हमारे बिहार की शिक्षा व्यवस्था में स्कूल तो है पर योग्य शिक्षक नहीं हैं,बच्चे तो हैं पर शिक्षा नहीं है.देश की सबसे बड़ी पूंजी शिक्षा जिसकी ओर बिहार ही नहीं पूरे देश को सोचना होगा जहाँ कोचिंग चलाने के नाम पर बड़े-बड़े शिक्षा संस्थान बच्चों का शोषण करते हैं.पढ़ाई के नाम पर मोटी से मोटी रकम वसूलते हैं.ये संस्थान अखबारों में बड़े-बड़े विज्ञापन देते हैं जिसका हरजाना वो बच्चे से ही वसूलते हैं,क्या यही है हमारे देश की शिक्षा व्यवस्था? चलिए देश की छोड़िये पहले हम अपने बिहार की ही बात करते हैं.यहाँ की शिक्षा व्यवस्था का क्या कहना! यहाँ की शिक्षा व्यवस्था तो और भी सोचनीय है.मगर हमारी सरकार का ध्यान इस ओर कहाँ,वे तो लगे हैं पुल और सड़क निर्माण में.हम सरकारी स्कूल की बात करें तो स्कूलों में शिक्षक तो हैं पर योग्य नहीं.स्कूलों में कम्प्यूटर की व्यवस्था यदि है भी तो कम्प्यूटर के शिक्षकों का भारी अकाल यहाँ पड़ा हुआ है.वैसे स्कूलों में कम्प्यूटर भी अल्प मात्रा में ही उपलब्ध है.वाह रे हमारी शिक्षा व्यवस्था! मुझे यह कहते बड़ा खेद हो रहा है कि सरकार ने जहाँ बच्चों को पढ़ने के लिए नि:शुल्क किताबें दी है,उन्हें सायकिलें दी हैं लेकिन स्कूलों में पढ़ाई नाम-मात्र उपलब्ध है.भला बताइये अगर ऐसी स्थिति हमारी शिक्षा की रही तो कैसे हमारे बिहार के बच्चे तरक्की करेंगे? ऐसे में कैसे हम बिहार के निर्माण की कल्पना कर सकते हैं?
शहर के मुकाबले यदि हम गाँव की बात करें तो वहां शिक्षा का स्तर और भी नीचे है.हाईस्कूलों में पढ़ाई नाममात्र को होती है.योग्य शिक्षकों का भी भारी अकाल है.क्या इस ओर सरकार को भारी-से-भारी कदम नहीं उठाना चाहिए.
पुल और सड़क निर्माण के माध्यम से अगर हमारी सरकार सोचती है कि हम तरक्की कर जायेंगे तो ये उनकी भारी भूल है.जब तक हम अपने राज्य में शिक्षा की स्थिति नहीं सुधारेंगे तब तक बिहार को एक विकसित राज्य के रूप में देखना एक कल्पना मात्र होगा.
--श्वेता सुमन सिंह, बी.एन.एम्.यू. के निकट, लालूनगर, मधेपुरा.
बिहार की शिक्षा व्यवस्था है सोचनीय
Reviewed by मधेपुरा टाइम्स
on
March 04, 2012
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