वेलेंटाइन डे! प्रेमोपहार और इजहार का खुला खेल.पाश्चात्य संस्कृति प्रेमी और उनके अन्धानुरागियों की दृष्टि में ‘वेलेंटाइन डे’ का अर्थ-महत्त्व जो भी हो, लेकिन बन्दा महज इसे ‘विलेंटाइन डे’ के अतिरिक्त कुछ और मानने को तैयार नहीं.जिस प्रकार लोकतंत्र जनसेवकों और लोकसेवकों के कारण आज भ्रष्टतंत्र के रूप में बदनाम है.
कारण ‘ठाकरे एंड कंपनी’ प्रेम-प्लेयर्सो’ के पीछे लट्ठ लेकर खड़ा है.भले ही बूढ़ा शेर गुर्राकर उलाहने-ताने दें, “मेरी कामयाबी से भतीजों को गुदगुदी हो रही है” जबकि यह सच है कि उनकी उदण्ड औलादों के हाथ में खुजली हो रही है.अपने शौर्य और पराक्रम की आजमाईश दिलवालों पर करना चाहती है.कभी बिहारियों को गरियाना तो कभी प्रेम खिलाड़ियों को हड़काना उनका प्रिय शगल है.कुटिल कुल की जटिल राजनीति क्या गुल खिलायेगी कहा नहीं जा सकता.रूप और माया की घनीभूत छाया में बसी मुम्बई नगरी की शरीफ वेश्याओं की अकूत कमाई से ठाकरे कुल बौरा गया है.प्राकृतिक, सामाजिक और नैतिक नियमों और विधानों में व्यवधान पैदा करना कितना न्यायसंगत है?
सावित्री सत्यवान को, रूक्मिणी श्रीकृष्ण को स्वयं वरण कर पवित्र दन्त कथा पैदा कर चुकी है.ठाकरे मंडली का शास्त्र ज्ञान से शायद कोई रिश्ता-नाता नहीं रहा.लंगटई में ही उन्हें विश्वास है.उन्हें पता नही कि-
“जब-जब प्यार पर पहरा हुआ है,
तब-तब प्यार और गहरा हुआ है.”
अक्खड़ और फक्कड़ संतकवि कबीर ने भी प्रेम को महिमामंडित करते हुए कहा है-
“पोथी पढ़ी-पढ़ी जुग मुआ,पंडित भय न कोय,
ढाई आखर प्रेम का पढ़े सो पंडित होय.”
वैसे प्रेमोद्योग के डायरेक्टर मटुक बिहारी कबीर के कथन का पूर्णत: दोहन कर सिद्धि और प्रसिद्धि पाने में कामयाब हो गए. ‘जूली कांड’ ने उन्हें हाईटेक किया और लव-गुरु बन गए.इससे पूर्व पार्वती
की पकड़ में बेचारा एन.टी.रामाराव आ गए.हरियाने के पूर्व राज्यपाल धनिक लाल मंडल की कुछ ऐसी ही कहानी है.ये साठाधिक वर्षीय पाठाओं ने अपनी जिंदगी के तीसरे-चौथे चरण में ‘इल्लू-इल्लू’ के चक्कर में फंसकर नौजवानों को चुनौती दे डाली.बुरा हो स्टिंग ऑपरेशन वालों का जिन्होंने कतिपय माननीयों की प्रेमलीला, रासलीला और कुछ खासलीला को कैमरे में कैद कर आम-अवाम के आगे परोसकर तौबा-तौबा जैसा कार्य किया.

प्रेम-कबड्डी के खेल में कुछ फिसड्डी नेता-नेत्रियों की नियति से निराश होकर तथाकथित बुद्धिजीवियों को लंबी साँसे छोडनी पड़ती है.अटल बिहारी, कलाम, नरेंद्र मोदी की तर्ज पर मायावती, जयावती, ममतावती, उमावती जैसी कितनी अगरबत्तियां-मोमबत्तियाँ चिर-प्रतीक्षित लिस्ट में टंगी हैं.बेचारे-बेचारियों ने निजी स्वार्थ को परित्याग कर अपनी कोमल भावनाओं को समाज सेवा की खूंटी पर सदा के लिए तंग दिए.
खैर, प्रेम-पंथियों की फील्डिंग का मुआयना कर बन्दा को अपना सर खुजलाकर यह फिकरा फेंकने की औकात तो है-
“प्रेमिका जैसे ही पत्नी के रूप में परिणत होती है,प्रेम का सोता शायद सूख जाता है.प्रेम इजहार की जगह तकरार काबिज हो जाता है या फिर मतलब निकल जाने पर यार लोग ‘खुदा हाफिज’ कहकर खिसक लेते हैं.”
--पी० बिहारी ‘बेधड़क’,
कटाक्ष कुटीर, महाराजगंज, मधेपुरा.
वेलेंटाइन डे बनाम विलेंटाइन डे
Reviewed by मधेपुरा टाइम्स
on
February 14, 2012
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