पत्रकारिता का गिरता स्तर: जिम्मेवार कौन (भाग-3)

दोहरे चरित्र जीते हैं पत्रकार
पत्रकार इस मायने में विचित्र प्राणी होते हैं कि दोहरा चरित्र जीना इनकी मजबूरी और पहचान दोनों है. कुछ परिस्थितियां और कुछ अपनी आदत की वजह से इनके मुख और मुखौटे अलग-अलग होते हैं. बेशर्मी की हद तो यह है कि बावजूद खुद को बुद्धिजीवी, ईमानदार और सर्वगुणसंपन्न मानने की गफलत पाले बैठे होते हैं. हीं भावना से ग्रसित ऐसे बहरूपिये पत्रकारों ने ही पत्रकार समाज को कलंकित कर रखा है. पत्रकारिता का गिरता स्तर: जिम्मेवार कौन? के इस तीसरे अंक में पत्रकारों के चेहरे को आम आदमी के नजरिये से हमने समग्र रूप से देखने की कोशिश की है.
            याद कीजिए सुपरहिट फिल्म इज्जत (1968) के उस गाने को क्या मिलिए ऐसे लोगों से जिनकी फितरत छुपी रहे, नकली चेहरा सामने आये असली सूरत छुपी रहे.... जो आज अधिकाँश पत्रकारों पर सटीक बैठती है. नकली चेहरा सामने लाना इनकी आदत में शुमार हो चुका है. लोगों के सामने शेर की तरह दहाड़ने वाले पत्रकार अपने प्रबंधन के सामने बकरी से भी बदतर स्थिति में होते हैं. हरकदम पर शोषण के शिकार ये पत्रकार अगर मुखौटा धारण नहीं करेंगे तो जीना दूभर हो जाएगा. मुखौटा ही इनका ब्रह्मास्त्र है जिसके बदौलत इनकी रोजी रोटी चलती है. गफलत और फरेब की दुनियां में जीवन बसर करते-करते यही नकली चेहरा इनका असली चेहरा बन गया है. इनका असली चेहरा देखना हो तो मुफ्त की भर पेट शराब पिला दीजिए, असली चेहरा सामने आ जायेगा.
            दरअसल हीं भावना से ग्रसित होना इनकी सबसे बड़ी समस्या है. निजी कैरियर में असफल होने के बाद जब वे इस पेशे को पनाते हैं तो इसे अहंतुष्टि के साथ कमाई का भी जरिया बनाने की कोशिश करते हैं. इनकी विशेषता यह भी है कि यह अपना सारा रौब कमजोरों और निरीह लोगों पर ही गांठते हैं. अहंतुष्टि और कमाई के लिए किस स्तर तक आज के कुछ बहरूपिये पत्रकार गिर जा रहे हैं इसे जनता भी बखूबी जानती है. लब्बोलुआब यह है कि ऐसे पत्रकारों से बेहतर तो कोठे पर बैठने वाली वेश्या होती है जिनका कोई छुपा हुआ चेहरा नहीं होता है.
            दोहरे चरित्र का आलम यह है कि पत्रकार अपनी स्वार्थ पूर्ति के लिहाज से ख़बरों का चयन करते हैं और खबर की भाषा भी इस बात की चुगली करती है कि इस खबर के मायने क्या हैं? हित की पूर्ति मतलब वसूली नहीं हुई तो खबर की भाषा ही बदल जाती है. यह हाल न केवल कस्बाई पत्रकारों का है बल्कि ऊँचे स्तर पर भी यह खेल खेला जाता है. एक टीवी न्यूज चैनल में स्ट्रिंगर एक शख्स ने कहा कि खबर चलाने से अधिक फायदा खबर न चलाने में हैं क्योंकि मैनेज करने के लिए जो राशि मिलती है वह न्यूज के एवज में मिलने वाली राशि से कहीं अधिक होती है. अखबारों में जो पत्रकार लंबे समय से एक ही जगह काबिज हैं वे किसी माफिया से कम नहीं होते हैं. पत्रकारिता की आड़ में रंगदारी माँगना इनके लिए मामूली बात होती है.
            ऐसा नहीं है कि हमलोग पत्रकारों के दोहरे चरित्र से अवगत नहीं हैं. सच तो यह है कि पुलिस से भी गंदी छवि पत्रकारों की आम लोगों के जेहन में है. पुलिस तो एवज में सुविधा देती है जबकि पत्रकार भयादोहन कर वसूली करते हैं. प्रबंधन भी पत्रकारों के इस नापाक चरित्र से वाकिफ है. एक प्रमुख हिन्दी दैनिक के हाल तक पटना से संपादक रहे शख्स ने जिला ब्यूरो की बैठक में खुले आम कहा था कि हमें पता है कि तुमलोगों की हैसियत 150 से 200 रूपये तक की है. एक दिलचस्प वाक्य सुपौल से जुड़ा है. किशनपुर थाना कांड संख्यां 28/99 के पर्यवेक्षण रिपोर्ट में 18 नवंबर 2000 को तत्कालीन एसपी जी.एन. शर्मा ने लिखा कि यह सर्वविदित है कि सभी पत्रकार अपनी इच्छा और स्वार्थपूर्ति के लिए ही ज्यादा समाचार छपवाते हैं. जिले के पत्रकार पीट पत्रकारिता के भरोसे ही चल रहे हैं और उनके विरूद्ध प्रतिवेदन देने से कोई असर नहीं होने वाला है.
            लाख टके का सवाल यह है कि पत्रकारिता का स्तर क्या इतना गिर चुका है कि शीशे के घरों में रहने वाले पुलिस और नेता भी अब पत्रकारों पर सवाल उठाने लगे हैं ? बहरहाल, बहस के इस मुद्दे को हम आप पाठकों के हवाले करते हैं क्योंकि पब्लिक है, सब जानती है.
(मधेपुरा टाइम्स ब्यूरो)
पत्रकारिता का गिरता स्तर: जिम्मेवार कौन (भाग-3) पत्रकारिता का गिरता स्तर: जिम्मेवार कौन (भाग-3) Reviewed by मधेपुरा टाइम्स on November 10, 2012 Rating: 5

9 comments:

  1. मधेपुरा टाइम्स को कोटि-कोटि धन्यवाद कियोंकि आपने गंदे मानसिकता वाले बंधुओ की गन्दी मानसिकता को उजागर किया !

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  2. sanjy gupta,purani bazarSaturday, 10 November, 2012

    घर का भेदी लंका ढाहे!आपने रावनात्व पर प्रहार किया है,आपको दिल से सलाम !

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  3. कोई महान आत्मा ही इतनी बड़ी पहल कर सकता है कियोंकि अपनी बिरादरी के दोहरे चरित्र को उजागर करना साधारण बात नहीं है!

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  4. एक बात कहना चाहूँगा प्रेस मे एक खास जाती का बोलबाला है इस बात को भी आपको उजागर करना चाहिए !

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  5. मधेपुरा के एक पत्रकार की भाभी की हत्या सभी परिवार वाले ने कर दी चूकि ! पत्रकार देवर ने पुलिस पदाधिकारी से मिलकर हत्या को आत्महत्या में बदल दिया !

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  6. madhepura times ke is samachar pe sabse jyada pratikiya milti hai..baki samachar pe nahi..ya toh sahi mein halat khabar hai ya patrakaron ki apas mein jabardast rivalry hai..

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  7. @ manij kumar ...jati ki bat na karein,sabko pata hai Madhepura mein kinka varchswa hai..ghisi piti bat

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  8. मधेपुरा टाइम्स भी इसीका हिस्सा लगता है।

    1. पहले MCAI के प्रशांत सिन्हा के बारे में न्यूज़ आया फिर विज्ञापन .
    2. रिषभ ऑटो का न्यूज़ आया अब विज्ञापन
    3. हीरो ऑटो वालों का न्यूज़ आया फिर विज्ञापन

    इसे क्या कहेंगे ---

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  9. उपरोक्त सभी प्रतिक्रिया पढने के बाद ये लगने लगा की मधेपुरा टाइम्स के खिलाफ यदि किसी ने प्रतिक्रिया दी तो मधेपुरा टाइम्स उसे भी प्रकाशित करता है लेकिन एक दैनिक अख़बार को हजारो लोग जलाते है उसे दैनिक अख़बार छपता नहीं है !मधेपुरा टाइम्स नैतिकता राम भगवन जैसी है !

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