कहा जाता है कि कुछ दशक पहले वहां एक साधु आया था, उसने वहां खुदाई कराई थी लेकिन इसके बाद वह अचानक गायब हो गया। इस धार्मिक स्थल पर खुदाई के दौरान देव प्रतिमाओं से युक्त शिला भी प्राप्त हुई थी। इस शिलाखंड की लंबाई आठ फुट और ऊंचाई ढाई फुट है। इसके आगे के हिस्से में कई देवी देवताओं की मूर्तियां खुदी हुई हैं। माना जाता है कि यह शिलाखंड बौद्ध काल का है। खुदाई में इसके अतिरिक्त करीब छह फुट लंबे और सवा फुट चौड़े श्याम शिला खंड भी प्राप्त हुए। तीन अर्धेत शिला खंड गोलाकार रूप में आज भी विद्यमान हैं। इन शिलाखंडों में किसी लिपि में कुछ लिखा हुआ भी है जिसे अभी तक पढ़ा नहीं जा सकता है। मधेपुरा जिले में राष्ट्रीय राजमार्ग- 106 पर स्थित यह पूरा इलाका ऐतिहासिक है और खुद में कई चीजों को समेटे हुए है। नोहर में काली पूजा के मौके पर इलाके के दूर-दूर से लोग यहां अपनी मनौती के लिए आते हैं। यहां की काली को जागृत माना जाता है।
किंवदंती है कि यहां जो भी श्रद्धालु अपनी मनोकामना लेकर आते हैं, वह जरूर पूरी होती है इस एवज में उसे बलि प्रदान करना होता है। कहा जाता है कि मां काली द्वारा दानवों के नाश के बाद उनके इस भयंकर रूप को शांत आस्था करने के लिए देवी के सामने भगवान शिव को धरती पर लेटना पड़ा था और जैसे ही माता के चरण शिव पर पड़े, उसी समय उनका क्रोध शांत हो गया। इसी रूप को काली की प्रतिमा यहां हैं। यहां दो दिनों का विशाल मेला लगता है। नाटक होते हैं । यहां आने वाले श्रद्धालु पूर्णिया की पूरण देवी, सहरसा का अष्टयोगिनी मंदिर, उग्रतारा मंदिर, तारा स्थान, चंडी स्थान आदि भी दर्शन के लिए जाते हैं। नोहर के पास ही नयानगर, शाहकुंड भी है जहां दुर्गा पूजा के मौके पर मेला लगता है और यहां बलि प्रदान की प्रथा आज भी कायम है। पर्यटन के हिसाब से पूरा इलाका ज्यादा विकसित नहीं हो पाया है, इस कारण बाहर से आने वाले श्रद्धालु सिंघेश्वर स्थान स्थित धर्मशाला या टूरिस्ट सेंटर में ठहर कर शक्ति की पूजा करते हैं।
(राष्ट्रीय सहारा से साभार)

विनीत उत्पल,नई दिल्ली
जागृत काली स्थान है लक्ष्मी नारायण स्थान
Reviewed by मधेपुरा टाइम्स
on
October 13, 2011
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