दरकता चौथा स्तम्भ

मीडिया को लोकतंत्र का चौथा स्तम्भ कहा गया है । ऐसा कह कर मीडिया पर बहुत ही गंभीर और महत्वपूर्ण  जिम्मेदारी डाली गयी है । बहुत ही अफ़सोस की बात है कि  आज इस जिम्मेदारी के साथ खिलवाड़  हो रहा है। वर्तमान समय में जबकि लोकतंत्र के अन्य तीनों  स्तंभों की हालत जर्जर हो रही है, यह चौथा स्तम्भ भी दरकने लगा है। ये  निश्चय ही विनाशकारी स्थिति है । 
                  भारत की आज़ादी की लड़ाई के दौरान लोक चेतना के निर्माण  में मीडिया ने बहुत ही क्रन्तिकारी भूमिका निभाई थी,  जबकि  उस गुलाम भारत में इस तरह के कार्य प्रतिबंधित थे। आज भारत भी स्वतंत्र है और मीडिया भी .....और समस्याएँ उस समय की अपेक्षा कहीं ज्यादा गंभीर हैं ....मगर मीडिया के वो तेवर कहीं नहीं दिख रहे, जिसके बारे में कहा गया था कि ....
                       "खींचो न कमानों को,  न तलवार निकालो ...
                       जब तोप मुकाबिल हो तो अख़बार निकालो ..।"
आज वही सत्ता का पिछलग्गू और बाज़ार का खिलौना बनकर निस्तेज बनता जा रहा है । आवश्यक, गंभीर, देशहित और लोकहित के मुद्दों को जनता तक पहुचाने के  बजाय सनसनीखेज ख़बरें देना मीडिया  की प्राथमिकता बन चुकी है । पत्रकारिता की विधा की गंभीरता और विद्वता पर छिछोरापन प्रभावी हो गया है । इस मामले में स्थानीय मीडिया की स्थिति और भी निराशाजनक है। यह स्थानीय राजनीति और पक्षपात से बुरी तरह ग्रसित है। कई बार तो समाचार छापने के लिए पत्रकार द्वारा सम्बंधित व्यक्ति से  पैसे मांगने की बात भी सामने आई है। इतना ही नही इनमें रचनात्मकता का भी काफी अभाव है ।
                 अब जरूरत है कि मीडिया अपने-आप पर पुनर्विचार करे । दूसरों को आईना दिखाने के साथ-साथ खुद अपना चेहरा  भी शीशे के सामने रखे ।
एक स्वस्थ, समृद्ध और शानदार भारत के निर्माण का अग्रदूत बने, यही उसके गरिमा के अनुकूल है। बेशक .... यह रास्ता  जोखिम भरा है ....लेकिन जरा सोचिए कि देश की सीमा पर तैनात जवान जब अपने जान की परवाह करने लगे तो देशवासियों का क्या होगा ? हमारा भारत आज  मीडिया से भी इसी जूनून की मांग कर  रहा है। सैनिक गोली और बम से लड़ते हैं ...तो पत्रकार कलम से लड़ते हैं । हमारी सेना बाहर के दुश्मनों से लडती है और मीडिया को देश के आन्तरिक दुश्मनों के खिलाफ मोर्चा खोलना होगा।  इस भटके हुए राष्ट्र को रास्ता दिखाना मीडिया का फ़र्ज़ भी है और दयित्व भी ......। कवि इकबाल के शब्दों में कहूँ तो यही कहना होगा .............
                         "वतन की फिक्र कर नादां, मुसीबत आने वाली है,
                          तेरी बरबादियों के मशवरे हैं आसमानों में .........।
                          न समझोगे तो मिट जाओगे ए हिन्दोस्तां वालों ..
                          तुम्हारी दास्तां तक भी न होगी दास्तानों में .......।

--रचना भारतीय, मधेपुरा
दरकता चौथा स्तम्भ दरकता चौथा स्तम्भ Reviewed by मधेपुरा टाइम्स on December 16, 2012 Rating: 5

1 comment:

  1. Rachana ji,you have been worried about it but media is going on with political representatives.In that case we should make a cheer for the media.Good luck indians.

    ReplyDelete

Powered by Blogger.