नवसृजन और जनकल्याण के प्रणेता भगवान श्रीकृष्ण की
अनेकों छवियाँ भारतीय जनमानस से जुडी हुई हैं.श्रीकृष्ण के स्मरणमात्र से ही कभी
बाललीला करते तो कभी रासलीला रचाते या कालिया दमन करते श्रीकृष्ण या फिर
कुरुक्षेत्र के सारथी श्रीकृष्ण की छवि एकसाथ प्रकट हो जाती है.श्रीकृष्ण में सबसे
खास बात यह है कि उनका दर्शन व्यावहारिक था.यही वजह है कि वे दुनियां के पहले
मैनेजमेंट गुरु भी कहलाते हैं.
कुरुक्षेत्र में श्रीकृष्ण की कुशल रणप्रबंधन नीति ही पांडवों के जीत का
कारण बनी.उनका दर्शन व्यावहारिक था.जीवन को यथार्थ में देखने की उनकी दृष्टि थी.वे
परिस्थिति के अनुसार निर्णय लेते थे.इस लिहाज से उनके प्रबंधन नीति की आज भी
प्रासंगिकता है.गृह नीति हो या विदेश नीति अथवा आर्थिक नीति, उनके दर्शन में वह
सबकुछ मौजूद है जो एक देश के सफल संचालन के लिए जरूरी है.
श्रीकृष्ण के प्रबंधन नीति की खासियत यह है कि उसमे भावना और विवेक एक दूसरे
का पूरक है. मैनेजमेंट गुरु श्रीकृष्ण का वह व्यावहारिक कौशल ही था कि अत्याचारी
कंस को सबसे पहले आर्थिक रूप से कमजोर किया गया और फिर उसका वध किया.पूरे महाभारत
युद्ध के दौरान कहीं भी श्रीकृष्ण उहापोह की स्थिति में नजर नहीं आये.उलटे जब
अर्जुन ने भाई-बंधू की बात करते हुए युद्ध के प्रति झिझक दिखाई तो श्रीकृष्ण ने
उन्हें धर्म और अधर्म का पाठ पढ़ाया.
श्रीकृष्ण
प्रकृति के अनुसार निर्णय लेते थे.इसलिए उनके आसपास के लोगों को उनके निर्णय के
साथ सामंजस्य स्थापित करने में कभी परेशानी महसूस नहीं हुई.मतलब वे सर्वमान्य नीति
के
प्रणेता भी थे.आज पूरे विश्व में नीतियों का संकट है.ऐसे में श्रीकृष्ण के
दर्शन और प्रबंधन की प्रासंगिकता नजर आती है जो निर्विवाद, सटीक और व्यावहारिक थे.
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विचार के
स्तर पर भगवन श्रीकृष्ण कितने स्पष्ट थे उसका सबसे बेहतर उदाहरण कुरुक्षेत्र में
अर्जुन को दिया गया गीता का उपदेश है.यही उन्होंने अपने अवतार का प्रयोजन भी बताया
था.उन्होंने उस समय लोगों पर हो रहे अत्याचार को मिटाया और एक नए युग का सूत्रपात
किया.यही वजह है कि वे जगतगुरु के रूप में सारे संसार के पथप्रदर्शक हैं.
भगवान
श्रीकृष्ण मिश्रित अर्थव्यवस्था के पैरोकार भी थे.गाँव में आर्थिक खुशहाली और
पर्यावरण प्रबंधन के लिए उन्होंने गोधन की महत्ता को आमलोगों के बीच स्थापित
किया.लेकिन आज पूरे देश के साथ साथ कोसी का इलाका भी पशुधन संकट से जूझ रहा
है.कहते हैं कि कभी इस इलाके में दूध की नदियाँ बहती थी.लेकिन आज गली गली में शराब
की नदियाँ बह रही है.संक्रमण और तथाकथित सुशासन के इस दौर में एक बार फिर
श्रीकृष्ण के प्रप्रबंधन और दर्शन की जरूरत महसूस हो रही है.क्योंकि खुद श्रीकृष्ण
ने कुरुक्षेत्र में कहा था “यदा यदा हि धर्मस्य ग्लानिः भवति भारत,
अभि-उत्थानम्
अधर्मस्य तदा आत्मानं सृजामि अहम्”
(प्रस्तुति:पंकज
भारतीय)
व्यावहारिक दर्शन से जुड़े थे श्रीकृष्ण:जन्माष्टमी पर विशेष
Reviewed by मधेपुरा टाइम्स
on
August 10, 2012
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