ताजे और ताजगी भरे रहने के लिए जरूरी है कि दिमाग में जो बातें हों वे
अच्छी तथा सकारात्मक तो हों ही, नई
भी हों। पुरानी बातों का कचरा दिमाग में भरा रहने से नई बातों का प्रवेश नहीं हो
पाता है और ऎसे में पुराने विषयों, बेकार
के अनुभवों तथा फिजूल के दिमागी कचरे के भरे होने की वजह से आदमी के जीवन से ताजगी
गायब हो जाती है।
हमारे आस-पास या सम्पर्कितों में खूब सारे लोग ऎसे हैं जो बरसों से
दिमाग को कूड़ादान बनाए फिर रहे हैं। इन लोगों के पास वर्तमान का कोई हिसाब हो या न
हो, दशकों पुरानी बातों का कचरा
दिमाग में सलीके से इस कदर भरा होता है कि जब चाहें इसे निकाल कर वापस पूरे मनोयोग
के साथ भीतर जमा देते हैं।
इन लोगों की पूरी जिन्दगी पर नज़र दौड़ायें तो साफ पता चलेगा कि दशकों
से संजोयी बातों और अपनी प्रशस्ति वाले जाने कितने ही दुःखद या सुखद अनुभवों का
खजाना भरे हुए ये चलते हैं।
इनमें से अधिकांश लोगों को यह ध्यान ही नहीं रहता कि वे जो बातें कर
रहे हैं और अपने अनुभव बड़ी ही शान व गर्व से सुना रहे हैं वे इन्हीं लोगों को जाने
कितनी ही बार पहले सुना चुके हैं।
तब सुनने वालों को भी लगता है जैसे आदमी न होकर कोई कैसेट हो, जो जब चाहे प्ले हो जाती है। अक्सर बातूनी
और बुजुर्गों में यह रोग ज्यादा देखा जाता है।
कई बार लोग बार-बार इनके मुँह से एक ही तरह की बात या विचार सुनते
रहकर भी कुछ बोल नहीं पाते क्योंकि सुनने वाले इनकी प्रतिष्ठा या बुजुर्गियत का
पूरा-पूरा ख्याल रखते हैं।
कभी कभार कोई व्यक्ति यह कह भी दे कि इसे तो हम सुन चुके हैं, तब भी ये लोग सुनाये बिना नहीं रहते। उल्टे
ये उस शख्स की बारह बजाने से भी नहीं चूकते जो इन्हें पुनरावृत्ति की याद दिलाते
हैं। ![](https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEg3Jyv29qqxILT7ZNgqe8zibAKYsZnbfd1FH6xUKtn-TYXYzgvtOtPep7SnDU19HYHk7ZVuCViAZVIksqk2lovlSG2yroJjV_acN-NJN_ol2GsmSYfiNswIYEA8aXMvqwI3_dSLONkfk8E/s1600/two-man2.jpg)
![](https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEg3Jyv29qqxILT7ZNgqe8zibAKYsZnbfd1FH6xUKtn-TYXYzgvtOtPep7SnDU19HYHk7ZVuCViAZVIksqk2lovlSG2yroJjV_acN-NJN_ol2GsmSYfiNswIYEA8aXMvqwI3_dSLONkfk8E/s1600/two-man2.jpg)
ऎसे लोगों की संख्या आजकल खूब है जो शेखी बघारने के लिए पुरानी बातों
को सुनाकर अपने अहं को परितृप्त करते हैं। अक्सर ऎसे लोग उस किस्म में आते हैं जो
निठल्ले हैं अथवा टाईमपास करने के सिवा उनके पास दूसरा कोई काम-धाम है ही नहीं।
आजकल ऎसे लोगों की बहुतायत है क्योंकि आदमी के सामाजिक सरोकार समाप्त
होते जा रहे हैं ऎसे में उसे समाजसेवा में अपने आपको समर्पित कर देने से कहीं
ज्यादा अच्छा लगता है फिजूल का वाग्विलास।
फिर आजकल जितने बोलने वाले हैं उतने ही सुनने वाले फालतू लोगों की भीड़
भी है। फिर आधे से ऊपर लोग इनमें ऎसे हैं जो सुनते ही बोलने के लिए हैं और बोलते
भी हैं तो सुनाने की मस्ती लूटने के लिए।
यह बात अच्छी तरह समझ लेनी चाहिए कि अभिव्यक्ति से पूर्व कई पहलुओं पर
गौर करें। जो बात औरों के समक्ष पहले कही जा
चुकी है उसी बात को उन्हीं लोगों के सामने दुहराने की गलती कभी न करें।
इसके लिए अभिव्यक्ति से पहले श्रवण करने वाले लक्ष्य समूह को जान लें
कि कहीं इनके सामने दुबारा तो वह वही बात नहीं करने वाले। लक्ष्य समूह पुराना ही
हमारे सामने हो तो ऎसी स्थिति में अच्छी तरह स्मरण करें और इन लोगों को वो बात न
कहें जो पहले कह चुके हैं।
यदि हम भूल चुके हैं कि इन लोगों को पहले कौनसी बात बता चुके हैं तो
फिर इन्हीं लोगों से इस बारे में पूछ लेने में कोई हर्ज नहीं है।
यदि पूर्ववर्ती अभिव्यक्ति का स्मरण रख पाने की स्थिति में न हों तो
यह प्रयास करें कि जो बात करें वह ज्यादा पुरानी न हो और हाल के समय की हों ताकि पुनरावृत्ति का कोई दोष
सामने न आ सके।
इसके लिए यह जरूरी है कि पुरानी बातों और परंपरागत विचारों या फिजूल
के उन अनुभवों को हमारे दिमाग से बाहर निकाल फेंके तथा नए विचारों का सायास स्वागत
करने की आदत डालें।
ऎसा होने पर ही हम अपने संपर्कितों की भावनाओं का आदर भी कर सकेंगे और
उन्हें बोरियत महसूस नहीं करने देंगे तथा अपने विचारों को परोसने का काम भी अच्छी
प्रकार कर सकते हैं।
-- डॉ. दीपक आचार्य (9413306077)
बार-बार न दोहराएँ एक ही बात को
Reviewed by मधेपुरा टाइम्स
on
December 18, 2012
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