एक अदना सी मुक्कम्मल ख्वाहिश....

कायनात से परे
मेरी आगोश में ढले,
वो हर शाम तेरी हो.
...
हमदोश आसमाँ होगा,
साथ नया कारवाँ होगा,
कदमताल साथ मेरे तेरी हो.
...
मुक्कम्मल बारिशें भी हो,
जुडी ख्वाहिशें भी हो,
होंठो से मेरे वो मुस्कान तेरी हो.
...
कुबूल एक आरज़ू हो,
वो अपनी जुस्तजू हो,
तेरी मुहब्बत में बस ये सौगात मेरी हो. 

--सुब्रत गौतम "मुसाफिर"
एक अदना सी मुक्कम्मल ख्वाहिश.... एक अदना सी मुक्कम्मल ख्वाहिश.... Reviewed by मधेपुरा टाइम्स on August 14, 2011 Rating: 5

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