उम्मीद पानी में बहा:टापू बना कोसी

पंकज भारतीय|२१ अगस्त २०११
कुसहा त्रासदी की तीसरी बरसी मनाई जा रही है.लगभग वही परिस्थिति तीन साल बाद आज भी है.मंजर खौफनाक नहीं है लेकिन हर चेहरे पर दहशत है और भविष्य के प्रति अनिश्चिंतता के भाव देखे जा सकते हैं.फर्क यह है कि वर्ष २००८ में लोग घर-बार छोड़ने को बाध्य हुए थे, लेकिन वर्ष २०११ में घर में भी रहकर लोगों की नींदें उड़ी हुई है.वजह साफ़ है, आख़िरी उम्मीद भी भादो की जोरदार बारिश में बह गयी.बलुआहा नदी और बेंगा नदी(मुरलीगंज) में स्थित डायवर्सन टूट चुका है और मधेपुरा, सहरसा तथा सुपौल का सड़क संपर्क राज्य की राजधानी से भंग हो चुका है.
      सत्ता के मुंडेर पर बैठे बहरूपियों द्वारा कोसी के लोगों को हमेशा आश्वासन की घुट्टी पिलाई जाती रही है.कुसहा त्रासदी के बाद लोकसभा और विधानसभा के चुनाव हुए. तकदीर और तस्वीर बदलने की चाहत में स्थानीय मतदाताओं ने एकतरफा विश्वास व्यक्त किया.लेकिन सिला आपके सामने है.इससे बड़ा दुर्भाग्य और क्या हो सकता है कि मुरलीगंज जैसा कस्बाई शहर दो भागों में विभक्त हो चुका है.बलुआहा का डायवर्सन जब अंतिम साँसे गिन रहा था तो उसको बचाने की महज औपचारिकता पूरी की जा रही थी.बेंगा के डायवर्सन को बचाने की तो सुगबुगाहट भी नही हुई.
     आखिर इस बदहाली भरे दौर के लिए जिम्मेवार कौन हैं?क्यों नहीं तीन साल बाद भी दोनों नदी पर पुल बनाए जा सके?डायवर्सन के नाम पर करोड़ों रूपये खर्च हुए और उसे महज बारिश क्यों उड़ा ले गयी?डायवर्सन बनाने वाले पढ़े लिखे इंजीनियरों को क्या इतना भी नहीं पता था कि पुल का विकल्प डायवर्सन किस दर्जे का होना चाहिए?शायद ऐसे ही भ्रष्ट अधिकारियों और राजनेताओं के लिए जनलोकपाल और अन्ना ट्राइल  की जरूरत है.
       सहरसा, सुपौल और मधेपुरा की लगभग ६५ लाख जनता भगवान भरोसे है.इस टापू से निकलने के लिए रेल एकमात्र सहारा है जो ऊंट के मुंह में जीरा साबित हो रहा है.पूरे दिन में केवल दो ट्रेनें पटना का रूख करती है.डुमरी पुल क्षतिग्रस्त पिछले साल से है और स्टील पाइल ब्रिज के नाम पर २० करोड़ रूपये भ्रष्ट अधिकारी और राजनेता डकार चुके हैं.मधेपुरा-मुरलीगंज रेल लाइन तीन वर्ष बाद भी अधूरा है जिसकी परवाह न तो स्थानीय जनप्रतिनिधियों को है और न ही पश्चिम बंगाल रेल मंत्रालय को.मुरलीगंज बेंगा पुल पर स्थित पुराने पुल की मरम्मती कर मुरलीगंज को एकीकृत करने का प्रयास जारी है, लेकिन यह पुल कब जमींदोज हो जायेगी,कहना मुश्किल है.बलुआहा नदी पर पुराना पीपा पुल फिलहाल लोगों का सहारा बनी हुई है जो कभी भी दम तोड़ सकती है.जाहिर है कोसी प्रमंडल की निरीह जनता की मुश्किलें कम होती नजर नहीं आ रही है.

     इस पूरे परिपेक्ष्य में दैनिक समाचार पत्रों की भूमिका हास्यास्पद है.अखबारों की हेडलाइंस बनती है कि नेपाल और बराज से पानी छोड़े जाने के बाद डायवर्सन ध्वस्त हो गया.दरअसल यह पूरा तथ्य ही भ्रामक है.अल्पज्ञानी और स्कूल में सबसे पिछले बेंच पर बैठने वाले
जब जिले और कसबे के पत्रकार बनते हैं तो ऐसी ही हेडलाइंस बनेगी.यह समझना जरूरी है कि पानी छोड़ने या पकड़ने की चीज नही होती.न ही इसको रोक कर रखने वाली कोई मशीन नेपाल के पास है.कोसी जलग्रहण क्षेत्र में जब-जब अधिक बारिश होती है और हिमालय परिक्षेत्र में गरमी से बर्फ पिघलती है तो उसका सीधा प्रभाव कोसी के डिस्चार्ज पर पड़ता है.कोसी के डिस्चार्ज से अगर डायवर्सन के ध्वस्त होने का मसला जुड़ा होता तो यह अगस्त के प्रथम सप्ताह में ही हो गया होता जब कोसी का डिस्चार्ज २ लाख क्यूसेक को पार कर चुका था.जाहिर है यह समस्या स्थानीय नदी के उफनाने से उत्पन्न हुई है जिसका सम्बन्ध मौसमी बारिश से है.इसलिए इस तरह की भ्रामक ख़बरें परोसने से पहले कोसी से जुड़े मुद्दे की बारीक जानकारी जरूरी है.
उम्मीद पानी में बहा:टापू बना कोसी उम्मीद पानी में बहा:टापू बना कोसी Reviewed by मधेपुरा टाइम्स on August 21, 2011 Rating: 5

1 comment:

  1. बिल्कुल आपने सही लिखा ख़ास कर प्रिंट में ये देखा जाता है कि.... जो व्यक्ति को मीडिया को सही से परिभाषित नहीं कर सकता वो आज प्रिंट मीडिया में काम कर रहा है जो किसी कोने से परिवारवाद कि बू आती है .... अब तो आपको इलेक्ट्रोनिक मीडिया में भी मिल जायेगा....पेपर से स्क्रिप्ट लिख कर अपनी नाम और शोहरत का दुहाई देता है.... खाश कर पंकज जी आपने सहरसा मधेपुरा में ज्यादा मिलेगा....
    CHANDAN SINGH
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    MAGIK TV
    SAHARSA
    http://saharsatimes.blogspot.com
    chandan.ap1@gmail.com

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