‘आये हैं ते जायेंगे,राजा-रंक-फकीर. एक सिंहासन चढ़ि चले एक बांधे जात जंजीर.’
कबीर की इस पंक्ति का अर्थ भले ही हो कि राजा और रंक दोनों को एक दिन मरना ही है,पर जिन्दा रहने में जो रंकों को कष्ट होता है उसका क्या? बिहार भले ही अब समृद्ध राज्य में गिना जाता हो,पर अभी भी बहुत से अपंगों को पेट चलाने के लिए भीख पर ही निर्भर रहना पड़ता है.जबकि इसके विपरीत बहुत से लोगों ने बड़ी मात्रा में अवैध संपत्ति अर्जित कर रखी है और लाखों रूपये महीने ऐशोआराम में नाजायज खर्च करते हैं.
एक ही तस्वीर में समाज के लोगों की तीन स्थितियां दिखाई गयी हैं.एक तरफ एक अंधा और विकलांग(रंक) दूसरे के सहारे भीख मांगने निकला है तो दूसरी तरफ आधुनिक कपड़े युवक (राजा) की सम्पन्नता को दर्शा रहा है.वहीं पास में एक अति साधारण (फकीर) किस्म का आदमी सबकुछ देखकर चिंतित सा नजर आ रहा हा. क्या समाज की ये विसंगति कभी खत्म हो सकेगी?
फोटो फीचर: आये हैं ते जायेंगे,राजा-रंक-फकीर.
Reviewed by मधेपुरा टाइम्स
on
January 23, 2012
Rating:
यही तो समाज और सामाजिक व्यवस्था है /प्रकृति की यही दस्तूर है /
ReplyDelete