बारिश में भींगा हुआ
ये शाम का आँचल,
फिर उजाला खो रहा है,
आसमान भी बादलों के पलक
बंद कर फिर सो रहा है,
मद्यम होती हवाएं फिर
तेज होकर चल रही है,
ये शाम फिर ढल रही है,
ये शाम फिर ढल रही है
खेत-खलिहानें, पठारें
फिर मचलके खिल रहे हैं,खेत-खलिहानें, पठारें
ऐसा लगता है कि धरती
आसमान से मिल रही है.
और इस मिलन से आसमान में
चिंगारियां चल रही है,
ये शाम फिर ढल रही है,
ये शाम फिर ढल रही है.
दूर शहरों में रोशनी ने
इस अर्द्यरजनि की लालिमा को
अलविदा सा कह दिया है,
पर इस विरह से मेरे दिल की
ख्वाहिशें जल रही हैं,
ये शाम फिर ढल रही है,
--आदित्य सिन्हा,मधेपुरा (वर्तमान में लोकप्रिय टीवी सीरियल ‘लापतागंज’ में बतौर हेड क्रियेटिव डाइरेक्टर कार्यरत हैं)
ये शाम फिर ढल रही है..
Reviewed by मधेपुरा टाइम्स
on
July 30, 2011
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