राकेश सिंह/२८ दिसंबर २०११
सूबे में बेटियों का आगे बढ़ना प्रगति का प्रतीक माना गया.बेटियों ने जब घर के बाहर कदम रखा तो वे बेटों का विकल्प बन गयीं और सदियों से बेटे की चाह में मरा जा रहा समाज ने भी इस बात को मान लिया कि अगर लायक हों तो बेटियां भी बेटों से कम नहीं.पर आज सोनी भारती के बूढ़े माँ-बाप के सपने जुड़ कर भी बिखर गए.जिला प्रशासन ने सोनी की नौकरी एक झटके में छीन ली और दे दिया इस परिवार को एक ऐसा दर्द जिससे उबरना इनके लिए इतना आसान भी नहीं.छ: सेविका-सहायिका की चूक के कारण दो लेडी सुपरवाइजर की नौकरी का जाना पूरे जिले को स्तब्ध कर गया और एक बड़ा सवाल लोगों के सामने यह छोड़ गया कि क्या लेडी सुपरवाइजर के रूप में नवनियुक्त इन प्रतिभाओं की भी नौकरी रेत के घर के सामान है कि जब चाहो ढहा दो?
पूरे प्रकरण में कुछ अजीबोगरीब बातें उभर कर सामने आती हैं जिससे एकबारगी ऐसा लगता है कि प्रशासन ने सोनी भारती को लेडी सुपरवाइजर के पद से हटाने में या तो चूक की या फिर निश्चित ही जल्दीबाजी.दरअसल पूरा मामला शुरू होता है १५ दिसंबर को कोशी के आयुक्त जेआरके राव के ग्वालपाड़ा प्रखंड के आंगनबाड़ी केन्द्र संख्यां-१३ के निरीक्षण से.बता दें कि हर महीने की पन्द्रह तारीख को टीएचआर यानी टेक होम राशन का वितरण होता है और इसी वितरण के दौरान आयुक्त ने इस केन्द्र का निरीक्षण किया और पाया कि केन्द्र पर बच्चों की उपस्थिति काफी कम थी,पंजी में १.२५ बजे अपराह्न तक उपस्थिति दर्ज नहीं की गयी थी और टीएचआर के लिए फ़ूड पैकेट्स भी तैयार नहीं किये गए थे.मामला स्पष्ट रूप से अनियमितता का था और इसी को लेकर बर्खास्त कर दिया गया इस केन्द्र की सेविका, सहायिका और साथ में ग्वालपाड़ा की उस लेडी सुपरवाइजर को जिसपर इस केन्द्र की निगरानी का भार था यानी सोनी भारती.
ऊपर से तो मामला बिलकुल साफ़ लगता है पर जब इस मामले की तह में जाते हैं तो कई ऐसे तथ्य सामने आते हैं जिससे लगता है कि सोनी भारती इस पूरे मामले में निर्दोष है.पहली बात तो उस दिन सोनी की ड्यूटी प्रशासन ने केन्द्र संख्यां तेरह से हटाकर रेशना पंचायत में कर दी थी.यानी सोनी उस रोज उस केन्द्र पर थी ही नहीं जिस पर ऐसी अनियमितता पाई गयी.दूसरा आरोप इस पर ये लगा कि केन्द्र पर के संधारण पंजी से इस महिला पर्यवेक्षिका के द्वारा केन्द्र के निरीक्षण की पुष्टि नही होती.अगर जिले के विभिन्न आंगनबाड़ी केन्द्रों पर लेडी सुपरवाइजर के कार्यशैली को जानें तो हरेक महीने के शुरू में ही इन्हें ‘एडवांस प्लान’ सीडीपीओ को सौंप देना होता है जिसमे ये वर्णित रहता है कि वह किस केन्द्र पर किस रोज निरीक्षण के लिए जायेगी.सोनी के मुताबिक़ कथित केन्द्र संख्यां-१३ पर उसे ‘एडवांस प्लान’ के मुताबिक़ २५ तारीख को जाना था जिसकी सूचना उसने सम्बंधित सीडीपीओ को दे दी थी.ऐसे में पन्द्रह तारीख को ही केन्द्र के संधारण पंजी से इस महीने सोनी भारती के द्वारा किये गए निरीक्षण की पुष्टि नहीं की जा सकती थी. सोनी पर ये भी आरोप लगे कि वह मधेपुरा से ही आती-जाती है और कार्य देखती है.सोनी ये बताती है कि मैं ग्वालपाड़ा के शाहपुर में ही आवास लेकर रहती थी,पर प्रशासन द्वारा जब पूछा गया तो मुझे लगा कि मेरे घर के बारे में पूछा जा रहा है और मैंने कहा मधेपुरा में रहती हूँ.और समझने की ऐसी भूल की ऐसी सजा मिलेगी ये कभी सोचा भी नहीं था.वैसे भी सोनी की ग्वालपाड़ा पोस्टिंग को मात्र दो महीने ही हुए थे और पूरी नौकरी को चार महीने से भी कम.ऐसे में नयी नौकरी के गुर को सीखना इतने कम दिनों में संभव भी नहीं हो पाता है.देखा जाय तो किसी भी नौकरी में काम सीखने में भी कुछ महीने लग ही जाते हैं, पर यहाँ तो काम सीखने से पहले ही सोनी को घर बिठा दिया गया.
पूरे जिले में आंगनबाड़ी केन्द्रों की स्थिति इतनी बदहाल थी कि उसे ठीक करना चंद दिनों की बात नहीं हो सकती.इसमें सुधार के लिए ही महिला पर्यवेक्षिका की नियुक्ति हुई थी,पर इस तरह यदि महिला पर्यवेक्षिका बर्खास्त होती रही तो शायद ही आंगनबाड़ी केन्द्रों की स्थिति सुधर सके.जिले में इस तरह की अन्य घटनाओं को देखते ऐसा ही लगता है कि इस मामले में प्रशासन ने जितनी बेरूखी दिखाई,उतनी आज तक दूसरे मामले में नहीं.
मसलन,हाल में ही सात डॉक्टर जिले में नियुक्ति होने के बाद से जब लगातार ड्यूटी से गायब हो गए तो इसकी सूचना भर प्रशासन ने ऊपर भेजी थी, जबकि इसी तर्ज पर उन्हें भी बर्खास्त कर देना चाहिए था.इस जिले में लाखों के डीडीटी सड़ जाते हैं,पर प्रशासन जिम्मेवार लोगों पर कुछ नहीं कर मूक दर्शक बनी रहती है,
पर लेडी सुपरवाइजर के मामले में छोटी गलतियों पर भी प्रशासन बड़ी प्रतिक्रिया दिखाने लगता है जो आम लोगों की समझ से बाहर है.जहाँ जिले के अधिकाँश लोगों की सहानुभूति दोनों बर्खास्त महिला पर्यवेक्षिका के प्रति दिखाई देती है,वहीं कुछ का ये भी कहना है कि प्रशासन इन्हें चेतावनी देकर फिर से बहाल कर ले ताकि दो घरों के उजड़े सपने फिर से संवर सके.
क्या सोनी को बर्खास्त करना प्रशासन की चूक नहीं है ?
Reviewed by मधेपुरा टाइम्स
on
December 28, 2011
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kisi vi galti ki saza barkhastgi sahi nhi he han unka pakch jan kar agar kahin uska dosh sabit hota to pahli galti ke tor par warning diya jata aor apni galti ko sudharne ka moka diya jana chahiye tha ... waise commisnior sahab kafi honest , mehnati aor achche insan hen unke qalam se ye sza kuch ajeeb sa Lag raha he .. Unko ek bar apne faisle par goar krna chahiye
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