“हर लम्हा एक तारीख बन जाता है,गर प्यार से जिया जाए,जिसे चाहो उस पर मरा जा सकता है,गर शिद्दत से चाहा जाय”.प्यार कहाँ देख पाता है-जात-पात,उम्र,समाज या और बंदिशें.दो प्यार भरे दिल जान ही कहाँ पाते हैं कि कब किसी की एक नजर ने जीने का बहाना दे दिया.वैसे तो हमेशा से क़ानून ने प्यार के बीच दीवारें खडी करने की कोशिश की,पर दिल के मामले में अक्सर कानूनों की धज्जियाँ उडती रहीं.सामजिक व्यवस्था ने प्यार के संबंधों को अवैध,अनैतिक कितने ही शब्दों से रोकने की कोशिश की,पर किसी पर दिल का आना अपराध तो नहीं ही कहा जा सकता.तो फिर क़ानून ने ऐसे कुछ समबन्धों के लिए सजा का प्रावधान क्यों कर दिया है?प्रेमी कह सकते हैं कि ‘कैद’ की सजा क्यों देते हैं,’उम्रकैद’ की दे दीजिए,यानी जिंदगी भर साथ रहने की.
हालांकि बदलते समय में न्यायालयों के निर्णय भी कमोबेश अब प्रेमी के हक में ही जा रहे हैं.ब्याहता पत्नी अपने प्रेमी के साथ रह सकती है,पति जबरदस्ती नहीं कर सकता और इसे
गैरकानूनी भी नहीं कहा जा सकता.कोर्ट का अब ये मानना है कि कोई भी व्यक्ति किसी वयस्क स्त्री को उपभोग की वस्तु नहीं समझ सकता.स्त्री की इच्छा के विरूद्ध उसे पति के पास रहने के लिए मजबूर नहीं किया जा सकता.ऐसी घटना हाल में मधेपुरा में भी हो चुकी है,जब तीन बच्चों की माँ ने अपने पति का साथ छोड़ा और नए प्रेमी, जो दो बच्चों का पिता था के साथ न्यायालय की सहमति से रहने चली गयी.
गैरकानूनी भी नहीं कहा जा सकता.कोर्ट का अब ये मानना है कि कोई भी व्यक्ति किसी वयस्क स्त्री को उपभोग की वस्तु नहीं समझ सकता.स्त्री की इच्छा के विरूद्ध उसे पति के पास रहने के लिए मजबूर नहीं किया जा सकता.ऐसी घटना हाल में मधेपुरा में भी हो चुकी है,जब तीन बच्चों की माँ ने अपने पति का साथ छोड़ा और नए प्रेमी, जो दो बच्चों का पिता था के साथ न्यायालय की सहमति से रहने चली गयी.
पर क़ानून की एक धारा ४९७ आई.पी.सी. ने हमेशा से विवादों को जन्म दिया है.यह धारा स्त्री-पुरुषों के संबंधों को लेकर है.इसके अनुसार पति जब किसी दूसरी स्त्री के साथ अवैध या प्रेम सम्बन्ध रखता है तो क़ानून पति को तो सजा ए सकता है पर पत्नी को नहीं.यानी सजा एकतरफा है,जबकि सम्बन्ध दोनों की सहमति से हुआ है.हालांकि इस बात पर बहुतों की राय ये है कि इसे अपराध नहीं माना जा सकता है और सजा किसी को भी नहीं मिलनी चाहिए.इसी धारा में अवैध संबंधों को परिभाषित करते हुए कहा गया है कि यदि कोई पुरुष दूसरे की पत्नी के साथ उस पुरुष की सहमति के बिना अथवा मौन अनुमति के शारीरिक सम्बन्ध रखे तो ऐसे शारीरिक सम्बन्ध बलात्कार नहीं,बल्कि अवैध सम्बन्ध कहलायेंगे.ऐसी स्थिति में अवैध सम्बन्ध रखने वाले पुरुष को पांच साल तक की सजा हो सकती है,पर सम्बन्ध की सहमति जताने वाली पत्नी को कोई सजा नहीं हो सकती.
क़ानून जो कहे,पर प्यार के इजहार पर अब हाय-तौबा मचाने से बहुत कुछ होता नहीं देख रहा है.प्यार ना कोई बंधन ही मान रहा है और न जाति-धर्म,रीति-रिवाज या फिर उम्र.उम्र में बड़ी या बहुत ही छोटी लड़की से प्यार के इजहार को अब समाज सहजता से लेने लगा है.वैसे भी ‘मियाँ-बीबी राजी तो क्या करेगा काजी’की तर्ज पर जब प्रेमियों को वैध-अवैध पर बहस करने को छोड़ दिया जाय तो क़ानून की सारी दलीलें ध्वस्त होती नजर आयेंगी और निष्कर्ष यही सामने आएगा कि प्रेम किसी बंधन को मानने को तैयार नहीं.
(मधेपुरा टाइम्स ब्यूरो)
प्यार के कानूनी इफेक्ट्स
Reviewed by मधेपुरा टाइम्स
on
September 02, 2011
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