कमीनों से दूरी बनाए रखें, इनका न साथ दें, न साथ रहें

दुनिया में सत और असम का संघर्ष सदियों और युगों से रहा है। हर युग में अच्छी और बुरी दोनों प्रकार की आत्माएं किसी न किसी स्वरूप को लेकर पैदा होती और मरती रही हैं लेकिन इनकी सम सामयिक हरकतें इतिहास बन जाती हैं।
अच्छी आत्माओं से नवसृजन का इतिहास बनता रहता है जबकि दुष्ट आत्माओं से विध्वंस और नकारात्मक प्रवृत्तियों का इतिहास कायम होने लगता है। इन्हीं के साथ तीसरे प्रकार की एक किस्म और है जिसे उदासीन कहा जा सकता है, इनके होने या न होने का समुदाय और परिवेश पर किसी भी प्रकार का कोई फर्क नहीं पड़ता है। इसलिए इनके बारे में गंभीरता से सोचने की कोई जरूरत नहीं होती।
समाज में सत्संग और दुर्जनों के संग हर कहीं किसी न किसी रूप में देखने को मिलते हैं। सज्जनों का संग भले कहीं दिखाई दे या न दें, मगर दुर्जनों का संग अक्सर उभर कर दृश्यमान होने ही लगता है और ये दुष्ट वृत्तियां हर किसी क्षेत्र में अपना असर दिखाने में कामयाब हो ही जाती हैं।
हमारा अपना क्षेत्र भी इससे अछूता नहीं है और दूसरे इलाके भी, हर जगह कमीनों का वजूद बना हुआ है। यह भी जरूरी नहीं कि ये कमीन किस्म के लोग अनपढ़ हों, अधपढ़े हों या पढ़े लिखे।
मत-सम्प्रदाय, समाज, देश, काल और परिस्थितियों से परे इस किस्म के अजीब लोग कहीं भी पाए जा सकते हैं। यही वे लोग होते हैं जिनके लिए नीति शास्त्रों में कहा गया है - दुर्जनं प्रथमं वंदे...।
दुर्जनों का शोर ज्यादा होता है और इनकी सारी वृत्तियां और मानसिकता असुरों, पिशाचों और भूत-प्रेतों से काफी मिलती-जुलती है। कई लोग छद्म रूप में कमीन होते हैं और कई लोग प्रत्यक्ष रूप में कमीन होते भी हैं और वे जैसे हैं वैसे उनकी बॉड़ी लैंग्वेज से दिखते भी हैं।
इन लोगों की न कोई स्थिर विचारधारा होती है, न जीवन का कोई एजेण्डा। सिर्फ एकमात्र एजेण्डा इनके मरते दम तक जारी रहता है वह यही है कि चाहे जिस तरह भी, कहीं से भी अपने हर स्वार्थ की पूर्ति किसी न किसी तरह होती रहे और उन्हें और लोग जमाने का सिकंदर मानते रहें।
अपने आपको प्रतिष्ठित मनवाने तथा हर क्षेत्र में स्थापित करने के लिए ऎसे लोग सारी मर्यादाओं और अनुशासन, यहां तक कि पूरी की पूरी मानवता को भी ताक में रखकर ये पाशविक और दानवी उपायों में रमे रहते हैं।
कमीनों की कहीं कोई कमी नहीं है, एक ढूंढ़ो तो लाख मिल जाते हैंं। फिर कमीनों के बीच की आपसी मैत्री और प्रगाढ़ स्नेह भी इतना कि लगे जैसे प्रेम या श्रद्धा का ज्वार ही उमड़ आया हो तथा भाटा आने की कोई संभावना भी दूर-दूर तक न दिखे।
जो लोग अपने जीवन के लक्ष्यों को पूरी शुचिता एवं समर्पित भावना के साथ प्राप्त करना चाहते हैं, औरों की जिन्दगी में उजियारा लाने के हामी हों, अपने इलाके और देश की सेवा का भरपूर जज्बा और दमखम रखते हों, उन लोगों को चाहिए कि वे जहां कहीं रहें वहां इन कमीनों से दूर रहें।
क्योंकि कमीनों के साथ किसी भी छोटे-मोटे स्वार्थ या रिश्तेदारी तक से उत्पन्न सान्निध्य भी हमें बुरी तरह दूषित कर सकता है क्योंकि दुर्जनों की दुर्गन्ध के कतरे खूब प्रभावी और तीक्ष्ण हुआ करते हैं और ऎसे में कोई भी सज्जन व्यक्ति इनके पास आकर इनसे बच नहीं सकता।
कुछ बिरलों को छोड़ दिया जाए तो कमीनों का प्रभाव हर कहीं दिख ही जाता है। जो लोग कमीनों के साथ रहते हैं अथवा कमीनों का साथ देते हैं अथवा कमीनों को किसी भी तरह का संरक्षण देते हैं,उन्हें भी बराबर का दोषी माना जाता है क्योंकि व्यक्ति उसी का संग करता है जिसके विचार और वृत्तियाँ उससे मिलती-जुलती होती हैं।
ऎसे में किसी भी स्वार्थ या और किसी कारण से भी चाहे-अनचाहे कमीनों का साथ किसी भी अच्छे व्यक्ति को लांछित करने, जीवन विकास में बाधाएं पहुंचाने और मार्ग भटका देने के लिए काफी हो सकता है।
 अपने पूरे जीवन को दिव्य एवं शुचितापूर्ण बनाने के लिए जरूरी है कि इन कमीनों की गंभीरता से पहचान करें और उनसे दूरी बनाए रखें ताकि कमीनों की छाया तक हम पर नहीं पड़ सके। इन कमीनों के बारे में सोचने की भी जरूरत नहीं होनी चाहिए क्योंकि इनका उन्मूलन और  उद्धार करने के लिए दूसरे कमीनों की खेप भी इनके साथ ही पैदा होती रहती है।

-- डॉ. दीपक आचार्य  (9413306077)
कमीनों से दूरी बनाए रखें, इनका न साथ दें, न साथ रहें कमीनों से दूरी बनाए रखें, इनका न साथ दें, न साथ रहें Reviewed by मधेपुरा टाइम्स on December 22, 2012 Rating: 5

No comments:

Powered by Blogger.