकि समाज में पिछड़े वर्ग की
भी वो ही स्थिति थी जो अमूमन दलित वर्ग की थी …..
आज़ादी के 40 वर्षो के बाद वी.पी. सिंह जी ने मंडल आयोग कि सिफारिशों को लागू किया (जिससे पिछड़ों को तोड़ा बहुत आरक्षण का लाभ मिला|)
तो देश दंगो की भेंट चढ़ गया ….| उसके बाद शायद ही किसी ने पिछड़े वर्ग के विषय में
सोचा हो ….
आबादी के लिहाज़ से दलितों से दुगनी आबादी वाले पिछड़ा वर्ग को दलितों जितना भी आरक्षण नही मिल
पाया है| और उसमे भी अब
कांग्रेस मुस्लिमों को डालना चाह रही है| कुल मिलकर पिछड़ों के उत्थान लिए ना तो संविधान
निर्माताओं ने ही सख़्त कदम उठाए और ना ही आज इनका कोई सशक्त नेता है जो इनका उत्थान कर सके …… पिछड़ों को यह विचार ज़रूर करना चाहिए की
कौन आज उनकी सही भलाई चाह रहा है ……. ……
भारतीय संविधान और कानून की दृष्टि से छुआछूत का
व्यवहार करना या किसी को दलित
कहना (जाति सूचक शब्दों का प्रयोग) दंडनीय अपराध है।
दूसरी ओर खुद ही एक वर्ग विशेष को दलित कहता है …….| आरक्षण जहाँ पिछड़ी जातियोँ और दलितों को आगे बढ़ने का
अवसर दे रहा है वही वे यह अहसास
भी करवाता है कि वे उपेक्षित हैँ।
कहना (जाति सूचक शब्दों का प्रयोग) दंडनीय अपराध है।
दूसरी ओर खुद ही एक वर्ग विशेष को दलित कहता है …….| आरक्षण जहाँ पिछड़ी जातियोँ और दलितों को आगे बढ़ने का
अवसर दे रहा है वही वे यह अहसास
भी करवाता है कि वे उपेक्षित हैँ।
आज आरक्षण राजनातिक पार्टियों के लिए एक अमोघ
अस्त्र है जिसका प्रयोग वो समय समय पर करती हैं ………. और जनता मूरख बनी रहती है …..? ताज़ा उदहारण मुस्लिमों को कांग्रेस द्वारा पिछड़े वर्ग के 27%
हिस्से में से ही आरक्षण देने की बात कहना|
मायावती का 27% से अलग 4% (शायद) आरक्षण देने की बात ……यह क्या है ? इसे क्या समझें ?
बड़ी विचित्र स्थति है देश की इतनी बड़ी आबादी बस ऐसे ही गुमराह होती रहती है ? लेकिन कब तक ? कब तक ? आखिर कभी तो ये अपने हक की बात करेंगे ?
बड़ी विचित्र स्थति है देश की इतनी बड़ी आबादी बस ऐसे ही गुमराह होती रहती है ? लेकिन कब तक ? कब तक ? आखिर कभी तो ये अपने हक की बात करेंगे ?
(ये लेखक के निजी विचार हैं)
रंजन यादव, पटना.
(लेखक का ब्लॉग है: http://ranjanwa.blogspot.in/)
‘पिछड़ा वर्ग को हमेशा ठगा गया’
Reviewed by मधेपुरा टाइम्स
on
March 26, 2013
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