सूनी आँखों में झांकते हुए जब कृत की माँ से मैंने
पूछा, “क्या अब तक जिन्दा है
आपका बेटा ?, आपका दिल क्या कहता है?”
माँ ने कहा, “नहीं..वो मर चुका है..मेरी आत्मा कह रही है...उसे मार दिया
गया है.”
सामने बैठे कृत के पिता गोपाल मुखिया चौंक पड़ते हैं,
“कैसे कह सकती हो
ऐसा...नहीं मर सकता है मेरा किट्टू...जब तक उसका बाप जिन्दा है, वो नहीं मर सकता
है. जब मैं मरूंगा उसके बाद ही मेरे बेटे की मौत हो सकती है.”
मधेपुरा
के एक उम्दा रंगकर्मी कृतराज को गायब हुए लगभग ढाई साल गुजर चुके हैं. कृत जिन्दा
है या फिर मर चुका है ? सवाल आज भी उसी तरह उसके जानने वालों के जेहन में कायम है.
कृतराज के गायब होने के बाद जो हाई-प्रोफाइल ड्रामा हुआ, वो एक कमजोर पिता की
बेबसी, टूट चुकी माँ के आंसू और भाई से उम्मीद लगाये बहन के उजड़े संसार को देखते
हुए एक शर्मनाक वाकया के सिवा कुछ और नहीं है. क्या ताकतवर लोगों के पॉलिटिक्स,
दोस्तों और प्रेमिका की धोखाधड़ी और सड़ी-गली पुलिस व्यवस्था की भेंट चढ़ गया मधेपुरा
के रंगमंच का बादशाह ?
इन्तजार
में सूख चुके माँ की आखों की तरफ देखते हुए जब मैंने फिर पूछा कि उसकी कौन सी
यादें आपको सबसे ज्यादा तड़पाती हैं तो माँ ने बताया कि शाम में स्नान करता था वो
और कपड़े पहनकर बाजार जाने से पहले मुझसे उसका पैसे माँगना अब भी रूला देता है
मुझे. मैं जब कहती थी कि नहीं हैं पैसे तो जवान बेटा मुझे गोद में उठा कर गाने
लगता था.. “तूने
मेरा दूध पिया है तू बिलकुल मेरे जैसा है, तुझमे है खून मेरा तू बिलकुल मेरे जैसा
है.......”
आखिर
किस साजिस का शिकार हुआ कृतराज ? मधेपुरा टाइम्स की फिर से की गई तफ्शीश से खुले
हैं कई ऐसे राज जिसे दवाब में आकर दबा दिया गया. अगले अंक से हम दिखाते हैं उस
रंगमंच की दुनियां का काला चेहरा जिसमें सामने तो आपको कला दिखेगी पर पीछे है
स्याह और घुप्प अँधेरा जिसमें कृतराज जैसे रंगकर्मी की चीख किसी को सुनाई नहीं
देती और हो जाती है एक हत्या. (जैसा एक माँ का दिल कहता है.) (क्रमश:)
(क्राइम रिपोर्टर)
‘कैसे कह सकती हो ऐसा..नहीं मर सकता है कृतराज’ (भाग:1)
Reviewed by मधेपुरा टाइम्स
on
January 29, 2013
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